बड़े ही निष्ठा के साथ मनाया गया चैती छठ का खरना

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एन के सुशील

कोशी की आस@सुपौल

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लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ कल नहाय खाय के साथ शुरू हो गया। आज रविवार को अनुष्ठान के निमित खरना और सोमवार को अस्त-चलगामी भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। मंगलवार को उदयगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ ही लोक आस्था के इस महान पर्व का समापन हो जाएगा। इस बार कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर पूरे देश में लॉक डाउन है। व्रती नदी अथवा तालाब के घाट पर नहीं जाएंगे। फल व पूजा सामग्री की खरीद में भी लोगों को काफी परेशानी हो रही है। इसलिए सभी आस्थावान श्रद्धालु अपने अपने घरों में ही 1 मीटर की दूरी को ध्यान में रखकर परिजनों के साथ ही पर्व मनाएंगे। पर्व के निमित आज खरना पूजा किया गया।

लोक आस्था का महापर्व है छठ

बताया जाता है कि पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं था, तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई है, इसी कारण वो षष्ठी कहलाती है। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ पूजा होती है।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया था। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अ‌र्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अ‌र्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

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