देश का पहला धार्मिक स्थल है सिंघेश्वर जहां स्वंय विष्णु ने किया था मंदिर का निर्माण
मधेपुरा : “कोसी की आस” आज आपको सिंघेश्वर स्थान के बारे में बताने जा रहा है। यह बिहार के मधेपुरा जिला मुख्यालय से लगभग 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग स्थापित है, जो ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। कहा जाता है कि सिंघेश्वर देश का पहला धार्मिक स्थल है जहाँ स्वंय भगवान विष्णु ने मंदिर का निर्माण कराया था। तो आइए जानते हैं मधेपुरा के सिंघेश्वर स्थान के बारे में जहाँ सबकी पूरी होती है मानोकामना सिंघेश्वर स्थान में पूरे माह शिव भक्तों का ताँता लगा रहता है। पड़ोसी देश नेपाल से भी शिव भक्त यहाँ भगवान शिव का पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। श्रावण के दौरान लगने वाला मेला बिहार और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। सिंघेश्वर स्थान आने पर सबकी मनोकामना पूर्ण होती है, इसलिए इसे मनोकामना शिवलिंग के रूप में भी जाना जाता है। यह बिहार के प्राचीनतम मंदिर में से एक है। दंत कथाओं में इस बात का उल्लेख किया गया है कि वराह पुराण के अनुसार भगवान शिव को ढूंढते हुए देवराज इंद्र के साथ विष्णु और ब्रह्मा यहाँ पहुंचे थे तो भगवान शिव एक सुन्दर हिरन के रूप में विचरण करने लगे थे। तीनों अन्तर्यामी देवताओं ने इस हिरन को देख कर ही समझ लिया था कि ये ही भगवान शंकर हैं और उस हिरन को पकड़ने में सफल भी हुए। इंद्र ने हिरन के सिंह का अग्रभाग, ब्रम्हा ने मध्यभाग और विष्णु ने निम्नभाग पकड़ा। अचानक सिंह तीन भाग में टूट कर विभाजित हो गया। तीनो देवताओं के हाथ में सिंह का एक-एक भाग रह गया और हिरन लुप्त हो गया। तभी आकाशवाणी हुई कि अब शिव नहीं मिलेंगे। देवताओं ने अपने-अपने हाथ में आए सिंह के भाग को पाकर ही संतोष कर लिया और सिंह को जिस स्थान पर स्थापित किया वही वर्तमान में सिंघेश्वर है। इसप्रकार इस मंदिर का नाम सिंघेश्वर स्थान हुआ। सिंघेश्वर मंदिर में जो शिवलिंग है उसे किसी ने स्थापित नहीं किया बल्कि शिवलिंग स्वयं अवतरित हुए हैं, ऐसी मान्यता है। लोगों का मानना है कि स्वयं अवतरित होने के कारण एवं देवता द्वारा निर्मित मंदिर होने के कारण कोसी के उफान में भी मंदिर ज्यों का त्यों रह गया। अंतत: नदी को ही धारा बदलनी पड़ी जो नदी अब भी मंदिर से पूरब बह रही है। आज तक है हवन कुंड, सावन उत्सव के दौरान शिव भक्त दूर दराज से कांवर यात्रा कर सिंघेश्वर बाबा को जल अर्पण करने के लिए आते हैं। दंत कथाओं में ये भी उल्लेख किया गया है कि ये स्थान श्रृंगी ऋषि का तपोभूमि हुआ करता था। इस स्थान पर श्रृंगी ऋषि भगवान शिव को पूजा करते थे। ऋषि ने 7 हवन कुंड का निमार्ण करवाया जो आज भी मौजूद है।
(यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)
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टीम- “कोसी की आस” ..©