आज “कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 7वीं कड़ी में आपको एक “पटाखे बेचने वाले छात्र के SSC (CGL) में CBI उप-निरीक्षक में समूचे भारत में प्रथम स्थान (Rank-01) के साथ सीबीआई (CBI) में अधिकारी बनने” की कहानी बताने जा रही है। यह बातचीत मुख्यरूप से उन सभी छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है जिनकी इच्छा मुश्किल परिस्थितियों में भी अपने पसंद के लक्ष्य पाने की होती है। “कोसी की आस” टीम अपने सभी पाठक से कहना चाहती है कि यदि आपने कोई लक्ष्य तय किया है? तो उसके बारे में सारी जानकारी प्राप्त करें, अपना आकलन करें कि उस लक्ष्य को पाने में हम कहाँ तक सक्षम हैं? यदि हमारे में उस लक्ष्य को पाने संबंधी योग्यता में कहीं कमी है, तो उसको कैसे ठीक किया जा सकता है? उसे ठीक करने में अपनी सारी ताकत झोंक दें। आप बेशक अपने पसंद के लक्ष्य पाने में सफल होंगे।
आज हम जिनकी बात करने जा रहे हैं, उनकी कहानी कुछ इसी तरह की है, तो आइये आपको मिलाते हैं सुपौल, बिहार के स्वर्गीय उमाशंकर लाल दास और श्रीमती रजनी देवी के प्रतिभावान सुपुत्र “कुमार रौनक” से।
“श्री रौनक” को बचपन से ही समाचार पत्रों और टेलीविजन पर जब कभी भी “केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)” के बारे में पढ़ने और देखने को मिलता वो काफी प्रभावित होते। और उन्होंने तय किया की हमें “केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)” के लिए ही काम करना है। उनकी जिद का आलम यह था कि जब कभी आवेदन में विकल्प की माँग की जाती उनका प्रथम और आखिरी विकल्प “केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)” होता। आइये जानते उस बेहतरीन व्यक्तित्व को….
- व्यक्तिगत परिचय
नाम:- कुमार रौनक।
पिता का नाम :- स्वर्गीय उमाशंकर लाल दास।
माता का नाम :- श्रीमती रजनी देवी।
शिक्षा:- 10वीं :- विलियम्स उच्च विद्यालय, सुपौल।
12वीं :- भारत सेवक समाज महिविद्यालय, सुपौल।
स्नातक :- भारत सेवक समाज महिविद्यालय, सुपौल।
- ग्राम / जिला :- सुपौल।
- पूर्व में चयन :- एकमात्र चयन CBI में (CGL 2005, CBI उप-निरीक्षक में समूचे भारत मे प्रथम स्थान, रैंक 00001).
- वर्तमान पद:- निरीक्षक, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो।
- अभिरुचि:- कविता लिखना, समाज सेवा।
- किस शिक्षण संस्थान से आपने तैयारी की:- स्वाध्याय, साक्षात्कार के लिए “TOTAL G. S, Patna” के श्री मुरली प्रसाद सिंह सर से सहायता लिया।
- आपको इसकी तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली :- केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का प्रभाव और उससे जुड़ने की मेरी ललक को मेरे माता-पिता द्वारा लगातार प्रेरित करना।
- आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:- बातचीत के दौरान जब ये सवाल उनसे पूछा गया तो एक पल के लिए भावुक हो जाते हैं और फिर बताते हैं आपने उन मुश्किल दिनों की याद दिला दी……। आगे बताते हैं कि इस सफलता में मेरे माता-पिता, पारिवार के सदस्य, मित्रों और समाज के कई सहृदय लोगों का अभूतपूर्व सहयोग रहा। मैं अपने मित्रों में खासकर स्मित पराग, सोनू, उदय झा, उदय वर्मा और मनोज ठाकुर का जिक्र करना चाहूँगा, जिनके अभूतपूर्व सहयोग की वजह से मैं इस मुकाम तक आ पाया। मैं उन सभी का ह्रदय से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा।
- वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे:- एक बहुत ही प्रेरक वाक्य जो उन्होंने साझा किया कि
“विपरीत परिस्थितियों में ही, आपके हौसलों की असली पहचान होती है”
इसलिए हर समस्या के अंदर छिपे समाधान को खोजने का नज़रिया बनाएं। हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं। अपनी असफलता से न घबराएं, आपकी असफलता आपको आइना दिखाती है कि किस-किस बिंदु पर आपकी पकड़ कमजोर है। अपनी असफलता का ईमानदारी से आकलन करें, कमजोर बिन्दुओं को पहचानें और उसे दूर करने में पूरी ताकत झोंक दें। याद रखें अगर आपकी मेहनत में ईमानदारी है तो ईश्वर भी आपका साथ जरूर देंगे। किसी से भी कुछ पूछने में हिचके नहीं, बार-बार अनुरोध कर पूछें। यह तय है कि आपकी आर्थिक कमी आपकी असफलता के आड़े नहीं आएगी।
“राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर” की जिस पंक्तिओं ने हर विपरीत परिस्थिति में मुझे हिम्मत प्रदान किया है, साझा करना चाहूँगा कि
“वो पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जब पथ में बिखरे शूल न हो”
वो नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धाराएं प्रतिकूल न हो”
- अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं :- यूँ तो मेरी सफलता की राह कठिनाइयों से भरी थी, उसमें से कुछ बताना चाहता हूँ….
