ग्रामीण क्षेत्रों में लोकपर्व सामा-चकेबा धूम धाम से मनाया गया

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सुपौल : बहनों का त्योहार सामा-चकेबा छातापुर प्रखंड मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में भी आज की रात धूमधाम से मनाया गया। महिलाएं मिट्टी से सामा चकेबा की प्रतिमा तैयार कर पूजा अर्चना की। मालूम हो कि सामा-चकेवा मिथि लांचल का एक प्रसिद्ध त्योहार रहा है। भाई-बहन के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाने वाला यह त्योहार नवंबर माह के शुरू होने के साथ मनाया जाता है। सामा चकेबा का वर्णन पुराणों में भी मिला है।

कहा जाता है कि सामा कृष्ण की पुत्री थी जिनपर गलत आरोप लगाया गया था, जिसके कारण सामा के पिता श्रीकृष्ण ने गुस्से में आकर उन्हें मनुष्य से पक्षी बन जाने की सजा दे दी। लेकिन अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुनः पक्षी से मनुष्य के रूप में आ गयी।

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भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक लोक पर्व मनाये जाने हेतु गत कई दिनों से महिलाओं द्वारा सामा चकेवा के साथ-साथ चुगला-चुगली एवं बैंड वादकों की प्रतिमाओं को मूर्त रूप देने का कार्य किया गया था। आज कार्तिक पूर्णिमा की संध्या सभी प्रतिमाओं के लिए विशेष घर का निर्माण कर नये धान का चूड़ा, दही तथा शक्कर का भोग महिलाओं द्वारा लगाया गया। सभी प्रतिमाओं के विदाई का रस्म पूरा किया गया।

सामा चकेवा को लेकर रविवार को देर संध्या तक व्यापक उत्साह का माहौल बना रहा। इस दौरान सामा चकेवा, सतभैयां, चुगला आदि प्रतिमाओं को डाली में रखकर महिलाएं अपने घर के आगे झुंड में बैठकर पर्व को परमपरागत ढंग से मनाई। इसके अलावे नयी धान की चूड़ा, दही, गुड़ आदि की व्यवस्था भी की गयी। चुगला का मुंह जला कर निभायी परंपरा। आस्थावान महिलाएं अपनी परिजन समेत सहेलियों की टोली में मैथिली लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकली। उनके हाथों में बांस की बनी टोकरियों में मिट्टी से बनी हुई सामा-चकेवा व पक्षियों एवं चुगिला की मूर्तियां थी।

मान्यता है कि चुगला ने ही कृष्ण से सामा के बारे में चुगलखोरी की थी। सामा खेलते समय महिलाएं मैथिली लोक गीत गा कर आपस में हंसी-मजाक भी करही थीं। वहीं भाभी-ननद से और ननद-भाभी से लोकगीत की ही भाषा में ही मजाक व ठिठोली भी की। इसके उपरांत चुगलखोर चुगला का मुंह जलाया गया। इस लोक पर्व को लेकर महिलाएं समेत बच्चों में व्यापक उत्साह दिखा।

एन के सुशील
कोशी की आस@सुपौल

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