रितेश : हन्नी
कोसी की आस@सहरसा
भारतीय संगीत-कला भी धर्म से प्रभावित थी
भारतीय संगीत मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान समय में शास्त्रीय संगीत जिस रूप में हम सभी के समक्ष है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि इसका इतिहास वैदिक काल से जुड़ा है, इसका उल्लेख अधिकतर सामवेद में देखने को अधिक मिलता है। सामवेद उन वैदिक ऋचाओं (अर्थात वैदिक श्लोक, मंत्र) का संग्रह मात्र है, जो गाये जाने योग्य है। प्राचीन काल से ही ईश्वर की आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परंपरा रही है। ध्यान देने की बात यह है कि प्राचीन काल में अन्य कलाओं के समान भारतीय संगीत-कला भी धर्म से प्रभावित थी।
वास्तव में संगीत की उत्पत्ति धार्मिक प्रेरणा से ही हुई है, परन्तु धीरे-धीरे यह धर्म को विभाजित करते हुए लौकिक जीवन से जुड़ती गई और इसी के साथ गायन-कला, वादन-कला एवं नृत्य-कला के नए-नए रूपों का अविष्कार होता चला गया। कुछ समय पश्चात नाट्य-कला भी संगीत का हिस्सा बन गया, समय के साथ-साथ संगीत की विभिन्न धाराएँ विकसित होती गई, हमारा यह भारतीय संगीत अनेक महान-विभूतियों के योगदान के परिणाम स्वरूप ही इतना विशाल रूप धारण कर सका है।
भारतीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से जानी जाती है
वेदों का मूल मंत्र है
ॐ (ओ३म् ) इसमें तीन अक्षर सम्मिलित है, जो क्रमशः ब्रम्हा अर्थात सृष्टि-कर्ता, विष्णु अर्थात जगत-पालक, महेश अर्थात संहार-कर्ता की शक्तियों का समावेश है। इन तीनों अक्षरों को ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद से लिया गया है। संगीत के साथ स्वर षड्ज (सा) ऋषभ (रे) गंधार (ग) मध्यम (म) पंचम (प) धैवत (ध) और निषाद (नी) से ही लिया गया है। साथ ही स्वर अर्थात शब्द की उत्पत्ति ओ३म् के गर्व से ही हुई है। मुख से उच्चारण शब्द ही संगीत में नाद का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार ॐ को ही संगीत का जगत कहा जाता है। इसलिए कहा जाता है, जो साधक ॐ की साधना में समर्थ होता है,वही संगीत को यथार्त रूप से ग्रहण करता है। ॐ अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि का एक अंश हमारी आत्मा में निहित है और संगीत उसी आत्मा की आवाज़ है। अतः संगीत की उत्पत्ति हृदय-गत भावों में ही मानी जाती है। एतिहासिक दृष्टि से भारतीय संगीत की परम्परा प्राचीन काल से ही रही है, परन्तु वैज्ञानिक मतानुसार संगीत का प्रारंभ सिंधु-घाटी के काल में हुआ। हालांकि इस दावे का एक मात्र साक्ष्य उस समय की नृत्य-बाला की मुद्रा, नृत्य, नाटक और संगीत की देवी की पूजा का प्रचलन। सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात ही वैदिक संगीत का प्रारंभ हुआ।
जिसमें संगीत की शैली में भजनों और मंत्रों के उच्चारण से पूजा अर्चना की जाती थी। इसके अतिरिक्त दो भारतीय महाकाव्यों (रामायण, महाभारत की रचना ) में भी संगीत का अधिक प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली और पद्धति में जबरदस्त परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकार जैसे कि स्वामी हरि-दास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि कलाकारों ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया। जिसके कृति को पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी आदि महान संगीतकारों ने आज के युग में इसे कायम रखा है। भारतीय संगीत में यह माना गया है की संगीत के आदि प्रेरक शिव और सरस्वती है, इसका उद्देश्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को वीणा की देवी प्रेरणा को केवल अपने दम पर विकसित नहीं कर सकता।
लेखिका- सुष्मिता झा
(गायन, वादन व नृत्य के क्षेत्र से जुड़ी हैं)