कलयुग है साहब, यहाँ जिंदा इंसानों के लिए कोई योजना नहीं, गर लाश हो जाये….

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यह कलयुग है साहब, यहाँ जिंदा इंसानों के लिए कोई योजना नहीं, गर लाश हो जाये तो कई योजनाएँ दिख जाती है। तस्वीर सहरसा जंक्शन परिसर की है। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक विक्षिप्त महिला जो शायद अपने जीवन की अंतिम सांसें ले रही हों, को देख मन गुस्से से खीज़ गया और हमने बोल दिया कि यहाँ जिंदा इंसानों के लिए कोई योजना नहीं, जी हाँ, उस विक्षिप्त महिला को देखने के बाद लगा कि जीते जी ऐसे लोगों के उत्थान को सरकार अपने बजट में स्थान नहीं देती, कोई सुविधा नहीं, कोई सहूलियत नहीं और शायद यमराज की गिद्ध दृष्टि भी उसके अंतिम साँस का ही इंतज़ार कर रही होती है। दुर्भाग्य यह कि ऐसे लोगों को जीते जी सरकार के किसी योजना का लाभ भले न मिल पाया हो ताकि स्वस्थ होकर जीवन-बसर कर सकें, किन्तु देहावसान हो जाने पर कफ़न और दो गज जमीन अवश्य नसीब हो जाती है। मानसिक रूप से विक्षिप्त बेसहारा लोगों की बेहतरी के लिए भी योजनाएँ होनी चाहिए ताकि परवरदिगार को इस बात का मलाल ना रहे कि मैंने फलां-फलां मनुष्य की रचना करके कोई गुनाह किया। खैर, हमारा कार्य मानवता की सेवा करना है। वो तो हम करते रहेंगे लेकिन कुछ सवाल या फिर कहें कि कुछ परिदृश्य दिल को कचोटती है। उन सवालों से मन व्याकुल हो जाता है। हॄदय चीत्कार मारने लगती है, कंठ रुँधा जाता है। कुछ ऐसा ही परिचय है आज़ के हमारे स्टार (रोटी बैंक टीम, सहरसा) का, जिनसे कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 19वीं कड़ी में आपको रूबरू करवाने वाली है।

रोटी बैंक टीम, सहरसा के लिए एक पंक्ति समर्पित करना चाहूँगा कि

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“ज़िंदगी में तपिश कितनी भी हो, कभी हताश मत होना,

क्योंकि धूप कितनी भी तेज हो, समंदर कभी सूखा नहीं करते।”

       वो कहते है न कि आप में कुछ करने की इच्छशक्ति होनी चाहिए, आप में कुछ करने की सच्ची नियत होनी चाहिए, आप में कुछ कर गुजरने का जज़्बा, जोश और जुनून होना चाहिए, बेशक आप सफल होंगे। आज़ हम जिनकी कहानी बताने जा रहे हैं, वो बेहद सामान्य परिवार से आते हैं किन्तु आए दिन जैसे हम-आप बहुत सारे हृदयविदारक दृश्य देख आगे बढ़ जाते हैं लेकिन इन्हें उन हृदयविदारक दृश्यों ने इस कदर झकझोरा, उन दृश्यों ने इस कदर व्याकुल किया कि आसान नहीं था किन्तु उन्होंने उस मुश्किल पथ पर आगे बढ़ने का निर्णय किया। आइये मिलते है ऐसे ही शख़्सियत और रोटी बैंक, सहरसा चलाने वाले श्री विजय प्रसाद भगत के होनहार सुपुत्र श्री रौशन कुमार भगत से बातचीत के प्रमुख अंश:-

      1.व्यक्तिगत परिचय

       नाम         :-       श्री रौशन कुमार भगत

       पिता         :-     श्री विजय प्रसाद भगत

शिक्षा- 10वीं   :-     जिला स्कूल, सहरसा।

                12वीं   :-     एम० एल० टी० कॉलेज, सहरसा।

             डिप्लोमा:-     राजकीय पॉलीटेक्निक, सहरसा।

 स्‍नातक :-     ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा।

  1. ग्राम +पोस्‍ट   :     सहरसा।
  2. जिला :-     सहरसा।
  3. पूर्व में चयन   :-     एम टी एस, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली।
  4. वर्तमान पद :-    नियोजित शिक्षक, बिहार सरकार और समाजसेवी।
  5. अभिरूचि       :-    अध्यापन और समाज सेवा।  
  6. आपकोइस कार्य की प्रेरणा कहाँ से मिली:- “श्री रौशन” से जब यह सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि हमारी संस्था का सबसे प्रारंभ में आपने जिस घटना द्वारा परिचय कराया इसके आलवे एक और हृदयविदारक घटना, जब हम एक शादी समारोह में गए थे, वहाँ हमने समारोह में शामिल अतिथियों द्वारा प्लेट्स में ज्यादा भोजन लेकर छोड़ दिये जाने के बाद जब उसे कचरे के रूप में फेंक दिया गया तो पास के कुछ मलिन बस्तियों के बच्चे कचरे में फेंके गये प्लेट्स से भोजन निकाल-निकाल कर खा रहे थे।

