सुपौल : “भाग मिल्खा भाग” और “की & का” फिल्म में Assistant Cinematographer और दर्जनों सफल फिल्मों में Cinematographer रहे किसान के बेटे “साकेत” की कहानी।

0
637
- Advertisement -

आज भी भारत का एक बड़ा वर्ग अपने बच्चों के कॅरियर के दृष्टिकोण से परंपरागत पढ़ाई पर ही ज़ोर देता है और उनसे डॉक्टर / इंजीनियर आदि बनने के ही सपने देखते हैं। इस गहरे सामाजिक लकीर से हटकर असीमित संभावनाओं से लबालब सैकड़ों क्षेत्रों में हिलोरे मारने की इजाज़त 21 वीं सदी में भी युवाओं के लिए आसान नहीं है। ख़ास कर ग्रामीण, गरीब और मध्यमवर्गीय पारिवारिक पृष्टभूमि से आने वाले युवाओं को, मानो ऐसा लगता है कि 21 वीं सदी में भी, वो हजारों सपने देख तो सकते हैं किन्तु जी नहीं सकते। उन सपने देखने वाले तमाम युवाओं के लिए एक चर्चित पंक्ति साझा करना चाहूँगा कि

“नींद में देखे गए सपनों से बड़े वो सपने होते हैं,

- Advertisement -

जिनके सुरूर में हम नींद खो बैठते हैं।”

लेकिन वो कहते हैं न, कि किस्मत कब किसको कहाँ ले जाएगी और कल आप कहाँ रहेंगे, इसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। लेकिन हाँ, आप चाहे संयोग से या अपनी मेहनत से जहाँ भी पहुँचे, वहाँ या उस क्षेत्र में आपकी सफलता आपके उस क्षेत्र की समझ विकसित करने की क्षमता और आपके मेहनत पर निर्भर करता है। आज़ कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 35वीं कड़ी में ऐसे ही एक प्रेरक व्यक्तित्व की कहानी प्रस्तुत करने जा रही है, जिनका प्रारंभिक जीवन न केवल संघर्षपूर्ण रहा बल्कि स्नातक तक वो अपने कॅरियर के प्रति स्पष्ट भी नहीं थे कि आख़िर किस क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना है या यूँ कहें कि मन में अलग-अलग तरह के कॅरियर विकल्प थे लेकिन उनमें से एक चार्टर अकाउंटेंट के तैयारी के लिए जब वे दिल्ली गए और कुछ दिन तैयारी भी की, तो उन्हें लगा कि हम क्या कर रहे हैं? और फिर अपने सपने को जीने मायानगरी जाने का फैसला करने वाले शख्सियत और थरबिट्टा, किशनपुर, सुपौल के श्री अशोक कुमार और श्रीमति सुलेखा देवी के प्रतिभाशाली छोटे सुपुत्र साकेत सौरभ उर्फ “अन्नु” से कोसी की आस” टीम के सदस्य की बातचीत का अंश आपलोगों से साझा करते हैं।

 

जिला स्कूल सहरसा से 2003 में 10वीं और आर एम कॉलेज सहरसा से 2003-2005 सत्र में 12वीं करने वाले सामान्य किसान परिवार से आने वाले श्री साकेत बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उस वक्त सहरसा में भी पढ़ाई के उतने अच्छे साधन नहीं थे लेकिन सहरसा की स्थिति गाँव के शैक्षणिक स्तर से ठीक थी लिहाजा मुश्किल परिस्थिति में भी सहरसा से पढ़ाई की। वो कहते हैं कि मैं जब 12वीं में था, तब तक बड़े भैया (सुमित सौरभ उर्फ “मन्नू” जो इंजीनियरिंग और मेडिकल के बच्चों को Inorganic Chemistry पढ़ाते हैं) पटना में Inorganic Chemistry के शिक्षक के रूप में चर्चित हो रहे थे। मैंने भी पटना जाने का निर्णय लिया और स्नातक के लिए पटना विश्वविद्यालय में सत्र 2005-2008 नामांकन करवा लिया।

दर्जनों सफल फिल्मों में Assistant Cinematographer और Cinematographer का कार्य करने वाले और वर्तमान में Director of Photography का कार्य करने वाले साकेत सौरभ उर्फ “अन्नु” बेबाक शब्दों में बताते हैं कि यूँ तो बचपन से स्नातक तक विभिन्न प्रकार के आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, कभी-कभी तो सब कुछ छोड़ देने का मन करता लेकिन उन सबसे ज्यादा समस्या स्नातक पूरी करने के बाद हुई। मैं सच बताऊँ तो मैं सोच नहीं पा रहा था आख़िर मैं क्या करूँ? मैं कहाँ जाऊँ? कई सारे कॅरियर विकल्प मन में चल रहे थे लेकिन उनमें से एक चार्टर अकाउंटेंट के तैयारी के लिए मैंने दिल्ली जाने का निर्णय किया। मैंने चार्टर अकाउंटेंट के लिए पढ़ना शुरू कर दिया लेकिन मेरी रुचि उसमें नहीं हो रही थी, मैंने अपने निर्णय पर ही सवाल उठाया कि आख़िर मैं क्या कर रहा हूँ? दरअसल स्नातक और दिल्ली जाने के बीच की अवधि में, मैं कुछ दिन Volunteer के रूप में पटना के Theatre में काम किया था। वहाँ जो उस छोटे से वक्त में जो खुशी मिलती थी, मैं कहीं-न-कहीं उससे दूर जा रहा था।

