आज “कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 14वीं कड़ी में आपके सामने प्रगतिशील सोच से लबरेज एक ऐसे युवा की कहानी बताने जा रही है जिनका संघर्ष ही सफलता की कहानी बयां करती है।
“पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा था कि “सपने देखिये, खुली आँखो से, ऐसे सपने जो आपको सोने ना दे” और ऐसा ही एक सपना न सिर्फ इस ‘रत्न’ ने देखा बल्कि उसे साकार कर दिखाया। घर में आर्थिक तंगी थी, पढ़ाई पूरी करने के भी आसार नही दिख रहे थे, 12वीं के बाद घर की हालत कुछ ऐसी थी कि पढ़ाई के लिये फीस भरने के भी पैसे नहीं थे, महज़ 600 रुपये महीने पर एक स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। कभी दोस्तों ने कॉलेज की फीस भरी, तो कभी पार्ट-टाईम सड़क के किनारे मोमबत्तियाँ भी बेची। लेकिन प्रारंभ से पढ़ाई में एक औसत छात्र ने अपने खुली आँखो से अपने लिए जो स्वप्न सँजोया था, उसे उन्होंने कभी धूमिल नहीं होने दिया। और वर्षों के संघर्ष के बाद अंततः उन्होंने भारत की सबसे प्रतिष्ठित और कठिनतम मानी जाने वाली UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त किया।
कवि वृंद द्वारा रचित एक दोहा समर्पित करना चाहूँगा-
“करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान;
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान”
इस दोहे के माध्यम से कविवर बताना चाहते हैं कि कुए से पानी निकालने के लिए बाल्टी से बंधे कोमल रस्सी से बार-बार पानी भरने के दौरान कुए के किनारे के पत्थर पर बार-बार घिसने से जब निशान बन सकता है तो निरंतर अभ्यास करने से कोई भी अकुशल व्यक्ति कुशल बन सकता है।
यह कहानी उन सभी छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जो मुश्किल परिस्थितियों और लगातार असफलता के बाद भी मायूस होते हैं, घबराते है और फिर से उठ कर पूरी ताकत और जोश के साथ अपनी गलतियों से सीख, लक्ष्य पाने की जिद में जुड़ जाते हैं।
अपने लक्ष्य पाने की जिद में जुड़े ऐसे तमाम छात्रों के लिए एक पंक्ति उधार लेकर, आपको सोंपता हूँ-
“यही जज्बा रहा तो, मुश्किलों का हल भी निकलेगा,
जमीं बंजर हुई तो क्या, वहीं से जल भी निकलेगा।
ना हो मायूस, ना घबरा अंधेरों से, मेरे साथी,
इन्हीं रातों के दामन से, सुनहरा कल भी निकलेगा”॥
“कोसी की आस” टीम आज जो कहानी आपको प्रस्तुत करने जा रही है, वो न सिर्फ सिविल सेवा या अन्य प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की चाह रखने वाले छात्र के लिए बल्कि उन तमाम अभिभावकों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जिनके बच्चे आज सफलता की चाह में प्रयासरत हैं। “कोसी की आस” टीम उन तमाम अभिभावकों से विनम्रता के साथ कहना चाहती है कि आपको अपने बच्चों पर उनकी असफलता के बाद भी विश्वास जाताना होगा, उनकी कमियों को दूर करने में नैतिक, मौलिक और भावनात्मक सहयोग करना होगा। कई असफलता के बाद और परिवार के अविश्वसनीय सहयोग के फलस्वरूप सफल मुट्ठीगंज, नवाबगंज, गोण्डा, उत्तरप्रदेश के ‘रत्न’ और श्री बद्री प्रसाद गुप्ता & श्रीमती गायत्री देवी के पुत्र श्री रतन दीप गुप्ता से “कोसी की आस” टीम के बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत है:-
- व्यक्तिगत परिचय
नाम :- श्री रतन दीप गुप्ता
पिता&माता का नाम:- श्री बद्री प्रसाद गुप्ता & श्रीमती गायत्री देवी।
शिक्षा:- 10वी :- श्याम सुन्दर सरस्वती विद्यालय इंटर कॉलेज फैज़ाबाद।
12वी :- श्याम सुन्दर सरस्वती विद्यालय इंटर कॉलेज फैज़ाबाद।
स्नातक :- भूगोल,समाजशास्त्र, कामता प्रसाद सुन्दर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या।
परास्नातक :- समाजशास्त्र, कामता प्रसाद सुन्दर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या।
- मुहल्ला:- मुट्ठीगंज, पोस्ट– नवाबगंज।
3 जिला :- गोण्डा, उत्तरप्रदेश।
- पूर्व में चयन :-
A.स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया 2010
B.एस एस सी 2010 अकाउंटेन्ट
C.एस एस सी 2011 आडिटर
D.एस एस सी 2012 आडिटर
- वर्तमान पद :- इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस (IRTS)(UPSC2017)
- अभिरुचि:- डायरी लेखन और प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ना।
- किस शिक्षण संस्थान से आपने तैयारी की:- निर्माण IAS, संस्थान के निदेशक कमलदेव सर का मार्गदर्शन परीक्षा के प्रत्येक चरणों में प्राप्त होता रहा।
- आपको इसकी तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिला:- प्रारंभ से ही “सिविल सेवा जो एक कैरियर होने के साथ-साथ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम भी है”, ने काफी प्रभावित किया और पूर्व से ही सरकारी सेवा में होने के कारण सिविल सेवा में व्याप्त चुनौतियां एवं संभावनाओं के प्रति नैसर्गिक रुचि का और बढ़ जाना।
- आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:- सर्वाधिक योगदान मेरे परिवार, गुरुजनों, मित्रों सहकर्मियों एवं उन सभी लोगों का रहा, जिन्होंने मुझसे ज्यादा मेरी क्षमताओं में विश्वास रखा, जिन्होंने लगातार असफलताओं के बावजूद मुझे निराश नहीं होने दिया।
- वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे:- मैं अभ्यर्थियों को इस संदर्भ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित कुरुक्षेत्र की यह पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ कि
“ब्रह्म से कुछ लिखा (लिखाकर), भाग्य में, मनुज नहीं लाया है,
अपना सुख, उसने अपने, भुजबल से ही पाया है,
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है, कभी भाग्य के बल से,
सदा हारती, वह मनुष्य के उधम से, श्रम जल से”।
11.सिविल सेवा में ही कॅरियर क्यों?
