सुपौल : समाज के ताने के बावजूद पापा के विश्वास को, और मजबूत करने वाली बेटी की कहानी।

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कोसी की आस परिवार की ओर से आपको बताना चाहता हूँ कि लगभग 5-6 माह पहले हमने जो एक छोटा समझा जाने वाला एक प्रयास किया, जिसका मुख्य उद्देश्य वर्तमान समाज में व्याप्त निराशा, अविश्वास और आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे युवाओं में उसी समाज की सच्ची और सफल युवाओं की कहानी के माध्यम से “एक उम्मीद की किरण” जगाने का था, उस प्रयास को नित्य नए-नए पंख लग रहे हैं और हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि आप सबका विश्वास अगर इसी तरह बना रहा तो हम अपनी जी-तोड़ मेहनत से आपके इस विश्वास को कायम रखने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

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कोसी की आस टीम आज अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 29वीं कड़ी में वैसी ही “उम्मीद की किरण” जगाने वाली एक बेटी की कहानी बताने जा रही है। तो आइये मिलते हैं जीवन के बुरे दौर को पार कर सफलता की कहानी लिखने वाली सुपौल के श्री केदार नाथ झा और श्रीमती सुष्मिता पाठक की बेटी शाश्वती सौम्या से।

शाश्वती सौम्या बचपन से ही मेधावी छात्रा थी और उससे भी ज्यादा उनके क्षमता पर उनके पापा को भरोसा था और इसी का परिणाम हुआ कि बारहवीं तक की पढ़ाई सुपौल से ही करने के उपरांत उनके पापा ने सौम्या के इच्छानुसार और बेहतर भविष्य के लिए पटना भेजने का निर्णय किया। हमारे तथाकथित समाज में अभी भी बेटी को प्रतिष्ठा (तथाकथित) का विषय माना जाता है और उस तथाकथित प्रतिष्ठा के चक्कर में हमारे सैकड़ों बहन-बेटियों को अपने बेहतर शैक्षणिक कॅरियर से हाथ धोना पड़ता है और काम-चलाऊ शिक्षा लेने को मज़बूर होतीं है।

उनसभी सोच के लिए कोसी की आस परिवार आपसब से इस पंक्ति के माध्यम से बताना चाहती कि बेटियाँ बेटों से कम नहीं होती-

जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो,

बेटियां भी घर में उजाला करती हैं।

 

शाश्वती सौम्या बताती हैं कि हर किसी के नसीब में नहीं होता कि जहाँ उनके पापा-मम्मी हों, वहीं अच्छे संस्थान भी हों, लिहाजा बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए बड़े शहर जाना होता है और फिर घर की आर्थिक हालात भी उतनी अच्छी नहीं कि उस बड़े शहर में बहुत सारी अर्थात घर वाली सुविधायें मुहैया हो जाए। बारहवीं के बाद जब मेरे पापा-मम्मी ने बेहतर शिक्षा के लिए पटना भेजने का निर्णय किया और तय हुआ कि मैं हॉस्टल में रह कर पढ़ूँगी। सामान्य सा दिखने वाला यह निर्णय सामान्य नहीं था। अपने ही समाज के कई व्यक्ति पापा-मम्मी को समझाने आने लगे कि आप समझ नहीं रहे हैं, बेटी हमसब की इज्जत होती है और आप उसको बाहर अकेले रहने देंगे, कल भगवान न करे लेकिन अगर कोई समस्या हो जाए हमसब की प्रतिष्ठा (वही तथाकथित वाला प्रतिष्ठा) का क्या होगा?

भावुकता के साथ सौम्या आगे बताती हैं कि बचपन के दिन याद आते हैं, जब माँ खाना बनाते-बनाते भी हम भाई-बहन को पढ़ाती रहती थी, साथ ही उनका परिवार के तरक्की और हमलोगों के पढ़ाई के प्रति समर्पण देख बचपन में ही जल्द बड़े हो कुछ हाथ बटाने का जी करने लगता था। वह रोज सुबह 4 बजे उठकर हमलोगों के लिए ब्रेकफास्ट, लंच बना खुद स्कूल जाती थी। परिवार के साथ-साथ नौकरी का उनका संघर्ष, उनकी मेहनत और उनका समर्पण अकल्पनीय था।

चित्रकारी करने, लेख-निबंध तथा कविता लिखने, किताबें पढ़ने और ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन से रुचि रखने वाली शाश्वती सौम्या आगे बताती हैं कि बहुत दुःख होता था, जब हमारे माता-पिता जो हमें पटना में रखकर पढ़ा रहे थे, उनको समस्या नहीं थी किन्तु समाज के कई लोग आ-आकर न सिर्फ मेरे घर वालों को बल्कि कभी-कभी मुझसे कहते कि और कितना लूटोगे अपने पिता को, सचमुच मेरे लिए यह बेहद मुश्किल पल था, वे लोग बोलते थे कि इससे कुछ नहीं हो पाएगा, पैसा बर्बाद कर रही है। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझ पर भरोसा बनाए रखा और कहीं-न-कहीं इन्हीं सब घटना (तानों) ने मुझे बल प्रदान किया और मेरे जज़्बे को और मज़बूत किया। शाश्वती सौम्या के साथ उस वक्त हो रही मुश्किलें निम्न पंक्ति को चरितार्थ करती थी-

सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है,

और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है।

 

सौम्या बताती हैं कि मुझे बचपन से ही लाल चाचा श्री बद्रीनाथ झा जी की सहजता, सरलता और प्रेरक व्यक्तित्व और उनकी जीवन शैली ने प्रभावित किया और उसवक्त से ही मैं उनके जीवन शैली अपनाना चाहती थी। आगे बताती हैं कि स्नातक के बाद यूँ तो जेनपैक्ट, ईएक्सएल और विप्रो जैसी कंपनी में तो चयन हो गया था लेकिन घरवालों की इच्छानुसार मैंने भी सरकारी सेक्टर में नौकरी के लिए प्रयास जारी किया। यह आसान नहीं थी, कई परीक्षाओं में बहुत ही कम अंकों के वजह से या फिर अचानक स्वास्थ्य खराब होने के काफी टूट जाती थी, लेकिन फिर पापा के द्वारा दी गई हिम्मत ने एक बार फिर से उठकर और सशक्त होकर लड़ने की जिज्ञासा को और प्रबल कर पाई। आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई और 2013 में बैंक ऑफ बड़ौदा में सहायक प्रबंधक scale-1 में मेरा चयन हो गया। मेरी सफलता न सिर्फ मेरे लिए बल्कि हर उस लड़की के लिए महत्वपूर्ण है जो विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुये आगे बढ्ने का प्रयास कर रही हैं।

 

मैं “कोसी की आस” टीम का आभार व्यक्त करना चाहूँगी कि मुझे प्रेरणा योग्य समझा।

(यह शाश्वती सौम्या से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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