दबंगों को सबक़ सिखाने दारोगा बनी “अमृता” की कहानी

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एक पंक्ति है कि “जुनून और मेहनत का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता”, जीवन में जब भी कोई आगे बढ़ना चाहा है तो विभिन्न प्रकार के बाधाओं ने बार-बार रास्ता रोकने का काम किया है, नए-नए अकल्पनीय बाधाओं से आए दिन सामना होना अधिकांश सफल हुये लोगों के लिए आम बात थी किन्तु इन परिस्थितियों में भी जिसने हिम्मत नहीं हारी या परेशान होने के बाबजूद या फिर यूँ कहें कि गिरे, गिरकर उठे वाले अर्थ के साथ अपने जोश, जुनून और मेहनत को जिंदा रखा, उन्होंने सफलता का स्वाद अवश्य चखा है। आज की कहानी किसी भी क्षेत्र में सफलता तलाश रहे उन सभी प्रतिभागीयों के बेहद महत्वपूर्ण है, जो उत्साह के साथ प्रयास करते हैं किन्तु आए दिन कोई-न-कोई बधाएँ, रुकावट बन सामने आ जाती हैं, सफलता के लिए प्रयासरत युवाओं से कोसी की आस” टीम आज के कहानी के माध्यम से बस इतना कहना चाहती है कि जीवन में आने वाली बाधाओं को सिर्फ बाधा, न कि रुकावट बनने दें, सफलता का स्वाद अवश्य मिलेगा।

क्या ख़ूब कहा है

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 “पतझड़ हुए बिना, पेड़ पर नए पत्ते नहीं आते,

ठीक उसी तरह परेशानी और कठिनाई सहे बिना,

किसी इंसान के अच्छे दिन नहीं आते।

 

आज कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 20वीं कड़ी में आपको कुछ ऐसे ही परिस्थिस्तियों से गुजरकर सफलता पाने वाली “कोसी की बेटी” की कहानी बताने वाली है। एक सामान्य परिवार में सामान्य जीवन जी रही इस “कोसी की बेटी” के जीवन को एक अकल्पनीय घटना ने बदलकर रख दिया। उनके पापा का सुपौल जिले में सड़क के किनारे एक सहकारी जमीन पर अपनी दुकान थी और उससे होने वाली आय से परिवार का भरणपोषण होता था लेकिन अचानक एक दिन आस-पास के दबंगों द्वारा उन्हें उस दुकान से बेदखल कर दिया गया और परिवार का जीविकोपार्जन का स्रोत समाप्त हो गया। उसके बाद से इस “कोसी की बेटी” का जीवन बहुत मुश्किल हो गया और आए दिन नई-नई मुसीबत लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और गिरे, गिरकर उठे वाले रास्ते को चुनते हुये, अपना प्रयास अनवरत जारी रखा और आज उसी समाज में अपनी सफलता से अलग पहचान बनाई है। आइये जानते श्रीमती कुमोद देवी और श्री इंद्रदेव सिंह की बहादुर सुपुत्री और श्री संतोष कुमार सिंह की होनहार अर्धांगनी श्रीमती अमृता सिंह से से बातचीत के प्रमुख अंश:-

  1. व्यक्तिगत परिचय

नाम         :-       श्रीमती अमृता सिंह

माता         :-      श्रीमती कुमोद देवी

            पिता         :-     श्री इंद्रदेव सिंह

            पति          :-    श्री संतोष कुमार सिंह

शिक्षा- 10वीं   :-     बी बी गर्ल्स हाई स्कूल, सुपौल (2005)

                12वीं   :-     बी एस एस कॉलेज सुपौल (2007)

             स्‍नातक :-     बी एस एस कॉलेज सुपौल (2010)

परास्नातक :-    पी जी सेंटर सहरसा (2012)

  1. ग्राम +पोस्‍ट   :     वार्ड नंबर 9, सुपौल।
  2. जिला :-     सुपौल।
  3.  पूर्व में चयन   :-     एक मात्र चयन।
  4. वर्तमान पद     :-   पुलिस अवर निरीक्षक (S.I.)
  5. अभिरूचि       :-   अध्यापन।
  6. किस शिक्षण संस्‍थान से आपने तैयारी की:-  श्रीमती अमृता बेबाकी से बोलती हैं कि मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है, आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मैं कभी किसी शिक्षण संस्थान में तैयारी नहीं कर पाई। मेरी सफलता खुद से की गई मेहनत, ईश्वर की असीम अनुकंपा, माता-पिता का आशीर्वाद तथा पति और सासू माँ का अविश्वसनीय सहयोग का परिणाम है।
  7. आपको प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की प्रेरणा कहाँ से मिली:- प्रतियोगी परीक्षा की प्रेरणा का श्रेय किसी एक व्यक्ति या घटना को देना मुश्किल है। इस संघर्ष में हर कदम पर मुझे किसी-ना-किसी व्यक्ति का प्रेरित करने वाला साथ मिला है। सर्वप्रथम मेरी माँ-पिता जी का आशीर्वाद और उनका प्रोत्साहन तथा शादी के बाद मेरे पति श्री संतोष कुमार सिंह और मेरी सासू माँ का सहयोग के आलवे समय-समय पर जिन्होंने मुझे प्रेरित करने का कार्य किया उनमें से कुछ का नाम लेना चाहूँगी………

