स्पेशल डेस्क
कोसी की आस@नई दिल्ली
शायद इंसान जब से इस पृथ्वी पर पैदा लिया होगा और उसे ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी या फिर जब वह ज्ञान प्राप्ति या शिक्षित होने के दौर में होगा, तब से ही वह अपनी प्रशंसा सुनने के लिए व्यग्र रहा होगा। हर इंसान की यह खूबी कह लीजिए या फिर कमी, कि वह हमेशा अपनी प्रशंसा सुनना चाहता है और आलोचना सुनना तो उसके लिए काफी कष्टप्रद है। हम इंसान हैं कोई मशीन नहीं, कभी-कभी कमियां भी निकल जाती हैं। इसलिए इंसान को आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए। जीवन में हम जितना आगे बढ़ते जाते हैं, उतनी ही आलोचनाएं भी बढ़ती हैं।
मेरे हिसाब से आलोचना और प्रशंसा एक-दूसरे के विपरीत हैं या फिर एक दूसरे के कट्टर दुश्मन भी हैं। लेकिन यदि हम आलोचना को स्वीकार करना सीख ले तो यही हमारे लिए दोस्त का भी काम कर सकते हैं। हर इंसान की एक आदत सी हो गई है कि जब तक सामने वाला आपकी प्रशंसा करता है तब तक वह आदमी बहुत ही अच्छा रहता है लेकिन जैसे ही आपकी आलोचना करता है तो वही आदमी बुड़ा बन जाता है। यही हम, आप सब गलत सोचते हैं या सोचने लगते हैं। कहते हैं न कि जो आप के सबसे बड़े आलोचक हैं, वही आपके सबसे बड़े प्रशंसक होते हैं। यदि हम आलोचना को सहन करना सीख लें तो हम, आप, सब पहले से ज्यादा सहनशील और संतुलित बन जाएंगे।
आपके प्रशंसक हमेशा आपसे अच्छा ही उम्मीद रखता है लेकिन जब हम आप उसके उम्मीद पर खरे नहीं उतरते हैं तो वह हमारी आलोचना करने लगता है। मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण दे रहा हूँ:-
“सचिन तेंदुलकर” शायद ही यह नाम किसी से छिपा हो लेकिन लोग सचिन तेंदुलकर की भी आलोचना करते थे। आलोचना इस वजह से नहीं करते थे कि वे अच्छे नहीं खेलते थे बल्कि वे आलोचना इसलिए करते थे क्योंकि वे हमेशा सचिन को शतक लगाते हुए या अच्छी पारी खेलते हुए देखना चाहते थे।
कुछ बड़ा हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि हम आलोचनाओं को Positive रूप में स्वीकार करें। हमारे कार्यों में स्वाभाविक रूप से गलतियां हो जाती हैं, यदि कोई व्यक्ति उन गलतियों को उजागर करता है तो उस पर नाराज होने के बजाय उन्हें स्वीकार करना चाहिए। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए अपनी आलोचनाओं को सुनना, उस पर विचार करना, कमियों को सुधारना, हमें आगे बढ़ने, हमें हमारे लक्ष्य पाने में सक्षम एवं समर्थ बनाता है।