स्पेशल डेस्क
कोशी की आस@पटना
प्रधानमंत्री के लॉक-डाउन की घोषणा के पश्चात गरीब प्रवासी दिहाड़ी मजदूरों पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झाड़खंड आदि के लाखों दिहाड़ी मजदूर, जो दिल्ली, मुम्बई, पुणे जैसे शहरों में रहकर मुश्किल से दो जून की रोटी का जुगाड़ कर जीविका चला रहे थे। लाखों दैनिक मजदूर जो लघु एवं कुटीर उद्योग में काम कर रहे थे। लॉक-डाउन के पश्चात अपना रोजगार गंवाने के पश्चात बदहवासी में साधन न मिलने पर पैदल एवं साइकिल से 300-1000 किमी की दूरी तय करने को मजबूर हैं। वे लोग कई-कई दिनों से भूखे-प्यासे चले जा रहे हैं। इन लोगों के पास नन्हे व छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। इन अभिशप्त लोगों के प्रति राज्य एवं केन्द्र सरकार की लापरवाही बेहद चिंताजनक है। पलायन कर रहे इन लोगों की दुर्दशा सरकारी इंतजामों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। दोष सिर्फ यह है कि ये लोग दरिद्रता के शिकार है। इसलिए कहा जाता है कि आधुनिक युग में इंसान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप गरीबी है।
जहाँ एक तरफ सरकार विदेशों में फंसे लोगों को हवाई जहाज से रेस्क्यू कर रहे हैं। वहीं इसी देश में रहनेवाले इन मजबूर लोगों को उनके भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। ये दीनहीन लोग इन कठिन हालात में कोरोना से पहले भूख से ही न मर जाय।
जहाँ एक तरफ सरकार हरेक दिन कुछ-न-कुछ नई घोषणा कर रही है। वहीं लाखों लोगों के सामने भूख का संकट मंडरा रहा है। क्या भारत जनसंख्या आधिक्य का शिकार हो रहा है? जो हर संकट के बेकाबू होने के खतरे से ग्रस्त होती है। विचार करें……
उपरोक्त लेख कोशी की आस टीम को भारत सरकार के रेल मंत्रालय में कार्यरत प्रतापगंज, सुपौल के “विजेंद्र जी” ने भेजा है।