स्नेह राजहंस (संतोष कुमार)
कोसी की आस@सहरसा
मैं नेता, बलात्कारियों के सौदें में एक आसान सा व्यापार हूँ,
कैसे सुनूँ चीख तुम्हारी, मैं तो स्वयं ग़द्दारों का सरदार हूँ…..!!
नाम भी तो तेरे प्रियंका, निर्भया और ट्विंकल निकल आती हैं,
कैसे निकलेंगी कैंडल मार्च, मैं तो सेकुलरिज्म का ठेकेदार हूँ.!!
तुम्हारी कालिख़ पर, पुलिस वाले सफ़ेद रंग चढ़ायेंगे,
मीडिया न्यूज़ वाले तो, जिस्म के हर निशां से पैसे बनायेंगे..!!
बयानबाज़ी की बाज़ार में, ज़बरदस्त गरमाहट आएंगी,
कायरों की कमी कहाँ हैं, कुछ तो तुममें ही कमी बतायेंगे…!!
बहन तुम्हें आगे आना होगा, तुम्हें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा,
हिंजड़ों भाई से उम्मीद छोड़, अब तुम्हें अपने हाथों को लहूलुहान करना होगा..!!
साज़िशें गहरी चल रही है, तुम्हारी आबरू-ऐ-आस्था से खेलने की,
आँचल घूंघट से बाहर आ बहन, रक्त की रेत से तलवार को सजाना होगा..!!
सुनो..! बहन प्रियंका(रेड्डी), आज मैं मर्द होने पे शर्मसार हूँ,
क्या जवाब दूं, तुम्हारी तड़पती आत्मा को एक बार फ़िर मैं लाचार हूँ..!!