“असर-ए-हादसा”

0
271
- Advertisement -

“लब खामोश हो जाते हैं अक्सर उनके,
आँखें आँसुओं से लबालब भर जाती हैं;
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है।।

सींचा था जिस फूल को बड़े ही प्यार से कभी,
कुछ बेरहमों की वजह से उनकी बगिया उजड़ जाती है;
हो जाती है वो पागल रहती है वो खोई-खोई सी,
वापिस लौट जब वो अपने सूने घर जाती है।
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है।।

- Advertisement -

दिल में दर्द और आँखों में लिए तूफान,
न्याय के लिए वो माँ रब के दर जाती है;
मिलता नहीं जब न्याय उन्हें उनसे तब,
वो बुरी तरह से टूट कर बिखर जाती है।
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है।।

याद कर-कर के उसकी मीठी बातों को,
वो माँ गमगीन हो बीमार भी पड़ जाती है;
मत पूछो आलम असर-ए-हादसा का दोस्तों,
वो माँ बिचारी तो जीते-जी हीं मर जाती है;
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है।।

पूर्णियाँ जिले से ताल्लुकात रखने वाली “प्रिया सिन्हा” ने उक्त पंक्तियाँ के माध्यम से एक माँ का भाव, जब उसके सामने उसकी बेटी गुजर जाती है, अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।

- Advertisement -