ड्रेनेज विभाग के जमीन पर लोगों का कब्जा, आये दिन बन रहे हैं नए-नए दुकान

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धर्मेंद्र कुमार मिश्रा
कोशी की आस@मधेपुरा

जिले के उदाकिशनगंज अनुमंडल मुख्यालय स्थित पटेल चौक के पास अवस्थित ड्रेनेज विभाग जो पूर्व में प्रमंडलीय कार्यालय था। राजनीति के शिकार होकर सहरसा जिले के कोपड़िया में शिफ्ट हो गया और खाली परे मकान में लोगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है। वहीं खाली परे जमीन पर भी लोग घर और दुकान बना रहें हैं। सूत्रों के मुताबिक कुछ सफेदपोश के मिलीभगत से वर्षों से किराए का खेल चल रहा है।

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ऐसा नहीं है कि पदाधिकारी को इन सारी बातों का पता नहीं है लेकिन कोई ठोस कदम पदाधिकारी द्वारा अब तक नहीं उठाया जाना सोचनीय विषय है। कितने पदाधिकारी आए गए आज तक कोई खाली नहीं करा पाए। जिससे आए दिन नए नए घर और दुकान बनते जा रहे हैं। इतना हीं नहीं जितने भी पुराने सरकारी घर टूटे हैं, उसके ईंट तक लोग अपने दुकान में धड़ल्ले से लगा रहे हैं।

बतादें कि 48 वर्ष पूर्व 1971 ईस्वी में कांग्रेस सरकार में लहटन चौधरी सिंचाई मंत्री थे। उस वक्त राज्य सरकार ने ड्रेनेज का प्रमंडलीय कार्यालय खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की थी। महज एक वर्ष में ही कार्यालय व आवासीय भवन बन कर तैयार हो गया। जून 1972 से विधिवत रुप से विभाग ने काम करना शुरु कर दिया। जहां कार्यपालक अभियंता, चार -चार सहायक अभियंता, 16 कनीय अभियंता के साथ-साथ काफी संख्या में कर्मचारी कार्यरत थे जिससे क्षेत्र के किसानों को काफी फायदा होने लगा।

पानी निकासी की योजना से जमीन उपजाऊ हो गया था।लेकिन लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रीत्व काल में एक बड़ी साजिश के तहत कार्यालय को यहां से हटा कर सहरसा जिले के कोपड़िया में स्थानातरित कर दिया गया। इस संबंध जल संसाधन विभाग को बिहार सरकार के द्वारा 1994 में कार्यालय हटाने का आदेश मिला। जिसपर 1995 में यहां से कार्यालय को हटाया गया। कार्यालय हट जाने से भवन खंडर में तब्दील होते गया।

कार्यालय हटने से जहां खाली जमीन पर कुछ लोगों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अनुमंडल क्षेत्र के चौसा, पुरैनी, उदाकिशुनगंज, आलमनगर, ग्वालपाड़ा, बिहारीगंज के निचले हिस्से में जल-जमाव की समस्या बनी रहती है। लोगों का कहना है कि इन जगहों पर ड्रेनेज विभाग के रहने से खेतों में फसल की उपज होती थी। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि यहां फिर से ड्रेनेज विभाग शुरु किया जाय। तभी किसानों के दिन फिरेंगे। लेकिन इस दिशा में अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक उदासीन बने हुए हैं।

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