मालियों के टेंट से निकाल दिया गया लड़का बना अंडर-19 क्रिकेट का महान खिलाड़ी

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पूत के  पांव  पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं”  या  होनहार बिरवान के होत चिकने पात” या फिर यूं कहें कि  जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होने वाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ न कुछ चिकनाई होती है। शायद ही हममें से कोई हो जो इसका अर्थ न जानते हों, लेकिन विपरीत परिस्थिति और संसाधन का अभाव हो तो मंजिल पाना कठिन ही नहीं दुर्लभ हो जाती है ।  किन्तु वो कहते हैं न  कि हुनरबाज़ को सही गुरु मंत्र मिल जाए तो वह अपनी मंजिल ढूँढ ही लेता है। यशस्वी जयसवाल” ने एक  बार फिर सिद्ध कर दिखाया कि परिस्थितियों परिवर्तनशील है।  इस संसार में किसी व्यक्ति को बिना परिश्रम के ऊंचाई हासिल नहीं हुई है, जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से मेहनत की हो उसे सफलता अवश्य मिलती है ।

मुश्किलें किसकी जिंदगी में नहीं होतीं, लेकिन कुछ लोग घबराकर हार मान जाते हैं और कुछ अपनी इच्छाशक्ति से उस पर विजय हासिल कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के रहने वाले क्रिकेटर यशस्वी जयसवाल” की कहानी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने जिंदगी में आई कठिनाइयों से लड़ने का फैसला किया और जीत भी हासिल की। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस उभरते हुए क्रिकेटर ने क्या-क्या नहीं किया? अपनी मंजिल पाने के लिए।

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आइये जानते हैं……

अंडर-19 क्रिकेट का महान खिलाड़ी  “यशस्वी जयसवाल”  “सड़क किनारे सोए, मालियों के टेंट में रहे और डेयरी में काम किया तब जाकर अंडर-19 क्रिकेट टीम में पहचान बना पाए”। सचमुच इनके अंदर बॉलीवुड हीरो कि तरह जुनून हो गया था और उसी जुनून ने उन्हें मुश्किलों से पार करने की ताकत दी ।

इनके (यशस्वी जयसवाल) नाम अभी तक औपचारिक मैचों में 56 सेंचुरी और 300 से ज्यादा विकेट हैं । इनके कोच ज्वाला सर कहते हैं कि क्रिकेट इतिहास में तुम्हारी जितनी कम आयु में इतनी रिकॉर्ड बनाने वाला देश में कोई और खिलाड़ी नहीं है। क्रिकेट का जुनून इस कदर हावी हुआ कि ये पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाये। 10वीं की परीक्षा के समय भी कोई-न-कोई टूर्नामेंट खेलना पड़ता था। आज अंडर-19 में “यशस्वी जयसवाल” कई कीर्तिमान बना डाले हैं। वे बताते हैं , यह सब कुछ संभव हुआ मेरी मदद करने वालों के प्रयास से।

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के गाँव सुरियांवा बाजार से बेहद ही गरीब परिवार से आनेवाले “यशस्वी जयसवाल” जी को बाल्यकाल से ही क्रिकेट का शौक था,और हो भी क्यों ना। श्री यशस्वी बताते हैं कि जब मैं क्रिकेट खेलता था तो लोग कहते थे कि यह 1 दिन कुछ करके दिखाएगा। तब मैं चौथी कक्षा में था और मन-ही-मन हँसता था कि पिताजी तो कुछ कर नहीं पाए, मैं इस गाँव में क्या कर लूँगा? पिताजी खेती के साथ एक छोटी-सी दुकान चलाते थे, मेरी माँ प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, वह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती थीं। जब मैं मुंबई में था तो वह पत्र लिखकर मेरा हौसला बढ़ाया करती थीं कि नाकामी से घबराना मत,क्योंकि क्रिकेट का शौक तो मेरे पिताजी को भी था। इनके पिताजी ने भी काफ़ी अच्छा क्रिकेट खेलते थे।

एक दिन पिताजी, चाचा से मिलने मुंबई जा रहे थे, वे बोले चल तुझे भी घुमा लाता हूँ, मैं पहली बार मुंबई गया था। मुझे मुंबई बहुत अच्छा लगा मैं पिताजी को कहा कि मैं यहीं रहना चाहता हूँ तो वे मान गए। चाचा दादर में एक कमरे के घर में रहते थे, वहीं मुझे भी सोने की जगह मिल गई। तब मेरी उम्र करीब 10 वर्ष रही होगी। मैं आजाद मैदान पर लोगों के साथ क्रिकेट खेलने सुबह पहुँच जाता था। मेरा खेल देखकर सीनियर खिलाड़ी मुझे प्रोत्साहित करने लगे। हर खिलाड़ी कि तरह मैं भी सपना देखने लगा कि 1 दिन सचिन तेंदुलकर की तरह खेलूँगा। खर्च के लिए मैं “मुंबादेवी मंदिर” के पास स्थित दूध डेयरी में काम करने लगा। आजाद मैदान पर पप्पू सर नेट प्रैक्टिस कराने का शुल्क लेते थे, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं थे । उन्होंने मेरी मेहनत, लगन और आर्थिक हालात देखकर फीस माफ कर दी। ज्यादा प्रैक्टिस करने से कई बार थकान की वजह से मैं डेयरी पर नहीं जा पाता था, इसलिए नौकरी छोड़नी पड़ी। चूँकि चाचा का कमरा बहुत छोटा था, इसलिए मैं आजाद मैदान पर मालियों के लिए बनाए गए टेंट में रहने चला गया। मेरे इस फैसले से चाचा नाराज हुए। टेंट में रहना भी मेरे लिए किसी नर्क से कम नहीं था। टेंट में साथ वाले लोग मुझे मारते थे। वे कहते थे कि यह लड़का हमारा काम नहीं करता, खाना नहीं बनाता। खर्चा चलाने के लिए मैंने कुछ समय पानीपुरी बेचने वाले के साथ काम किया। वह भी मेरे साथ बहुत बुरा सलूक करता था।