- आर्थिक कमी :- आर्थिक कठिनाइयाँ आपके इरादे को कमजोर करती है। लेकिन उस वक्त भी जरूरत है कठिन संघर्ष के साथ लक्ष्य पर नज़र बनाए रखने की। मैंने अपने जीवन के कठिन दौर में अपने आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए पटाखे बेचना, किताब और फोटोस्टेट की दुकान करना, कूरियर का काम और घर-घर ट्यूशन पढ़ाने का काम किया।
- नकारात्मक लोगों की टिप्पणियाँ :- नकारात्मक टिप्पणियाँ हौसलों को कमज़ोर करती है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि नकारात्मक विचार वाले दोस्तों, सगे-सम्बधिओं से दूर रहें या उनके साथ कम-से-कम समय व्यतीत करें। उनलोगों की संगत से अच्छा है अकेले रहना।
- सही दिशा-निर्देश न मिलना :- सही दिशा-निर्देश के अभाव में हम अपना कीमती समय बर्बाद कर देते है। इसलिए आवश्यक है कि आप सफल लोगों के संपर्क में रहें, उनसे अपनी तैयारी की रूप-रेखा साझा करते रहें। उनसे दिशा-निर्देश लेते रहें। सफल लोगों से बात करने में अपने ईगो को न आने दें, अगर वे एक बार में समय नहीं दे पायें तो बार-बार उनसे मिल अपने समस्या के संबंध में सलाह लें।
- बारम्बार असफलता से हिम्मत हारना :- असफलताओं से हौसलों में कमी आती है, लेकिन “यदि असफलता न हो तो हमें अपनी कमी दूर करने का अवसर कैसे प्राप्त होगा”? असफलताओं को अवसर के रूप में लें। मैं भी अपनी बारम्बार असफलता से घबरा जाता था, लेकिन स्वयं को उर्जा देने की कोशिश लगातार करता रहता था, इसी क्रम में मैंने एक कविता लिखा थी, जो मुझे अभी तक याद है, जिसे मैं आपलोगों से बताना चाहता हूँ……
“ ऐ मन,
ये न मान कि,
तेरी जीत तो दुश्वार है,
बस इतना सोच ले कि
यह अंतिम हार है॥
संघर्षों की बलि बेदी पर,
तुम तो बने हो तपने को,
हर हाल में करना है साकार,
अपनों के सपनों को,
फिर इस अगन की तपन से,
कैसा ये इनकार है?
बस इतना सोच ले कि
यह अंतिम हार है॥
हर असफलता के गरल को,
तुमने पिया मुस्कुराकर,
फिर ख़म ठोक चल पड़े,
मन में विजय का संकल्प लाकर,
फिर आज क्यों,
तेरा ह्रदय,
इस परिणाम से जार-जार है,
बस इतना सोच ले कि
यह अंतिम हार है॥
अपनी कमजोरिओं को मिटाकर,
बढ़ आगे हौसला अजमाकर,
रन्भेरियाँ बज चुकी है,
सेनाएं सज चुकी हैं,
धनुष पर ब्रह्मास्त्र चढ़ा कर,
प्रेरणाओं को सर नवां कर,
कूद पड़ो रणक्षेत्र में,
देखो योद्धाओं में मची,
जीत के लिए कैसी,
ये हाहाकार है।
बस इतना सोच लें
की यह अंतिम हार है”॥
सामाजिक कार्य :- “कुमार रौनक” के अनुसार अधिकांश गरीब और असहाय बच्चों के बीच शिक्षा की रौशनी पहुँचती तो है किन्तु टिम-टिमा कर रह जाती है। “श्री रौनक” ने जीवन के कठिन दौर में अपने लक्ष्य प्राप्ति में जो कठिनाइयों का अनुभव किया उससे सीखते हुये अपने जीवन संगिनी “कुमारी शिल्पी” के साथ मिलकर एक ऐसी संस्था बनाने की सोची जो गरीब और असहाय बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य करें। फिर दोनों ने मिलकर “शिक्षा तरु” नाम की संस्था बनाई जिसमे उनके कई नेकदिल मित्र जुड़ते गए। “शिक्षा तरु” गरीब और असहाय बच्चों की शिक्षा को समर्पित संस्था है जिसका मुख्यालय पटना में है। इस संस्था के सौजन्य से पांच गरीब बच्चे पटना के अच्छे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे है। “शिक्षा तरु” की और से मुजफ्फरपुर के “शुभम विकलांग सेवा संस्थान” में एक शिक्षिका नियुक्त है। इस संस्था ने सुपौल में बीस गरीब बच्चों के साथ एक आधार स्कूल का शुभारम्भ किया है। इस संस्था ने गरीबों के बीच पाठय-सामग्री, गर्म कपड़े और कम्बल बांटने का भी कार्य किया है। उनकी इच्छा “शिक्षा तरु” के माध्यम से गाँव-गाँव में हर गरीब और असहाय बच्चों के बीच शिक्षा की रौशनी को स्थाई रूप से पहुँचाने की है।
(यह “कुमार रौनक” से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
निवेदन- अगर यह सच्ची और प्रेरक कहानी पसंद आई हो तो लाइक/कमेंट/शेयर करें। यदि आपके आस-पास भी इस तरह की कहानी है तो हमें Message करें, हमारी टीम जल्द आपसे संपर्क करेगी। साथ ही फ़ेसबूक पर कोसी की आस का पेज https://www.facebook.com/koshikiawajj/ लाइक करना न भूलें, हमारा प्रयास हमेशा की तरह आप तक बेहतरीन लेख और सच्ची कहानियाँ प्रस्तुत करने का है और रहेगा।
टीम- “कोसी की आस” ..©