जी हाँ, भारतीय अभिनय जगत में अपना लोहा मनवा देने वाले बिहार के हीरो पंकज त्रिपाठी ने दैनिक पत्रिका हिन्दुस्तान से बातचीत में जो बताया उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है–
कुछो नहीं भूले हैं। सब याद है। दशहरा खत्म होते ही मन-मिजाज छठ जइसा होने लगता था। हवाओं में उत्सव की खुशी… गांव-घर में सफाई अभियान… दिवाली की लिपाई-पोताई… कुम्हार के घर दउड़-दउड़ के जाना… दीया लाना… कोसी लाना… फिर दिवाली में दियरी जराना… फिर छठ की तैयारी… नया कपड़ा सिलवाने का उत्साह… टेलर्स के पास बाबूजी या भैया के साथ जाना… और यह सोचना की जिलेबी कब खिलाएंगे। सच कह रहा हूं, कपड़ा सिलवाना तो एक कारण था ही, माधोपुर बाजार (गोपालगंज) जाकर मिठाई खाने का भी इंतजार रहता था। फिर छठ के दिन नयका कुर्ता पहिन के घाट पर पूरे ठाठ से जाते थे। अउर घाट का बात तो पूछिए मत। गजबे माहौल। सच कहिए तो घाट पर 15-20 दिन पहिले से ही माहौल बना रहता था। गांवभर का लड़का लोग अपना-अपना घाट छेकता था। हमहू घाट बनाते थे। दउड़-दउड़ के नदी में से पानी लाते थे। घाट बनाने का एक अलगे मजा होता है। हरेंद्र, राजन, मनोज सब संघतिया मिलके हमलोग घाट सजाते थे। केला का थम काटकर लाते थे। तिलंगी साटते थे और जब शाम होते मरकरी बरता था, तो मन अइसे खुशी से भर जाता था कि का कहें।
छठ प्रकृति का पर्व है, यह बात बाद में समझ में आया। हमारी मां छठ करती थी। लकड़ी के कठवत में ठेकुआ का आटा माड़ती थी। इस पर्व में शुद्धता-पवित्रता तो जगजाहिर है। और इन सबके बीच छठ मइया का गीत… गीत में सब परिवार का नाम… मुझे याद है चाचा के परिवार से हम लोगों का अनबन चलती थी, लेकिन मां, छठ गीत में सबका नाम लेती थी। छठी मइया से सबके लिए अन-धन मांगती थी।
छठ का अर्घ्य देने के लिए पूरा गांव गंडकी नदी किनारे जुटता था। दूसरे दिन यानी परणा के दिन हमारे गांव में नाटक होता था। गांव के राघव शरण तिवारी खुद नाटक लिखते थे और डायरेक्ट करते थे। तब मैं नौवां क्लास में पढ़ता था और इसी मंच पर पहली बार नाटक किया और यहीं से ‘पंकज त्रिपाठी’ नामक युवक की यात्रा शुरू हुई। या यों कहिए कि छठ पर्व से ही मेरे अभिनय की शुरुआत हुई।
अब भाभी छठ करती हैं। आज मैं राजस्थान के मंडवा गांव में शूटिंग के लिए जा रहा हूं। लेकिन गांव याद आ रहा है। दिवाली पर घर गया था। काम के कारण जल्दी मुंबई आना पड़ा। लेकिन इस बार लकड़ी का कठवत गांव से लेकर आया हूं। हम बिहारी भले कहीं रहेंगे, लेकिन अपने गांव-घर-छठी मइया को कैसे भूल सकते हैं।
सौजन्य- Pankaj Tripathi Fan Club के फेसबुक पोस्ट से।