मुश्किलों से जूझते हुये, स्वाध्याय से सफलता की लकीरें गढ़ने वाले सहरसा के बेटे रवि रंजन की कहानी।

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आज़ जहाँ समूचे देश में कई सरकारी शिक्षण संस्थानों में फीस बढ़ोतरी को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और उसमें भी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जहाँ यह मामला काफी जोड़ पकड़ा हुआ है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में NDTV से एक छात्र की बातचीत और उसके द्वारा फीस बढ़ोतरी के संबंध में दिये गए जबाब ने काफी हतोत्साहित किया। NDTV के रिपोर्टर ने जब JNU के एक छात्र से पूछा कि यदि सरकार फीस में बढ़ोतरी वापस नहीं लेती तो आप क्या करेंगे? उस तथाकथित होनहार छात्र का जबाब था कि यदि फीस में बढ़ोतरी वापस नहीं ली गई तो मैं घर चला जाऊँगा। यह बेहद शर्मनाक सोच को जाहिर करने वाला बयान था। ऐसा नहीं की मैं गरीब-जरूरतमंद को सरकार द्वारा मुफ़्त उच्च शिक्षा दिये जाने के खिलाफ़ हूँ, क्योंकि मुझे भी लगता है कि आए दिन विभिन्न प्रकार के सब्सिडी देने के बजाय एक बेहतर शिक्षा दे दी जाए तो शैने-शैने के बजाय हमेशा-हमेशा के लिए गरीबी का समाधान हो सकता है।

 “अगर हम हल का हिस्सा नहीं हैं,

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तो हम समस्या हैं।”

महान मोटिवेशनल गुरु और साहित्यकार “शिव खेड़ा” की महज़ दो लाइन की उपरोक्त पंक्ति हमें जीवन की सीख दे जाती है। जहाँ एक तरफ हमलोग अपनी छोटी-छोटी मुश्किलों से परेशान रहते हैं, वहीं यह पंक्ति हमें सिखाती है कि समस्या समझ, हाथ-पर-हाथ धरे रहने के बजाय हमें, समस्या के हल में भागीदार होना चाहिए। कोसी की आस” टीम आज़ अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 38वीं कड़ी में एक ऐसे ही ऊर्जावान व्यक्तित्व की कहानी से आपसभी को मुखातिब कराने जा रही है, जिन्होनें समस्या को कभी समस्या के रूप में न लेते हुये, बल्कि हमेशा उसके समाधान का रस्ता चुनने का फैसला किया। तो आइये मिलते हैं गौतम नगर, गंगजला, सहरसा के स्व. उर्मिलेश कुमार ठाकुर और श्रीमती आशा देवी के बेहद शांत और लक्ष्य के प्रति समर्पित प्रतिभावान पुत्र श्री रवि रंजन से और जानते हैं, उनकी अब तक की सफलता के कुछ अनछूये पहलू।

सहरसा शहर से ताल्लुकात रखने वाले रवि रंजन की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय शासकीय विद्यालय से हुई। 10वीं जिला स्कूल सहरसा (शासकीय) से 2010 में तथा 12वीं एम. एल. टी. कॉलेज, सहरसा से 2012 में प्रथम श्रेणी से उतीर्ण कर चयन परीक्षा के माध्यम से सफल होने के उपरांत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस (BHU) में अर्थशास्त्र से स्नातक के लिए रवि का नामांकन कारया गया।

बेहद सामान्य परिवार (आर्थिक मामले में) से आने वाले रवि के लिए असल में मुश्किलों का दौर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस (BHU) जाने के बाद से प्रारंभ हुआ। वहाँ आर्थिक कारणों से उनके लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना आसान नहीं था, लेकिन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में फीस बढ़ोतरी के दौरन आंदोलन कर रहे एक छात्र ने NDTV से बातचीत के दौरान जहाँ घर वापसी वाली बात की, वहीं रवि ने वैसा नहीं किया बल्कि समाधान के लिए कार्य किया। रवि वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में बनारस में ही बच्चों को ट्यूशन देने लगे और उससे होने वाली आय से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस (BHU) से ही अर्थशास्त्र विषय में 2015 में स्नातक और 2017 में परास्नातक प्रथम श्रेणी से पूर्ण किया।

ट्रैवलिंग में रुचि रखने वाले बहुत ही सरल स्वभाव के श्री रवि आगे बताते हैं कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस (BHU) में मेरी लिए सबसे बड़ी समस्या स्वाध्याय को लेकर रही। कॉलेज के क्लासेस के बाद और ट्यूशन देने के बाद मुझे अपने लिए काफी कम वक्त मिल पता था, फिर भी मैंने एकेडमिक के साथ-साथ कॅरियर के दृष्टिकोण से सामान्य प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी जारी रखा।

अपनी सफलता के लिए अपने दोस्तों को प्रेरणा स्रोत मानने वाले श्री रवि सफलता का श्रेय भी परिवार के आलवे अपने विश्वविद्यालीय मित्रों को देते हुये कहते हैं कि मुझे वहाँ उनलोगों से काफी कुछ सीखने को मिला और उन्हीं लोगों की वजह से स्नातकोत्तर के साथ-साथ मेरा चयन भारतीय रेल में सहायक स्टेशन अधीक्षक के पद पर हुआ।

भारतीय रेल में सहायक स्टेशन अधीक्षक के पद पर चयन के कुछ ही महीने बाद श्री रवि ने भारतीय लेखा एवं लेखापरीक्षा विभाग के सहायक लेखापरीक्षा अधिकारी पद पर सफलता पाई और वर्तमान में इसी पद पर कार्यरत हैं। उनकी इस सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में जब श्री रवि से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि कमजोर आर्थिक स्थिति जिसकी वजह से मुझे विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय परिवार से पर्याप्त आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाया एवं विश्वविद्यालय में नियमित क्लास करने के साथ-साथ शाम में अपना खर्च वहन करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था, जिससे मेरे पास स्वाध्याय के लिए पर्याप्त समय शेष नहीं रह पाता था।

“कोसी की आस” टीम के सदस्य ने जब श्री रवि से जब वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे? सवाल किया तो बेहद विनम्रता के साथ रवि ने बताया, उसी के शब्दों में “मार्ग में आ रही चुनौतियों एवं असफलताओं से घबराए बिना अपने निर्धारित कर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करते रहे, एकसाथ विभिन्न तरह के प्रतियोगिताओं पर ध्यान लगाने के बजाय, अपनी क्षमता एवं संसाधनों के हिसाब से एक तरह की प्रतियोगिता पर ध्यान लगाए, इससे आप इस बढ़ती प्रतियोगिता के दौर में भी अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लेंगे”।

रवि रंजन के इस बेहतरीन और संघर्षपूर्ण सफलता के लिए कोसी की आस परिवार की ओर से बहुत-बहुत शुभकामना, साथ ही जैसा श्री रवि ने बताया कि अब उनका लक्ष्य प्रशासनिक सेवा में जाने का है, कोसी की आस परिवार उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ आशा करती है कि जल्द ही उन्हें अपने नए लक्ष्य में कामयाबी मिले। साथ ही कोसी की आस परिवार अपने सभी पाठकों से कहना चाहती है कि मुश्किलों का सामना करिए, मुश्किलों से भाग सफलता नहीं पाई जा सकती, वक्त है मुश्किलों से मुक़ाबला करने का।

(यह रवि रंजन से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

 

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