मैं हूँ ही नहीं

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तू ही मेरे पूजा हो,
तू ही मेरे इबादत हो,
तू ही मेरे मोहब्बत हो,
और तू ही मेरे नफ़रत भी हो।

तू ही मेरे किनारा हो,
तू ही मेरे सागर हो,
तू ही मेरे केवट हो,
और तू ही मेरे मांझी भी हो।

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तू ही मेरे गणित हो,
तू ही मेरे हिसाब हो,
तू ही मेरे सवाल हो,
और तू ही मेरे जवाब भी हो।

तू ही मेरे संकट हो,
तू ही मेरे निवारक हो,
तू ही मेरे सवारी हो,
और तू ही मेरे चालक भी हो।

तू ही मेरे कमज़ोरी हो,
तू ही मेरे ताक़त हो,
तू ही मेरे विफलता हो,
तू ही मेरे कामयाबी भी हो।

तू ही मेरे क़लम-किताब हो,
तू ही मेरे टीचर हो,
तू ही मेरे ज्ञान हो,
और तू ही मेरे स्कूल भी हो।

तू ही मेरे रोने की वज़ह हो,
तू ही मेरे मुसकुराने की वज़ह हो,
तू ही मेरे जिंदगी हो,
तू ही मेरे हक़ीकत भी हो।

एक सच और बोलूँ

मैं हूँ ही नहीं,
मैं भी तू ही हो।।

आज हमारे समाज में हो रहे मैं-मैं की लड़ाई के बीच सहरसा शहर के “स्नेह राजहंस उर्फ संतोष कुमार” द्वारा कोसी की आस टीम को यह कविता भेजी गई है। हम समस्त “कोसी की आस” परिवार की ओर से उन्हें शुभकामनाएं देते हैं और उनके कलम में माँ सरस्वती की कृपा बरसती रहे, यही कामना है।

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