“प्रिया सिन्हा”
कोसी की आस@पूर्णियाँ
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई किसी के प्यार में पागल है;
कोई किसी के तकरार में पागल है;
कोई पागल है इजहार-ए-मुहब्बत में तो,
कोई किसी के इन्कार में पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई अपने रोजी रोजगार में पागल है;
कोई रोजी-रोटी के जुगाड़ में पागल है;
कोई पागल है संपूर्णता में भी तो,
कोई हालात-ए-वक्त की मार में पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई खुशी से अपने परिवार में पागल है;
कोई दुखी हो उनसे तिरस्कार में पागल है;
कोई पागल है जीने के नए तौर-तरीकों से तो,
कोई पुराने रिवाज-ओ-संस्कार से पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई अपने बच्चे के दुलार में पागल है;
कोई अपने बच्चे के दुत्कार में पागल है;
कोई पागल है बच्चों के संग रहकर तो,
कोई बच्चे के लौट आने के इंतजार में पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई धन-दौलत बेशुमार में पागल है;
कोई स्वयं के अहंकार में पागल है;
कोइ पागल है दुनिया की फिक्र में तो,
कोई खामख्वाह हीं बेकार में पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई रास-रंग श्रृंगार में पागल है;
कोई सादगी भरे विचार में पागल है;
कोई पागल है उन्मुक्त गगन में भी तो,
कोई बंद दयार-ओ-दीवार में पागल है !
दुनिया में हर कोई पागल है …
कोई सुख में तो कोई दुख भरे संसार में पागल है;
कोई प्रकाश में तो कोई अंधकार में पागल है;
पागल है हर कोई यहाँ इक दूजे को पागल बनाने में तो,
कोई खुद को समझ बहुत बड़ा समझदार पागल है !
(दयार :- जिला, देश ; उन्मुक्त :- आजाद)