बिहार के रोहतास जिले के आरके श्रीवास्तव पिछले 10 वर्षों से जरूरतमंद बच्चों को अपने अनोखे अंदाज से कूड़ें के जुगाड़ से गणित का पाठ पढ़ा रहे हैं। उनके ‘वंडर किड्स प्रोग्राम‘ सेंटर में बच्चों को वेस्ट मटेरियल यानि कूड़े से खिलौने बनाना सिखाया जाता है। यहाँ कला और दिमाग का सही इस्तेमाल कर गणित की हर गुत्थी को आसानी और मनोरंजक तरीके से पेश किया जाता है। आरके श्रीवास्तव ने ऐसे कई वीडियोज बनाए हैं जिससे गणित की कई थ्योरी आसानी से समझी जा सकती है। उनके डिफरेंट और क्रिएटिव स्टाइल को देख कर लोग उन्हें फिल्म 3 इडियट के रेंचो की तरह रियल लाइफ का रैंचो भी कहकर बुलाते हैं।
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में वर्ग 7- 8 के स्टूडेंट्स ग्रेजुएशन के गणित को करते है हल ——
बिहार का एक ऐसा शैक्षणिक आँगन है जहाँ वर्ग 7 से 10वी तक के स्टूडेंट्स ग्रेजुएशन के गणित के प्रश्नों को हल करते है। यहाँ वर्ग 10वी से पहले ही स्टूडेंट्स 11वी और 12वी के गणित के पाठ्यक्रम को पूरे कान्सेप्ट से पढने के बाद Bsc के गणित के पाठ्यक्रम के प्रश्नों को हल करना प्रारम्भ कर देते है। सभी WONDER KIDS स्टूडेंट्स के हाथो में Lalji Prasad के Bsc (ग्रेजुएशन) के किताबे आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में देखने को मिलते है।
आख़िर WONDER KIDS PROGRAM है क्या?
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में वर्ग 3 से स्टूडेंट्स जुड़ना प्रारम्भ कर देते है। प्रत्येक दिन 4 से 5 घंटे तक स्टूडेंट्स को शिक्षा दिया जाता है। प्रत्येक रविवार को सुबह 7 बजे से शाम 7 तक लगातार 12 घंटे गणित का गुर आरके श्रीवास्तव सिखाते है। इसके अलावा आरके श्रीवास्तव के द्वारा चलाया जा रहे “स्पेशल नाईट क्लासेज” का भी देश में चर्चा का विषय बना हुआ। अभी तक आरके श्रीवास्तव स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने हेतु 200 से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घंटे गणित का गुर सिखा चुके है। वंडर किड्स प्रोग्राम के तहत स्टूडेंट्स सिर्फ 2 से 3 वर्षो में 5 हजार से 7 हजार घंटे तक आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में गणित का गुर सीख चुके होते है। जब ये स्टूडेंट्स वर्ग 7- 8 में पहुँचते है तो ये स्टूडेंट्स 11वी, 12वी के सिलेबस को पूरे कांसेप्ट के साथ पढ़ चुके होते है। वर्ग 10वी में जब ये स्टूडेंट्स जाते है तो कई बार 11वी-12वी के पाठ्क्रम सहित आईआईटी प्रवेश परीक्षा के पिछले 40 वर्षों के question bank को कई बार revision कर चुके होते है।
पढ़ाने का तरीका अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय—-
कचरे से खिलौने बनाकर सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को अद्भुत, अद्वितीय एवं अकल्पनीय तरीके से गणित का गुर सिखाकर बिहारी जीनियस मैथेमैटिक्स गुरू फेम आरके श्रीवास्तव इंजीनियर बना रहे हैं। उनका कहना है कि हर बच्चे का खिलौनों से प्यार होना आम बात है। खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, ऐसे में, हर माता-पिता कोशिश करते हैं कि वे अच्छे से अच्छा खिलौना लाकर अपने बच्चे के बचपन में रंग भर सकें। हालांकि, आज भी ग्रामीण इलाकों में सभी परिवार अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने में असमर्थ हैं, लेकिन बिहार के आर के श्रीवास्तव नाम के शख्स ने बच्चों की जिंदगी में पैसों की वजह से किसी खुशी की कमी न रह जाए, के लिए काम किया। साथ ही आर के श्रीवास्तव ने खिलौने के जरिए ग्रामीण के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी बच्चों को गणित पढ़ाने का एक मजेदार तरीका सोचा।
