रिपोर्ट:-बलराम कुमार /सोनू आलम/ त्रिवेणीगंज (सुपौल)
आज दुनिया के कई बड़े शहर और क्षेत्र भयंकर जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह विशाल जनसंख्या द्वारा पानी की बर्बादी करना है। भू-जल और जल के विभिन्न स्रोतों का हमलोगों ने इस कदर दोहन किया है और इसे हम इतनी बुरी स्थिति में लाकर छोड़ दिये हैं, जिसका नतीजा है कि आज हम बूंद-बूंद पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। हालत इतनी खराब हो गई है कि तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में कई सारे संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कह दिया है, हॉस्टल चलाने वालों ने वहाँ रहने वालों को अपने-अपने घर चले जाने को यह कहते हुये कहा है कि हम आपको पानी उपलब्ध नहीं करा पाएंगे, जब स्थितियाँ सामान्य हो जाएगी, तो हम बता देंगे, यह सब इसलिए किया जा रहा है कि पानी का इस्तेमाल कम हो सके। यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि यह सिर्फ चेन्नई की स्थिति नहीं बल्कि भारत के कई हिस्से धीरे-धीरे इसके शिकार होते जा रहे हैं और महाराष्ट्र के अधिकांश क्षेत्र इसका नवीन उदाहरण है।
जहाँ एक तरफ अधिक-से-अधिक तालाबों के निर्माण और संरक्षण पर बल दिया जा रहा है, वहीं त्रिवेणीगंज प्रखंड परिसर स्थित सरकारी तालाब जिसे 05-01-06 में लाखों की लागत से पक्का घाट निर्माण एवं तट सम्बन्धित कार्य किया गया था, अब कचरे के ढेर में हो गई तब्दील। कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस तालाब की कोई सुद्धि लेने वाला नहीं है। अगर सही तरीके से तालाब का रख-रखाव देख-रेख किया जाता तो सरकार को इससे न सिर्फ राजस्व का फाइदा होता बल्कि प्रखंड के नागरिक को भी लाभ मिलता। तालाब का पक्कीकरण शेड, गार्डन का काम इतने अच्छे से किया गया था कि दूर-दूर से आए जनता जनार्दन को भी कुछ पल के लिए स्वच्छ हवा में सांस लेने का मौका मिलता था और यहाँ आराम कर अपनी थकान दूर करते थे।
यूँ तो सरकार स्वच्छता के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन प्रखंड में पूर्व से मौजूद तालाब तक की हम सफाई नहीं रख पा रहे हैं। अब देखना ये है कि सुशासन बाबू के राज में इस समस्या का समाधान कब तक किया जाता है।