- Advertisement -
दिव्या त्रिवेदी
कोसी की आस@पूर्णियाँ
है लबों ने, मौन धारा
मौन मुखरित हो गया है।
कर लिया करती हैं बातें
खामोशियां कुछ बोल कर।।
- Advertisement -
मिल जाता है, जवाब भी
चुप, अर्थपूर्ण हो गया है।
है शोर अब भी, हृदय गति का
श्रवण चेतना मौन है।।
जानता है भली भांति, पर
मस्तिष्क पूछता, कौन है।
जान तो, अब भी है अच्छी
पर, पहचान देखो मौन है।।
है संबंध अब भी मध्य में
पर, बंध देखो मौन है।
आत्मभाव में हो स्थित
पर, आत्मा तटस्थ है।।
अंतःकरण में दाह देखो
स्व- चिता है हो रही।
अंतर्मुखी है क्रियाशील
बहिर्मुखी अब मौन है।।
मोह बंधन तोड़ कर
प्रेम स्वतंत्र हो गया।
माया की छाया छूटी
मन मोहन में खो गया।।
चितवन की चंचलता में देखो
प्रीत, मौन मुखरित हो गया है।
(शब्दकोष – मुखरित= ध्वनित, शब्दायमान
जान= परिचय
पहचान= गुण अवगुण पहचानना, recognition
बंध= बांधने का साधन)
- Advertisement -