इसके लिए उन्होंने सस्ती सामग्री से नए खिलौने बनाने के तरीके खोजे और विकसित किए। स्टूडेंट्स आईआईटी प्रवेश परीक्षा के 11वी-12वी के गणित के कान्सेप्ट को खिलौने बनाकर आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक ऑगन में समझते हैं। चाहे वह 3d-vector के concept हो या Algebra, Trigonometry, Co-ordinate Geometry, Calculus, Geometry, Menstruation के concept हो, इन सभी के concept को आर के श्रीवास्तव Waste Material से ‘खिलौने’ बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाते है। बिहार के रोहतास जिला के बिक्रमगंज मे जन्मे, आरके श्रीवास्तव ने बचपन मे पिता के गुजरने के बाद गरीबी के कारण अपनी पढाई वीर कुवँर सिंह विश्वविद्यालय से किया। प्रारंभिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की भी पढाई सरकारी विधालय से ही हुई। उन्हें अपने शिक्षा के दौरान यह एहसास हो गया था कि देश में लाखो-करोड़ों प्रतिभायें होगे जो महंगी शिक्षा, महंगी किताबे इत्यादि के कारण अपने सपने को पूरा नही कर पा रहे होंगे।
टीबी की बिमारी के कारण नही दे पाये थे आईआईटी प्रवेश परीक्षा। टीबी की बिमारी के कारण आईआईटीयन न बनने की टिस ने बना दिया सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर।
टीबी की बिमारी के दौरान स्थानीय डॉक्टर ने करीब 9 महीने दवा खाने का सलाह दिये। उस दौरान अकेले घर मे बैठे-बैठे बोर होने लगे। फिर उनके दिमाग मे आईडिया आया क्यों न आसपास के स्टूडेंट्स को बुलाकर गणित का गुर सिखाया जाये। पढ़ाने के दौरान वैसे बहुत सारे स्टूडेंट्स थे जो प्रश्न को तो हल कर लेते थे परन्तु उनके कॉन्सेप्ट आजीवन के लिए क्लियर नही हो पाते। आजीवन शब्द का इस्तेमाल इस लिये किया गया की यदि वे कुछ दिन उस चैप्टर की प्रैक्टिस छोड़ दे तो जल्द वे भूल जाते थे। स्टूडेंट्स की इन कमियो को दूर करने के लिए वहां उन्होंने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सस्ती सामग्रियों का इस्तेमाल करके सिंपल खिलौने बना उससे सिखाने का शैक्षणिक प्रयोग विकसित किया।
इन खिलौनों के साथ मजेदार तरीके से उन्होंने कई स्कूलों में सेमिनार करके भी बच्चों को गणित के मूल सिद्धांतों को पढ़ाया। खिलौने बच्चों को आकर्षित करते हैं और वह पढ़ने में अपनी रुचि दिखाने लगे। माचिस की तीलियों, साइकल वाल्व ट्यूब,,कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकड़ों इत्यादि से लेकर बेकार कागज का इस्तेमाल करते हैं। इनसे वह सुंदर खिलौने बनाने समेत बच्चों के बीच ‘best-out-of-waste’ का आईडिया भी डाल रहे हैं। गणित के 3d Shape , ज्यमिती, क्षेत्रमिती, बीजगणित, त्रिकोणमिती सहित अनेकों गणित के कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर देते है। इसका मुख्य कारण है खिलौने के सहारे थ्योरी को क्लियर कर चुटकियों मे छात्र-छात्राएँ प्रश्न को हल कर दे रहे।
उन्होंने छोटे ग्रामीण गांव के स्कूलों से लेकर देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थानों तक के हजारों बच्चों को खिलौने बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाया है। इनके पढाये सैकड़ों स्टूडेंट्स आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई और एनडीए आदि में सफलता पाकर अपने सपने को पंख लगा रहे।
आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली के चलते इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन , इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस मे दर्ज हो चुका है। दर्जनो अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके है। बच्चों को गणित से प्रेरित खिलौने बनाना सिखाकर गणित के कॉन्सेप्ट को रूचिकर बना रहे। इनके इस जादुई तरीके से गणित पढाने की शैक्षणिक कार्यशैली पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। ‘खिलौने’ वाले मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हो चुके है WONDER KIDS GURU आरके श्रीवास्तव ।