स्पेशल डेस्क
कोसी की आस@रोहतास
आठवीं कक्षा का कुशाग्र करता है हल, स्नातक के गणित का सवाल:
बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में मैथ गुरू फेम आरके श्रीवास्तव के अद्भुत, अद्वितीय, अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अनोखे शैक्षणिक आँगन के वंडर किड्स बच्चा जिन्हें नन्हा “रामानुजम” कहा जाने लगा है, उसे देखने और उनसे मिलने देश के अलग-अलग कोने से लोग आ चुके हैं।
बिक्रमगंज के कुशाग्र की गणितीय प्रतिभा से सभी हैरान है। आठवीं कक्षा में पढ़ रहा कुशाग्र ग्रेजुएशन के गणित के प्रश्नो को चुटकियो मे हल कर देता है। कुशाग्र के पिता मुकुल चौधरी का लक्ष्य है कि कुशाग्र को वर्ग 10 तक में Msc के गणित के सेलेब्स को पूरे कांसेप्ट के साथ पढाना।
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में जहाँ वर्ग 7 से 10वीं तक के स्टूडेंट्स ग्रेजुएशन के गणित के प्रश्नों को हल करते है। यहाँ वर्ग 10वी से पहले ही स्टूडेंट्स 11वी, 12वी के गणित के पाठ्यक्रम को पूरे कॉन्सेप्ट से पढने के बाद ग्रेजुएशन के गणित के पाठ्यक्रम के प्रश्नों को हल करना प्रारम्भ कर देते है। सभी वंडर किड्स स्टूडेंट्स के हाथो मे लालजी प्रसाद के ग्रेजुएशन के किताबे आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में देखने को मिलते है। सबसे बङी बात यह है कि ये नन्हे स्टूडेंट्स केवल अपने वर्ग से 5 वर्ग आगे ही नही है, बल्कि 11 वी, 12वी के क्लास टेस्ट परीक्षा में भी टॉप कर रहे हैं।
क्या है वंडर किड्स प्रोग्राम?
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में वर्ग 3 से स्टूडेंट्स जुङना प्रारम्भ कर देते है। प्रत्येक दिन 4 से 5 घंटे तक स्टूडेंट्स को शिक्षा दिया जाता है। प्रत्येक रविवार को सुबह 7 बजे से शाम 7 तक लगातार 12 घंटे गणित का गुर आरके श्रीवास्तव सिखाते है। वंडर किड्स प्रोग्राम के तहत स्टूडेंट्स सिर्फ 2 से 3 वर्षो मे 5 हजार से 7 हजार घंटे तक आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन मे गणित का गुर सीख चुके होते है। जब ये स्टूडेंट्स वर्ग 7- 8 मे पहुँचते है तो ये स्टूडेंट्स 11वी, 12वी के सलेब्स को पूरे कॉन्सेप्ट के साथ पढ़ चुके होते है। वर्ग 10 वी में जब ये स्टूडेंट्स जाते है तो कई बार 11 वी, 12 वी के पाठ्क्रम सहित आईआईटी प्रवेश परीक्षा के पिछले 40 वर्षों के पुछे गए प्रश्नो को कई बार रिवीजन कर चुके होते है।
पढ़ाने का अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय तरीका : –
रियल लाइफ के रैंचो कहे जाने वाले आरके श्रीवास्तव, क्लासरूम प्रोग्राम के अलावा कचरे से खिलौने बनाकर सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाकर इंजीनियर बनाने का कार्य कर रहे हैं। उनका खिलौने बनाकर गणित सिखाने का अद्भुत, अद्वितीय एवं अकल्पनीय तरीका है। हर बच्चे का खिलौनों से प्यार होना आम बात है। उनके अनुसार खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, ऐसे में हर माता-पिता कोशिश करते हैं कि वे अच्छे-से-अच्छा खिलौना लाकर अपने बच्चे के बचपन में रंग भर सकें। हालांकि आज भी ग्रामीण इलाकों में सभी परिवार अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने में असमर्थ हैं। लेकिन बिहार के आर के श्रीवास्तव नाम के शख्स ने बच्चों की जिंदगी में पैसों की वजह से किसी खुशी की कमी न रह जाए, के लिए काम किया। साथ ही आर के श्रीवास्तव ने खिलौने के जरिए ग्रामीण के अलावा शहरी क्षेत्रों मे भी बच्चों को गणित पढ़ाने का एक मजेदार तरीका सोचा।
इसके लिए उन्होंने सस्ती सामग्री से नए खिलौने बनाने के तरीके खोजे और विकसित किए। स्टूडेंट्स आईआईटी प्रवेश परीक्षा के 11वी, 12 वी के गणित के कॉन्सेप्ट को खिलौने बनाकर आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक ऑगन मे समझते है। चाहे वह त्रिक ज्यमिती, वेक्टर के कांसेप्ट हो या बीजगणित, त्रिकोणमिती, नियामक ज्यमिती, कलन शास्त्र, ज्यमिती, क्षेत्रमिती के कांसेप्ट हो। इन सभी के कांसेप्ट को आर के श्रीवास्तव वेस्ट मटेरियल से ‘खिलौने’ बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाते है। बिहार के रोहतास जिला के बिक्रमगंज में जन्मे, आरके श्रीवास्तव ने बचपन मे पिता के गुजरने के बाद गरीबी के कारण पैसो के अभाव में अपनी प्रारंभिक, माध्यमिक और हाईस्कूल तक की पढाई सरकारी विद्यालय से किया। स्नातक भी स्थानीय वीर कुवँर सिंह विश्वविद्यालय से किया। उन्हें अपने शिक्षा के दौरान यह एहसास हो गया था कि देश में लाखो-करोड़ों प्रतिभायें होगे जो महंगी शिक्षा, महंगी किताबे इत्यादि के कारण अपने सपने को पूरा नही कर पा रहे होंगे।
