बाल दिवस विशेष, सुपौल के त्रिवेणीगंज में कचरे के ढेर में भविष्य तलाश रहे हैं बच्चे, सरकार बेखबर।

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सोनू/अक्षय

कोसी की आस@सुपौल

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अपनी सी लगती यह धरती, अपना ही लगता है गगन,

आसमा की बुलंदी के एहसास में, जीता है मन,

जीवन को कहानी नूर है, वह अतुल जीवन क्या कहें,

कितना अनमोल है वह प्यारा बचपन

 

बाल कवि अंशुमन दुबे की यह पंक्ति हर किसी के बचपन की याद ताजा कर रही है। बचपन जीवन का सबसे सुंदर हिस्सा है। यही वह समय है जब हमारी अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहाँ न भाग दौर है, ना किसी चीज की चिंता। अपनें में मस्त रहना मुख्य ध्येय है। वो बारिश में झूलना, मिट्टी में खेलना, मां की लोरियों और पिता की डांट, जवानी में तो यह सब पाप की तरह लगता है। क्या यही जीना है? जब बचपन याद आ जाता है, तब एक पल के लिए दिल करता है कि काश बचपन फिर से आ जाए। यह सारी बात बचपन को लेकर कहीं गई है।

त्रिवेणीगंज में कचरे के ढेर में भविष्य तलाशते बच्चें

त्रिवेणीगंज प्रखंड में दर्जनों के संख्या में ऐसे बच्चें सुबह से लेकर शाम तक बाजार के विभिन्न मोहल्ला में कचरे ढूढ़ते नजर आते हैं, लेकिन बिभागीय पदाधिकारी इसपर रोक लगाने में विफल साबित हो रहीं है। पढने लिखने की उम्र में बच्चों पर परिवार की जिम्मेदारियां का बोझ डाल दिया जाता है। मालूम हो कि प्रखंड के अधिकांश मिठाई, चाय की दुकानों, होटलों आदि में अभी भी बच्चे खुलेआम काम करते हैं। मोटर साइकिल रिपेयरिंग की दुकानों, ईंट भट्टा पर कई बाल मजदूर काम करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मकान निर्माण काम में ईंटें ढोते हुए बाल मजदूर दिखाई पड़ते हैं। इतना ही नही कई जानें माने बड़े ठेकेदार भी बच्चों को काम पर लगाते हैं। मजे की बात तो यह हैं कि त्रिवेणीगंज बाजार के मध्य से गुजरने वाली एनएच 327 ई पर जिले के आला अधिकारी का भी दिनभर आना-जाना लगा रहता हैं लेकिन विभिन्न होटलों में काम कर रहें बाल-मजदूर पर किसी का ध्यान नहीं जाता हैं, जिसका परिणाम यह हैं कि अभी भी प्रखंड के सेकड़ो दुकानों में धड़ल्ले से बाल मजदूर चल रहीं हैं और बच्चें कचरे के ढेर में भविष्य तलाश रहें हैं।

अपराध की दुनिया में चले जाते हैं ऐसे बच्चे…

ऐसा भी नहीं है की यदि सरकर और समाजसेवी या यूँ कहें की सामाजिक एवं प्रशासनिक प्रयास से इन नौनिहालों की जिंदगी सँवारी नहीं जा सकती। नाजुक उम्र में ही ये बच्चे बीड़ी, सिगरेट एवं गुटखे आदि का भी सेवन करने लगते हैं एवं छोटी उम्र में वे बड़े-बड़े सपने देखने लगते हैं। जब उनके सपने पूरे नहीं होते हैं तो ये जाने-अनजाने में स्थानीय असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंसकर अपना जीवन भी बर्बाद कर लेते हैं और इन्हीं में से कुछ आगे चलकर अपराधी भी बन जाते हैं। स्थानीय स्तर पर सामाजिक एवं प्रशासनिक प्रयास से देश के इस भविष्य को अंधकारमय होने से बचाया जा सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस देश की सरकार बच्चों के लिए समय-समय पर अनिवार्य शिक्षा कानून बनाती है, उसी देश में बच्चे कबाड़ बिनने के लिए विवश दिखाई देते है। यह हम सबके लिए भी बेहद ही शर्मनाक है।

क्या कहते हैं अनुमंडल लेबर इंस्पेक्टर…

इस संबंध में पूछे जाने पर अनुमंडल लेबर इंस्पेक्टर विधानचंद कुमार ने कहा कि यदि किसी भी बच्चे के संबंध में जानकारी मिली, तो धावा दल अनुमंडल में इसकी विरुद्ध छापेमारी करेगी।

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