सुपौल : चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले का बेटा बना BOB में शाखा प्रबन्धक

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कोसी की आस टीम का हमेशा से प्रयास रहा है कि अपने झरोखे के नए-नए नगमे से आप सबके लिए प्रेरक और सच्ची कहानी के माध्यम से नित्य नए-नए तराने पेश किया जाय, जो न सिर्फ युवाओं में बल्कि हर उस मेहनतकश सोच, जो सच्ची लगन से सफलता पाने की जद्दोजहद में लगे हैं, के सामने “एक उम्मीद की किरण” के रूप में पेश किया जा सके और आज अपने इसी शृंखला की 28वीं कड़ी में कोसी की आस” टीम सुपौल वार्ड नंबर 10 के श्रीमती तुलसी देवी और श्री विजय प्रसाद साह के बेटे श्री रविशंकर कुमार की एक ऐसी कहानी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही है, जो न सिर्फ हमारे भाई-बहन के लिए प्रेरक है बल्कि आए दिन परीक्षा परिणाम या अन्य कठिनाइयों से घबराकर अपने जीवन को समाप्त कर देने के कायरतापूर्ण सोच / फैसले के बारे में सोचने वालों को भी एहसास दिलाता है कि बस “एक हिम्मत की जरूरत है, एक विश्वास की जरूरत है, एक जुनून की जरूरत है”, इन छोटी-छोटी मुसीबतों को पार पाने के लिए।

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एक अत्यंत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले श्री रविशंकर से उनके सफर के बारे में कोसी की आस” टीम के सदस्य ने जब सवाल किया तो उन्होंने जो जबाब दिया हम उन्हीं की जुबानी आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री रविशंकर बताते हैं कि मेरे पिताजी की महज़ एक छोटी सी चाय-नाश्ते की दुकान थी। मेरे पिताजी के लिए उस छोटे से दुकान से होने वाले आय से अपने परिवार का भरण-पोषण करने के आलावे बेसिक शिक्षा भी मुहैया कराना आसान नहीं था लेकिन उनकी एक उत्तम सोच कि किसी भी हालात में बच्चों को पढ़ना है, काफी प्रभावित करने वाला था। एक सामान्य छोटे से दुकानदार की मजबूरियों के अनुसार ही हम भाई-बहनों को भी पापा के दुकान में कभी-कभी हाथ बटाना पड़ता था, जो उनको बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। विलियम्स उच्च विद्यालय सुपौल से दसवीं और NIOS से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद असली मेरी परीक्षा प्रारंभ हुई। यहाँ तक तो सब ठीक था लेकिन अब आगे की पढ़ाई के लिए काफी जद्दोजहद होने वाली थी।

श्री रविशंकर आगे बताते हैं कि 12वीं के बाद मेरी इच्छा बीबीए की पढ़ाई करने की थी किन्तु पारिवारिक हालात और अत्यधिक फीस होने की वजह से वह कर नहीं पाया। घर के हालात ऐसे थे कि परिवार का भरण-पोषण बमुश्किल उस छोटे से दुकान से हो पा रहा था और ऊपर से हमारे लिए कहीं भी पढ़ने के लिए मासिक खर्च अलग से, उस वक्त असंभव सा लग रहा था। कभी-कभी लगता ये सारी मुश्किलें मेरे साथ ही क्यों है, फिर एक पंक्ति जो मुझे हमेशा हिम्मत देती, आपसबके साथ भी साझा करना चाहूँगा कि

मुश्किल वक्त हमारे लिये आईनें की तरह होता है,

जो हमारी क्षमताओं का सही आभास हमें कराता है।”

 

हमने इरादा बदला और सोचा कि कम खर्च में अच्छी शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। दरभंगा में मेरे फूफा-बुआ जी रहते थे, मैंने वहाँ पढ़ने का मन बनाया और अपना नामांकन वहाँ के एमएलएसएम कॉलेज में करवाया और पढ़ाई शुरू की। कॉलेज की पढ़ाई पूर्ण होने के बाद मैंने सिविल सर्विसेज की तैयारी करने का निर्णय किया, जो पारिवारिक हालात के अनुसार आसान नहीं था लेकिन लक्ष्य सिविल सेवा संस्था के एसएन झा सर से मिलने के बाद मुझमें काफी विश्वास जगा और मैंने उनके मार्गदर्शन में अपनी पढ़ाई जारी कर दिया। घर के हालात को देखते हुये मैं अपने लिए वैकल्पिक व्यवस्था भी चाहता था, इसलिए मैं सामान्य प्रतियोगी परीक्षा में भी शामिल होने लगा। मैंने अपनी तैयारी जारी रखा परंतु अब एक नई मुसीबत मेरे सामने खड़ी थी कि मैं अपने परिवार से प्रत्येक प्रतियोगी परीक्षा के लिए फॉर्म भरने से लेकर परीक्षा देने तक खर्च माँग नहीं पा रहा था, यूँ तो पापा ने कभी मना नहीं किया, परंतु उनके हालात को देखते मुझे खुद अच्छा नहीं लगता था, लिहाजा मैंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। ट्यूशन पढ़ाने से मिलने वाले पैसे से मैं प्रतियोगी परीक्षा पर होने वाले खर्च का वहन कर पा रहा था।

श्री रविशंकर बताते हैं कि पढ़ाई और असफलता के दौरान कभी-कभी मन हार जाता था और मन में कई तरह के बेबुनियाद खयाल आने लगते, कभी लगता मेरे से नहीं होगा, तो कभी लगता अब कोई काम पकड़ लेते है, और भी कई तरह के विचार लेकिन एसएन झा सर का मार्गदर्शन, माँ-पापा का आशीर्वाद, फूफा जी, फूआ जी, और मौसा जी का अकल्पनीय सहयोग तथा छोटे भाई पंकज और बहन पिंकी कुमारी की अविस्वसनीय प्यार और विश्वास की बदौलत हर कठिनाई को पार करते हुए सबसे पहले अंतिम रूप से एसबीबीजे क्लर्क और 2013 में बैंक ऑफ बड़ौदा में परवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में अंतिम रूप से चयनित हुआ।

श्री रविशंकर ने कहा कि वर्तमान में प्रयासरत युवाओं से बस इतना कहना चाहूँगा कि सर्वप्रथम अपने लक्ष्य का चयन करें, तदुपरांत उससे संबंधित सभी तथ्यों का सिलसिलेवार तरीके से अध्ययन करें, लक्ष्य की प्राप्ति आपके अनुसार ना होने पर भी अपना आत्मविश्वास डगमगाने न दें एवं प्रतीक्षा करें, सफलता अवश्य आपके कदमों में होगी। अंत में सभी अपने युवा प्रतिभागी भाई-बहनो के लिए एक नज्म समर्पित करना चाहूँगा कि

 

सफलता (Success) का मिलना तो तय है,

देखना तो यह है कि आप

उसकी कितनी कीमत चुकाने को तैयार है।”

 

मैं “कोसी की आस” टीम का आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि मुझे आपने प्रेरणा योग्य समझा।

(यह श्री रविशंकर कुमार से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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