टीबी की बिमारी के कारण नही दे पाये थे आईआईटी प्रवेश परीक्षा। टीबी की बिमारी के कारण आईआईटीयन न बनने की टिस ने बना दिया सैकङो गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर। टीबी की बिमारी के दौरान स्थानीय डॉक्टर ने करीब 9 महीने दवा खाने का सलाह दिये। उसी दौरान इन 9 महीने अकेले घर में बैठे-बैठे बोर होने लगे। फिर उनके दिमाग मे आईडिया आया क्यो न आसपास के छात्रों को बुलाकर गणित का गुर सिखाया जाये। पढ़ाने के दौरान वैसे बहुत सारे स्टूडेंट्स थे जो प्रश्न को तो हल कर लेते थे परन्तु उनके कॉन्सेप्ट आजीवन के लिए क्लियर नही हो पाते। आजीवन शब्द का इस्तेमाल इस लिये किया गया कि यदि वे कुछ दिन उस चैप्टर की प्रैक्टिस छोड़ दें तो जल्द वे भूल जाते थे। स्टूडेंट्स की इन कमियो को दूर करने के लिए वहां उन्होंने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सस्ती सामग्रियों का इस्तेमाल करके सिंपल खिलौने और शैक्षणिक प्रयोग विकसित किए।
इन खिलौनों के साथ उन्होंने स्कूलों में सेमिनार करके भी बच्चों को गणित के मूल सिद्धांतों को पढ़ाया, उन्होंने मजेदार तरीके से बच्चों को इन खिलौने के जरिए पढ़ाया। ये खिलौने को आकर्षित करते हैं और वह पढ़ने में अपनी रुचि दिखाते हैं। माचिस की तीलियों साइकल वाल्व ट्यूब, कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकड़ों इत्यादि से लेकर बेकार कागज का इस्तेमाल करते हैं। इनसे वह सुंदर खिलौने बनाने समेत बच्चों के बीच ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ का आईडिया भी डाल रहे हैं। गणित के त्रिक शेप, ज्यमिती, क्षेत्रमिती, बीजगणित, त्रिकोणमिती सहित अनेकों गणित के कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर देते है। इसका मुख्य कारण है खिलौने के सहारे थ्योरी को क्लियर कर चुटकियों मे छात्र-छात्राएँ प्रश्न को हल कर दे रहे।
उन्होंने छोटे ग्रामीण गांव के स्कूलों से लेकर देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थानों तक के 1000 से अधिक बच्चों को खिलौने बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाया है। इनके पढाये सैकङो स्टूडेंट्स आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई, एनडीए में सफलता पाकर अपने सपने को पंख लगा रहे।
आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली के चलते इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस मे दर्ज हो चुका है। दर्जनो अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके है। बच्चों को गणित से प्रेरित खिलौने बनाना सिखाकर गणित के कान्सैप्ट को रूचिकर बना रहे। इनके इस जादुई तरीके से गणित पढाने की शैक्षणिक कार्यशैली पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। ‘खिलौने’ वाले मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हो चुके है वंडर किड्स गुरु आरके श्रीवास्तव।
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में इन वंडर किड्स स्टूडेंट्स को देखने और इनसे मिलने देश के अलग-अलग कोने से लोग बिहार के बिक्रमगंज, रोहतास आ चुके है। पहले तो लोगो को विश्वास नही होता था कि वर्ग 7 से 10वी तक के छात्र ग्रेजुएशन के गणित को चुटकियों में कैसे हल करते है। लेकिन जब इन स्टूडेंट्स से मिलकर जब इनके बैंग एवं हाथो में ग्रेजुएशन की गणित के किताबे देखते है तो चकित हो जाते है। क्लासरूम मे आईआईटी प्रवेश परीक्षा सहित ग्रेजुएशन के गणित को इन नन्हे छात्रों के द्वारा हल करते देख सभी अतिथि आरके श्रीवास्तव के कड़ी मेहनत, उच्ची सोच एवं पक्का ईरादा के साथ किए जा रहे निरंतर निःस्वार्थ मेहनत के लिए सलाम करते है। आप सभी भी इन अजूबे शैक्षणिक ऑगन मे आकर इन नन्हे वंडर किड्स से मिलकर इनके प्रतिभा से रूबरू हो सकते है। यदि हिन्दूस्तान को विश्व गुरू बनाने है तो ऐसे वंडर किड्स स्टूडेंट्स का फौज तैयार करने पड़ेंगे। यह तभी संभव होगा जब आरके श्रीवास्तव जैसे सोच शिक्षक को रखने पङेगे। सिर्फ 3 से 4 वर्षो मे 5 से 7 हजार घंटे तक गणित की शिक्षा देकर आरके श्रीवास्तव ने वर्ग 7 से 10 तक के स्टूडेंट्स को ग्रेजुएशन के प्रश्नों चुटकियो मे हल करने योग्य बना दिया। आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि इन वंडर किड्स स्टूडेंट्स के परिश्रम के साथ-साथ इनके पैरेन्टस का भी सहयोग को इनके अद्भुत, अद्वितीय गणितीय ज्ञान का श्रेय जाता है।