एक ओर भोजन की बर्बादी तो दूसरी ओर बच्चे कचरे से जूठन को खाने को मजबूर, इन घटनाओं ने मेरे जीवन को बदल कर रख दिया और मैंने उन बेसहारा लोगों के लिए कुछ करने को ठान लिया।

8.आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:-इस सवाल के जबाब में “श्री रौशन” कहते हैं कि सच कहूँ तो इस कार्य को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान सोशल मीडिया का है। यह सोशल मीडिया की ताकत है जिसके माध्यम से मानव सेवा में गहरी आस्था रखने वाले लोग इस पहल से जुड़ते चले गए और सेवा में नित्य नए सहयोगी बढ़ते गए।

वर्तमान समय में रोटी बैंक टीम, सहरसा के कोर टीम में कुल आठ सदस्य हैं, जो नियमित रूप से श्रमदान और आर्थिक सहयोग के माध्यम से रोटी बैंक, सहरसा के प्रत्येक कार्य को कुशलतापूर्वक संपादित करते हैं। इसके अलावा 15 सदस्य हैं, जो भविष्य के लिए कार्य योजना तैयार करने और मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वहन करते हैं। इस सेवा से देश के तथा विदेशों में कार्यरत सैकड़ों भारतीय फेसबुक पेज ( https://www.facebook.com/saharsarotibank/ ) और Whatsapp के माध्यम से जुड़े हुए हैं। अगर एक पंक्ति में कहें तो इस कार्य की सफलता का श्रेय सम्मिलित रूप से रोटी बैंक टीम, सहरसा के सभी सदस्यों और सेवा से जुड़े रहने वाले हजारों महा-मानवों को जाता है।

9.वर्तमान में प्रयासरत युवाओं/समाज के लिए क्‍या संदेश देना चाहते हैं:- हम समाज के प्रबुद्ध जनों से निवेदन करना चाहेंगे कि अपनी आय का कुछ हिस्सा उनके लिए भी निकालें, जिन्हें एक वक्त की रोटी के लिए ना जाने कौन-कौन से कर्म करने पड़ते हैं। अपने ही समाज के मजबूर, बेबस और बेसहारा लोगों की इंसानियत के नाते मदद करें। अन्न की बर्बादी को रोकें क्योंकि हमारे देश में करोड़ों लोगों को एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है और हम उन्हें यूँ ही बर्बाद कर देते हैं।

 

10.अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं :आम बोलचाल में जब बड़े-बुजुर्ग बोलते थे कि बड़ी सफलता यूँ ही नहीं मिलती बल्कि उसके लिए बहुत संघर्ष करना होता है, तो उतना गौर नहीं करता था क्योंकि मैंने व्यक्तिगत जीवन में उतनी मुश्किल नहीं देखा किन्तु जैसे ही सामाजिक जीवन में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया, परत-दर-परत मुश्किलें दिखने लगी। मैं प्रारंभ से बताना चाहूँगा कि ऊपर की दो हृदयविदारक घटना के उपरांत हमने अपने ही एक मित्र के साथ दिनाँक 24.06.2018 को कार्य प्रारंभ किया। शुरुआत में सप्ताह में एक दिन रविवार को रात्रि में अपने पैसे से होटल से समोसे आदि खरीदकर उन बेसहारा लोगों में वितरित करना प्रारम्भ किया और सोशल मीडिया के द्वारा लोगों को इस कार्य को दिखाया, कुछ लोगों ने सराहा तो कुछ लोग सहयोग करने को आगे आये। धीरे-धीरे फेसबुक पेज के माध्यम से लोग जुड़ते चले गये और कारवाँ बढ़ता चला गया, लेकिन इस बीच मैं नहीं बोलना चाह रहा था किन्तु जब आपने पूछा है तो बताना चाहूँगा कि मेरे मित्र की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा की वजह से यह कार्य कुछ दिनों के लिए बंद हो गया। मैं काफी परेशान हुआ लेकिन एक बार फिर से खाने योग्य भोजन की बर्बादी, प्लेटफार्मों, खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर महिला और उन मलीन बस्तियों के बच्चे वाली तस्वीर ने फिर से उठने को मज़बूर किया और इस बार हमने और सशक्त होकर दिनाँक 16.08.2018 से कार्य पुनः प्रारंभ किया। एक पंक्ति जिसने मुझे हिम्मत दी साझा करना चाहूँगा कि