श्री साकेत आगे बताते हैं कि मैं अपने आपको दिल्ली में और नहीं रोक सका और मैंने कोलकाता जाने का निर्णय किया क्योंकि सिनेमा के लिए दिल्ली से बेहतर स्थान कोलकाता था। कोलकाता वैश्विक सिनेमा का केन्द्र माना जाता था और मुझे लगा कि मैं अपनी स्किल को और निखार पाऊँगा लिहाजा 2009 में मैं कोलकाता शिफ्ट हो गया। मैंने वहाँ Still Photography से कार्य प्रारंभ किया लेकिन जल्द ही मुझे अहसास हो गया कि मेरी रुचि Cinematography में है। एक बार फिर से मैं दोराहे पर खड़ा था, मेरे पास दो विकल्प थे, पहला में मुंबई जाकर Cinematography के क्षेत्र में संघर्ष करूँ या फिर Cinematography में पहले उच्च शिक्षा प्राप्त करूँ। मैंने Cinematography में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उदेश्य से LV Prasad Film and Television Academy, Chennai (2010-2012) में नामांकन करवा लिया।

क्लासिकल म्यूजिक सुनने, कला के विभिन्न स्वरूप का तलाश करने, बाइकिंग और अकेले यात्रा के शौकीन श्री साकेत से जब कोसी की आस टीम के सदस्य ने सवाल किया कि आपको इस कार्य के लिए प्रेरणा कहाँ से मिला तो उन्होंने जो जबाब दिया हम उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत कर रहे हैं “देखिये मेरे संदर्भ में यह सवाल ही गलत है, यह एक महज़ संयोग कहिए कि मैंने कई प्रयास किए जैसे 9 to 5 job, CA preparation, theatre, photography etc and finally decided to go ahead with Cinematography where I knew I would give my 100%.”

FTII, Pune में पूर्व में चयनित और लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनी सफलता का श्रेय देने वाले साकेत सौरभ उर्फ “अन्नु” ने इस भागम-भाग वाले समय में युवाओं और समाज के लिए संदेश के रूप में बहुत ही कम शब्दों में जो बड़ी बात कह दी कि “आप में अपार संभावनाएं हैं, उसे तलाश करते रहें”।

 साकेत सौरभ उर्फ “अन्नु” के अब तक बॉलीवुड में विभिन्न क्षेत्र में किए गए कार्य का विवरण निम्न है-

Director of Photography

Cinema (Associate)

Bhag milkha bhag

Shamitabh

Ok Kanmani (Tamil),

Ki and Ka

I (Tamil)

Ulidavaru Kandanthe(Kannada)

Jomer Raja Dilo bor (Bangali)

Cinematography

The lost Behrupiya (Winner of the 61st National award, Art & Cultural Category, Non-feature film)

Naya Pata (PVR Director’s Rare Release)

Swara (Directed by acclaimed director Akash Khurana)

Spring Thunder (Directed by National award winner)

Aadha chand tum rakh lo (screened at Cannes 2018)

I am Draupadi (Starring Bidita bag & Rajit Kapoor, upcoming 2019

अंत में जब उनसे उनकी इस सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने फिर से एक खूबसूरत जबाब से प्रभावित किया, उनका जबाब था कि “मैं नहीं समझता कि यह सब संघर्ष था, मैं इसे प्रक्रिया का हिस्सा समझता हूँ।”

 श्री अन्नू के इस खूबसूरत सोच को एक पंक्ति के माध्यम से बताना चाहूँगा कि

“जिस प्रकार बिना लहरों और तूफान वाले पानी में नाविक कभी कुशल कप्तान नहीं बन सकता,

उसी तरह कठिनाइयों का सामना किए बगैर जिंदगी का भी कुशल कप्तान नहीं बना जा सकता है।”

कोसी की आस परिवार अपने सभी पाठकों से कहना चाहती है कि साधन का रोना रोने, परिवार और समाज का दबाब, सही समय में सही निर्णय आदि जैसे अन्य समस्याओं को गिनते रहने से सफलता नहीं मिलती, अगर सच में हम सफल हो कुछ करना चाहते हैं, तो उसके लिए पैसा, पावर और सहयोग से ज्यादा उस लक्ष्य को पाने की हमारी ललक और समर्पण पर निर्भर करता है।

(यह साकेत सौरभ उर्फ “अन्नु से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

निवेदन- अगर यह सच्ची और प्रेरक कहानी पसंद आई हो तो लाइक/कमेंट/शेयर करें। यदि आपके आस-पास भी इस तरह की कहानी है तो हमें Email या Message करें, हमारी टीम जल्द आपसे संपर्क करेगी। साथ ही फ़ेसबूक पर कोसी की आस का पेज https://www.facebook.com/koshikiawajj/ लाइक करना न भूलें, हमारा प्रयास हमेशा की तरह आप तक बेहतरीन लेख और सच्ची कहानियाँ प्रस्तुत करने का है और रहेगा।

टीम- “कोसी की आस” ..©

 

- Advertisement -