मुझ पर बॉलीवुड के उस हीरो जैसा जुनून सवार हो गया था, जो मंजिल पाने के लिए तमाम मुश्किलें पार करता है। मुझे भी जुनून ने संघर्ष की ताकत दी। सीनियर खिलाड़ी मुझसे कहा करते थे कि तुम्हारा प्रदर्शन अच्छा होगा तभी तुम पर कोई ध्यान देगा, वरना जिंदगी भर यूं ही हमारी तरह खेलते रहो। यह बातें सुन मैं टूटने लगा था और गाँव जाने का मन बना रहा था। यहाँ प्रैक्टिस करते हुए 3 वर्ष हो चुके थे। टेंट से तंग आकर में कुछ दिन सड़क किनारे सोया। पप्पू सर को पता चला तो वह मुझे अपने घर ले गए। इसके बाद उन्होंने मुझे एक मैच में खेलने का मौका दिया। मेरा प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा, इसके बदले मुझे मुस्लिम यूनाइटेड के टेंट में रहने-खाने की सुविधा मिल गई। 1 दिन मैच के सिलसिले में ज्वाला सर मैदान पर आए। उन्होंने मुझे बुलाया और कहने लगे मेरे घर आकर मिलो। मैं उनके घर गया तो उन्होंने मुझे अपने पास ही रख लिया। उन्होने  कहा कि मेरे कहे अनुसार खेलो तो 1 दिन नाम कमाओगे। मैं भी गोरखपुर से यहाँ आया था क्रिकेट खेलने। मेरी किसी ने मदद नहीं की। आज मैं तुम्हारी मदद करके अपना सपना पूरा करना चाहता हूँ। मैं उनके मार्गदर्शन में प्रैक्टिस करने लगा। इस तरह मुझे उनके साथ रहकर खेलते हुए 5 वर्ष हो चुके हैं।

ज्वाला सर के मार्गदर्शन में खेली मेरी अब तक की सबसे यादगार पारी अंडर-14 के मैच की थी। जाइल्स शील्ड क्रिकेट टूर्नामेंट मुंबई में मैंने 319 रन बनाए थे। साथ ही 13 विकेट भी लिए थे, इस कारण लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में मेरा नाम दर्ज हुआ। भारत की अंडर-19 टीम में श्रीलंका जाने के लिए मेरा चयन हुआ। उसमें सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन भी खेल रहे थे। अर्जुन ने मेरे बारे में अपने पिता को बताया तो सचिन सर ने मिलने के लिए मुझे अपने घर बुलाया। 8 जुलाई 2018 को उनके साथ कुछ मिनट की मुलाकात 45 मिनट में बदल गई। “सचिन सर ने अपना एक बैट मुझे गिफ्ट किया”, मेरे साथ फोटो खिंचाया। इसी के साथ उन्होंने मुझे क्रिकेट के इतने सारे टिप्स दिए कि उन पर अमल करते हुए मैं श्रीलंका में सर्वाधिक 114 रन बनाकर नॉट आउट रहा और मैन ऑफ द मैच चुना गया। अक्टूबर 2018 में अंडर-19 एशिया कप के चार मैच में सर्वाधिक 318 रन बनाकर मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। अब राहुल द्रविड़ हमारे ट्रेनर हैं।

2019 में मुंबई की रणजी ट्रॉफी में खेला। 5 महीने पहले लखनऊ में अंडर-19 के चैलेंजर ट्रॉफी टूर्नामेंट में कीर्तिमान रचा। 28 फरवरी 2019 को तिरुवनंतपुरम में साउथ अफ्रीका के साथ चल रहे अंडर-19 टेस्ट मैच में 173 रन बनाए और मैन ऑफ द मैच चुना गया हूँ। अंत में यशस्वी जयसवाल कहते हैं कि जिस दिन मैं भारतीय टीम का हिस्सा बनकर खेलूँगा, तभी खुद को सफल मानूँगा।

(जैसा अंडर-19 में कई कीर्तिमान बनाने वाले “यशस्वी जयसवाल” ने मुंबई के विनोद यादव को बताया।)

अंत में “कोसी की आस टीम” अपने पाठकों से कहना चाहती है कि हमें मुश्किलों से घबराना नहीं चाहिए । बहुत समय ऐसा होता है जब परिस्थिति आपके अनुकूल नहीं होती लेकिन हमें उस स्थिति का डटकर मुक़ाबला करना चाहिए । कहते हैं कि अगर शाम हुई है तो सुबह अवश्य होगी । अंधेरा है तो उजाला अवश्य होगा । श्री यशस्वी जयसवाल ने भी इसी रास्ते पर चलकर कठिनाइयों को दुश्मन समझकर डटकर मुक़ाबला किया और आज एक  अपनी मुकाम हासिल कर लिया है ।

Source- दैनिकभास्कर

Pic Source- Internet Images

 

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