बिहार : हमरा कुछो नै चाही, हमरा बस रोजगार चाही।

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स्पेशल डेस्क
कोसी की आस@पटना

“बिहार में बाहर है, नीतीशे कुमार है” नारा याद है न कि भूल गए। अरे ऐसे कैसे हम भूल जाएंगे, भलयों नीतीश जी भूल गए हों लेकिन हम कैसे भूल जाएंगे, ये महज़ उदाहरणवां समझा रहे थे क्योंकि वो क्या है न कि असल में हमलोग (आम जनता) गधहा हैं, देखिए अब ये गधहा वाला बात से हमसे मत लड़ बैठियेगा, actual में हमलोग जो हैं वही बोले हैं। ज़रा सोचिए बिहार में जंगलराज राज के खात्मे के बाद से लगभग 15 वर्षों से तथाकथित सुशासन बाबू का राज है, औऱ-तो-और लगभग 6 वर्षों 56 इंच वाले भी हैं, इसप्रकार डबल इंजन वाले युग में बिहार सरकार के द्वारा आयोजित महज़ कुछ सौ सीट के पुलिस भर्ती परीक्षा में उमड़ी भीड़ की तस्वीरों से युवाओं के भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है कि “हमें भगवा समर्थक होना है या विरोधी”, “हमें CAA, NPR और NRC का समर्थन करना है या विरोध” वास्तव में “हमें हिन्दू-मुस्लिम नहीं बल्कि रोजगार चाहिए”, “हमें CAA, NPR और NRC का विरोध कर पेंशन नहीं बल्कि छोटी सही लेकिन काम चाहिए”।

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आपको बता दें कि महज़ कुछ सौ पुलिस की भर्ती के लिए 17 लाख लोग परीक्षा देने गए थे। परीक्षा देकर लौट रहे वैशाली जिला सहदेई बुजुर्ग प्रखंड चकेयाज गांव के अंकित सिंह की भीड़ की वजह से ट्रेन से गिर जाने के कारण बुरी तरह से घायल होने के उपरांत इलाज के दौरान मौत हो गई।

कितने दिन तक हम हिन्दू-मुस्लिम, राष्ट्रवाद, communal
और secular करते रहेंगे? भैया हमरा कुछो नै चाही, हमरा बस रोजगार चाही।

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