मुँहबोले चाचा श्री कुमार रौनक (सी बी आई में कार्यरत), प्रोफेसर विजय वर्मा, श्री ओम शंकर कुमार, श्री विकास कुमार (एफ़ सी आई में कार्यरत) और श्री दुर्गेश कुमार (रेलवे में कार्यरत)।

अरे एक सबसे महत्वपूर्ण बात तो मैं बताना ही भूल गई कि मेरे परिवार के साथ घटित घटना, जिसमें मेरे पापा को कुछ दबंगों द्वारा खुद के ही दुकान से बेदखल कर दिया गया था, ने भी कहीं-न-कहीं मुझे कुछ बनने, कुछ करने को मज़बूर किया।

  1. आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:-मैं अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ, पिताजी, पति, सासु माँ और अपने दिवंगत देवर को देना चाहती हूँ। उन सभी ने कठिन परिस्थितियों में भी मेरे हिम्मत को टूटने नहीं दिया और मुझे प्रयास करने को न सिर्फ प्रोत्साहित किया बल्कि हमेशा मेरे साथ खड़े रहे।
  2. वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्‍या संदेश देना चाहते हैं:- मैं प्रतियोगी परीक्षा में शामिल हो रहे मित्रों से यही कहना चाहूँगी कि खुद पर यकीन रखें और अपने लक्ष्य पर फोकस रहें। हतोत्साहित करने वाले व्यक्तियों से दूर रहे, सकारात्मक सोच रखें और अभ्यास करते रहें, मेहनत का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता। शॉर्टकट से बचें तथा तकनीक का सही इस्तेमाल करें। आज इंटरनेट पर अच्छी तथा बुरी चीजें भरी पड़ी है, हम क्या ग्रहण करते हैं? यह हमारी सोच और लक्ष्य पर निर्भर करता है। वर्तमान समय में तकनीक का सहारा लेकर मध्यम और छोटे गांव के विद्यार्थी भी अभ्यास से सफलता प्राप्त कर सकते हैं और मैं आज उस अनेक उदाहरणों में से एक आपसबके सामने हूँ।
  3. अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं :इस सवाल के जबाब में श्रीमती अमृता बताती हैं कि आपने तो इस सवाल के द्वारा मेरे पुराने ज़ख्म को फिर से याद दिला दिया, मैं उन सब बातों को फिर से याद नहीं करना चाहती, ख़ैर कोई नहीं, क्यों न याद करूँ, आख़िर उन परिस्थितियों ने ही तो मुझे इतना मज़बूत बनाया। आगे उन्होंने बताया, मेरे पिताजी की सरकारी सड़क के बगल में सहकारी जमीन पर ही अपनी दुकान थी, जिसे कुछ दबंगों द्वारा जबरन कब्जा कर पापा को वहाँ से बेदखल कर दिया गया। उसी दुकान से हमारे परिवार का जीवन यापन चलता था। दुकान छिन जाने के बाद हमारे घर में खाने के लाले पड़ गए, तब मैं घर में अपनी ओर से कुछ आर्थिक मदद करने के लिए एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी और घर पर ही बच्चों को ट्यूशन भी देने लगी। कहते हैं ना कि मुसीबत आती है, तो चारों ओर से आती है, कुछ ही समय पश्चात मेरे छोटे भाई आलोक का भयानक एक्सीडेंट में चेहरा और गला पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। उसके इलाज में रही-सही जमा पूंजी भी चली गई साथ ही कर्ज लेकर इलाज करवाया गया। भगवान का शुक्र था जान तो बच गया पर वह अब कभी नाक से सांस नहीं ले पाएगा। वह डॉक्टर के द्वारा गले में किए गए छिद्र से ही सांस ले पाता है। आर्थिक तंगी के कारण मेरे एक और छोटे भाई कुमार अमरजीत की पढ़ाई छूट गई। कुछ समय बाद मेरे छोटे देवर की अचानक मृत्यु हो गई, एक बार फिर से मैं उसी दोराहे पर खड़ी थी।तनाव और आर्थिक परेशानी ने झकझोर कर रख दिया था। लेकिन जो पंक्ति मुझे हमेशा हिम्मत देती थी आपको बताना चाहूँगा कि

“जीवन में मुसीबत आये तो कभी घबराना मत
गिरकर उठने वाले को ही बाजीगर कहते हैं।”

इसे ईश्वर का आशीर्वाद ही कहा जा सकता है कि मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी और मेरे पति और सासू माँ ने हमेशा मेरा साथ दिया और परिणाम आपके सामने है, आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया।

अमृता सिंह जिन्होंने 01/06/2019 को अपने इस नए ज़िम्मेदारी को संभाल लिया है, “कोसी की आस” परिवार की ओर से उनको बहुत-बहुत शुभकामनायें, श्रीमती अमृता के लिए अब तक के जीवन और भविष्य को ध्यान में रखते हुये पंक्ति समर्पित करना चाहूँगा कि

“अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाँकी है,
अभी तो इस परिंदे का इम्तिहान बाँकी है,
अभी-अभी मैंने लांघा है समुंदरों को,
अभी तो पूरा आसमान बाँकी है।”

(यह अमृता सिंह से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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