एक बार फिर दुहराना चाहूँगा कि सिविल सेवा एक कैरियर होने के साथ-साथ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम भी है।
सिविल सेवा की तैयारी के अपने अनुभव और प्रयासरत छात्रों के लिए सुझाव बताइए:-
प्रारंभिक परीक्षा– प्रारंभिक परीक्षा को समुचित रणनीति के माध्यम से उत्तीर्ण किया जा सकता है, मुझे लगता है कि इस स्तर पर भाग्य को दोषी ठहरना ठीक नहीं है।
मेरा वैकल्पिक विषय– हिंदी साहित्य
प्रयासों की संख्या- 5
कुछ ऐसा ख़ास जिसने आपकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया– जी, इस बार के साक्षात्कार में आदित्य, प्रतीक, वायत्य एवं साक्षी इत्यादि मित्रों के समूह से बेहतर तैयारी कर पाया और अंतिम रूप से चयनित हुआ।
कुछ महत्वपूर्ण योजना –
i वैकल्पिक विषय की गंभीर तैयारी।
ii लेखन का पर्याप्त अभ्यास।
iii बैकअप कैरियर विकल्प को ध्यान में रखना।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर परीक्षा में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
वैकल्पिक विषय का चयन– वैकल्पिक विषय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभ्यर्थियों के अंतिम चयन में इसकी भूमिका को देखते हुए इसके चयन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना बेहतर होगा-
i विषय का रुचिकर होना।
ii विषय में गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री एवं कुशल मार्गदर्शन की उपलब्धता।
- अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं:- मेरे पिता श्री बद्री प्रसाद गुप्ता का एक छोटा सा दुकान हैं, मेरी माता श्रीमती गायत्री देवी गृहणी हैं, मेरी छोटी बहन दीपिका सहायक अध्यापिका है और छोटा भाई राजन भी अब सहायक अध्यापक है। एक छोटे से दुकान से आप समझ सकते हैं कि आमदनी क्या होती होगी और ऊपर से हम तीन भाई-बहन पढ़ने वाले। लेकिन पिताजी ने कभी हिम्मत नहीं हारी और लगातार अपना प्रयास हम-तीनों के लिए जारी रखा। मेरा परिवार ही मेरी सफलता की नीव है। आर्थिक, मनोवैज्ञानिक सभी स्तरों पर, कठिन-से-कठिन और घोर निराशा के क्षणों में भी मेरा परिवार सदा मेरा उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ाता रहा। घर में आर्थिक तंगी थी, पढ़ाई पूरी करने के भी आसार नही दिख रहे थे, 12वीं के बाद घर की हालत कुछ ऐसी हो गई थी कि पढ़ाई के फीस भरने के भी पैसे नहीं थे, महज़ 600 रुपये महीने पर एक स्कूल में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। कभी दोस्तों ने कॉलेज की फीस भरी, तो कभी पार्ट-टाईम सड़क किनारे मोमबत्तियाँ भी बेची। लेकिन अपने आँखों में मैंने जो स्वप्न सँजोया था, उसे कभी धूमिल नही होने दिया।
वर्ष 2014 में मुझे एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ा था और उस वर्ष मैं प्रारंभिक परीक्षा में भी उत्तीर्ण नहीं हो सका। मैंने इसके बाद लगभग यह मन बना लिया था कि अब मैं UPSC की तैयारी नहीं कर पाऊँगा। इस स्वास्थ्य समस्या के आफ्टर इफेक्ट बाद के कुछ वर्षों तक भी रहे, मैं एक सीमा तक ही मेहनत कर सकता था। मेरे पिताजी मेरी हर असफलता के बाद मुझसे चर्चित पंक्ति के माध्यम से कहते थे कि “अभी तो अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है”। उनके आत्मविश्वास देख, मेरा खोया आत्मविश्वास वापस आ जाता था।
साथ ही पूर्व से सरकारी नौकरी में होने के कारण असफलता के बाद, समय-समय पर सामाजिक रस्मों, रीति-रिवाज़ पूरे करने का दबाब काफी होने लगा था। एक तो असफलता से मैं ख़ुद विचलित रहता और ऐसी परिस्थिति में, मैं काफी असहज़ होने लगता था। लेकिन मेरे हर फैसले में मेरी छोटी बहन मेरे साथ रहती और वो बोलती, भैया, आप अपनी पढ़ाई जारी रखो, बाँकी मैं सब देख लूँगी।
और फिर परिवार एवं दोस्तों के सहयोग से मैंने वर्ष 2015, 2016 और 2017 के साक्षात्कार दिए। और आखिरकार परिणाम आपके सामने है।

इसलिए सिविल सेवा या अन्य प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रयासरत युवाओं से कहना चाहूँगा कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों ना आ जाए, कभी मत डरिए, कभी निराश मत होइए। एक पंक्ति समर्पित करता हूँ-
कोशिश कर हल निकलेगा, आज नहीं तो कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा सध, मरुस्थल से भी जल निकलेगा॥
(यह “रतन दीप गुप्ता” से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
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टीम- “कोसी की आस” ..©