रास्ते कभी खत्म नहीं होते,

बस लोग हिम्मत हार जाते हैं।

तैरना सीखना है तो पानी में उतरना ही होगा,

किनारे बैठ कर कोई गोताखोर नहीं बनता॥

सबसे पहले हम रोटी बैंक, सहरसा के कोर सदस्यों से परिचय करना चाहेंगे-

श्री मुकुंद माधव मिश्रा       – रेडियोलॉजिस्ट, भूषण गुप्ता मेमोरियल हॉस्पिटल, सहरसा

श्री राहुल गौरव             – निदेशक, GIT Academy, सहरसा

श्री रवि रंजन              – छात्र

श्री पंकज कुमार            – निदेशक, मौर्या पब्लिक स्कूल, सहरसा

श्री चंदन कुमार             – छात्र

श्री अजय कुमार            – युवा व्यवसायी

श्री सचिन प्रकाश           – युवा उद्यमी

और हम सबने मिलकर एक नारा दिया:-

उतना ही लें थाली में, व्यर्थ ना जाये नाली में,

 रोटी बैंक का एक ही सपना, भूखा रहे ना कोई अपना

आगे “श्री रौशन” बताते हैं शुरुआत तो खुद के पैसों से ही करनी पड़ी, चूँकि भूख तो इंसान को हर रोज़  लगती है और प्रत्येक दिन एक मामूली नौकरी से अर्जित खुद के आय से ही भोजन उपलब्ध करवाना असंभव था। लेकिन मैं उन लोगों के लिए कार्य करना चाहता था, मैं इसके लिए उपाय के रूप में अपने मित्रों से संपर्क किया और उसे इस मुहिम के बारे में बताया। कुछ हिचकिचाये तो कुछ मदद करने को आगे आये। उन सबकी मदद से सेवा साप्ताहिक होने लगी।

हम लोगों को प्रतिदिन भोजन उपलब्ध करवाना चाहते थे, जिसके लिए आम जनमानस के सहयोग की नितांत आवश्यकता थी। प्रारंभ में लोगों से इस मुहिम के बारे में बात करने में काफी संकोच होता था क्योंकि वर्तमान समय में अधिकांश लोग केवल अपने ही स्वार्थ की पूर्ति करना चाहते हैं। ऐसे में डर लग रहा था कि लोग सहयोग करने के लिए राजी होंगे या नहीं। डरा- सहमा सा लोगों से मिलने जाया करता था। कुछ इसे पागलपन करार देते थे, तो कुछ इसे सराहनीय कार्य बताया करते थे। कुछ लोगों के सकारात्मक टिप्पणी से हौसला बढ़ता तो कभी-कभी कुछ नकारात्मक टिप्पणी से हिम्मत टूटता भी था।

शहर के विभिन्न घरों से प्रतिदिन भोजन संग्रह करना काफी कठिन कार्य था। खासकर बारिश और जाड़े के समय तो सेवा काफी कष्टप्रद रही, हमलोग दो-तीन मोटर साइकिल से शहर के विभिन्न क्षेत्रों से भोजन संग्रह का प्रबंध करना भी कठिन कार्य होता था। हमारे शहर की सड़कें बारिश के मौसम में जलमग्न और कीचड़मय हो जाया करती है। उन जोखिम भरे रास्तों से प्रतिदिन भोजन संग्रह करना काफी कष्टपूर्ण रहा। इसके वाबजूद रोटी बैंक, सहरसा की टीम का हौसला कम नहीं हुआ।

वर्तमान समय में टीम के सदस्य शाम में अपना कीमती वक़्त निकालकर आपसी सहयोग से लगभग 100 लोगों के लिए ताज़ा भोजन तैयार करते हैं, तत्पश्चात भोजन की गुणवत्ता की जाँच करके उसे शहर के विभिन्न हिस्सों में वितरित करते हैं। प्रतिदिन भोजन पकाने से लेकर वितरित करने में 3 से 4 घंटे का समय लगता है। इसके अतिरिक्त जिला मुख्यालय से 5 KM के दायरे में रात्रि में होने वाले किसी भी प्रकार के आयोजन में बचे खाने योग्य भोजन को सुबह संग्रहित किया जाता है और सुबह ही बाँटा जाता है। सुबह भी भोजन संग्रहण से लेकर वितरण में 3 से 4 घंटे का वक़्त लगता है। हमारे पास संसाधनों की काफी कमी है जैसे कि भोजन संग्रह और वितरण करने के लिए गाड़ी नहीं है, जिसकी वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है लेकिन हमें भरोसा है कि हम जिस कार्य में है उसमें आप सब का सहयोग और आशीर्वाद मिलता रहेगा।

(यह रोटी बैंक, सहरसा के श्री रौशन कुमार भगत से “कोसी की आस” टीम के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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