बात समझ में नहीं आता कि प्रधानमंत्री बार-बार निवेदन कर रहे हैं कि आम-जनमानस घर से बाहर ना निकले केवल जरूरी और आवश्यक सेवाओं से संबन्धित लोग ही कार्य पर जायेंगे, उसके बाद भी समझ में नहीं आता है आपलोगों को?
बाँकी विश्व की स्थितियाँ देख रहे हैं कि नहीं!
चीन, फ्रांस, अमेरिका, इंगलेंड, जर्मनी, इटली और ईरान आदि। इन सबमें यदि ईरान को थोड़े देर के लिए अलग भी कर दें तो बाँकी के सभी देश हमारे मुक़ाबले बहुत ही सुनयोजित हैं, जब उनका हालत ख़राब है तो हमारा क्या होगा? इसका अंदाजा भी है क्या? सच कहें तो भले ही हमलोग झूठ-मूठ का भाषणबाजी पेलेते हों लेकिन हकीकत यह है कि इन देशों के सामने भारत कई मामलों जिसमें स्वास्थ्य सेवा भी शामिल है, कहीं नहीं टिकता।
इतना सब के बाबजूद, मुंह, से गाली निकल रहा है लेकिन रोक रहा हूँ कि ………… को समझ में नहीं आता कि कल यानि 22 मार्च को प्रधानमंत्री ने “जनता कर्फ़्यू” का क्यों आह्वान किया था? 5 बजे 5 मिनट क्यों बोला था? कुछ लोग उसको भी एंजॉय करने इकठ्ठा होकर जुलूस निकालने लगे। अरे गधे तूँ पार्षद या सरपंच तक नहीं बना है, क्यों पगला रहा है? कम-से-कम अपनी नहीं तो अपने परिवार या समाज को तो बक्श दे। अरे मैं, तो गलत बोल दिया, तूँ तो सबसे बड़ा कायर है, असल में तूँ मूर्ख भी है बड़ा वाला, असल में तुम्हें समझ ही नहीं कि आख़िर क्या है कोरोना? और कैसे फैलता है ये कोरोना? क्योंकि जिस दिन तुम्हें समझ में आ जाएगा न, उस दिन सबसे पहले तूँ ही दुबकेगा। लेकिन दुर्भाग्य कि तुम जैसों के चक्कर में और भी पीसेंगे।
धारा 370 हटाये जाने के समय कितनी खुशी थी, तो अब क्यों हो परेशान
जम्मू-कश्मीर को जब दो केंद्र-शासित प्रदेश में बाँटा गया और धारा 370 हटाया गया था तो बाँकी देशवासी काफी खुश थे, इसका ये मतलब नहीं कि जम्मू-कश्मीर के लोग नाराज थे लेकिन सरकार ने एहतियातन सुरक्षा बढ़ा दी थी, फोन, इंटरनेट की सुविधा आदि बंद कर दी थी, जो आज तक पूर्ण रूप से बहाल नहीं हुई है। अगर देखा जाय तो एक तरह लॉक-डाउन की स्थिति थी जो अब भी आंशिक रूप से है और अभी भी कई नेता नजरबंद हैं। कम-से-कम वर्तमान लॉक-डाउन में आप-सभी के पास फोन है, इंटरनेट है, टीवी है और बाँकी की भी सुविधायें, सिर्फ सरकार बोल रही है घर में रहें, वो भी संविधान आदि की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि आपके और आपके परिवार की सुरक्षा के लिए। लेकिन कुछ गदहे जो उस वक़्त खुशी व्यक्त कर रहे थे, आज देश को बर्बाद करने में लगे हुये हैं।
मेरा एक साधारण सवाल है कि कभी देखे थे कि सारी ट्रेनें बंद, सारे विमान बंद, सारे बस सेवा बंद और सारी दुकानें बंद वो भी खुद-व-खुद कोई पार्टी/गुट वाला नहीं आया था बंद कराने, तो फिर कोरोना की गंभीरता समझ में नहीं आती? अंदाजा भी है कि क्या वर्ल्ड इकॉनमी को कितना नुकसान हो रहा है, अरे छोरों तुम जैसों से वर्ल्ड इकॉनमी की क्या बात करें?
बीमारी की गंभीरता को ऐसे समझिए
विश्व स्वास्थ्य संगठन के रैंकिंग के अनुसार बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं में इटली को 190 देशों में दूसरा स्थान प्राप्त है लेकिन थोड़ी लापरवाही या फिर यूँ कहें कि गंभीरता देर से उठाई गई, जिसका नतीजा आप सबके सामने है। उक्त रैंकिंग में भारत का स्थान 141वां है। अब तो अंदाजा लग गया होगा कि अगर हमारे यहाँ यह कोरोना बेकाबू हुआ तो हम क्या कर पाएंगे? हमारे यहाँ की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और डॉक्टर की उपलब्धता आदि के बारे में आप-सभी को पहले से अंदाजा होगा ही।
अब संक्रमण में आबादी और घनत्व के मायने को समझिए
आबादी के मामले में अगर चीन को छोड़ दिया जाय तो बाँकी के देश की आबादी तो हमारे सामने कुछ भी नहीं, विश्व के कई महत्वपूर्ण देश की कुल आबादी हमारे सबसे बड़ी आबादी वाले एक राज्य उत्तरप्रदेश से भी कम है। लेकिन एक तुलनात्मक अध्ययन चीन से ही करते हैं, हम आबादी में चीन से थोड़े कम संख्या में जरूर हैं लेकिन घनत्व की बात होगी ना, तो हम चीन से भी आगे हो जाते हैं, उसको इस तरह समझिए कि अगर चीन में 1 वर्गकिलोमीटर में 1000 व्यक्ति रहते हैं तो उतने ही क्षेत्र में भारत में 3000 व्यक्ति। चीन की शासन प्रणाली और उसकी क्षमता, जिसके दम पर कोरोना पर काबू पाया गया है लेकिन भारत के संदर्भ में देखें तो अगर हम लोगों ने सरकार के निर्देशों का अक्षरशः पालन नहीं किया न, तो हालात ऐसे होंगे कि अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
कोरोना से बचाव के लिए एक अपील
मैं कोशी की आस परिवार के माध्यम से पाठकों से निवेदन पूर्वक अपील करना चाहते हैं कि आप खुद, अपने परिवार और जानकारों को समय-समय पर सरकार के द्वारा दिये जा रहे निर्देशों का पालन करिए और पालन करने को प्रेरित करिए। वर्तमान हालात में कोरोना के संक्रमण का इलाज एक मात्र उपाय सिर्फ कोरेंटाइन (एक सुरक्षित दूरी) है। हरबराइए नहीं सब ठीक हो जाएगा, महज़ 10-15 दिनों की बात है, सरकार इतने बड़े-बड़े कदम उठा रही है, बस हमें सजग रहना है, सतर्क रहना है और सरकार को अपने-अपने घरों में रहकर सहयोग करना है, जब तक अत्यावश्यक न हो घर से ना निकलें, नियमित रूप से हाथ धोएँ और ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि फोन, टीवी, समाचार पत्र आदि के माध्यम से सारी जानकारी आप सभी को पूर्व में ही मिल चुका होगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं, कोशी की आस का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)