“बेकापुर, मुंगेर, बिहार के बेहद ही गरीब परिवार और वन विभाग में एक अदद ड्राइवर के पोते के सेंट्रल टैक्स एंड सेंट्रल एक्साइज में इंस्पेक्टर बनने की” कहानी को आज “कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 9वीं कड़ी में आपके सामने परोसने जा रही है। यह कहानी उन सभी छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जो मुश्किल परिस्थितियों के बाद भी लगातार अपने लक्ष्य पाने की जिद में पूरी ताकत के साथ जुड़े हैं।
अपने लक्ष्य पाने की जिद में जुड़े सभी छात्रों के लिए एक पंक्ति उधार लेता हूँ और आपसबको सोंपता हूँ
“यही जज्बा रहा तो, मुश्किलों का हल भी निकलेगा,
जमीं बंजर हुई तो क्या, वहीं से जल भी निकलेगा,
ना हो मायूस, ना घबरा अंधेरों से, मेरे साथी,
इन्हीं रातों के दामन से, सुनहरा कल भी निकलेगा”॥
“कोसी की आस” टीम आज जो कहानी आपको बताने जा रही है, वो न सिर्फ प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की चाह रखने वाले छात्र के लिए बल्कि उन सभी अभिभावकों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जिनके बच्चे आज सफलता की चाह में प्रयासरत हैं। आइये मिलते हैं बेकापुर, मुंगेर, बिहार के वन विभाग से सेवानिवृत ड्राइवर श्री बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह के सुपौत्र और श्री राज कुमार सिंह & श्रीमति मीरा देवी के होनहार सुपुत्र अनुपम सिंह से।
1. व्यक्तिगत परिचय
नाम :- अनुपम सिंह
सुपौत्र :- श्री बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह
पिता/ माता का नाम:- श्री राज कुमार सिंह & श्रीमति मीरा देवी
शिक्षा:- 10वी :- मॉडल उच्च विधालय, मुंगेर, द्वितीय श्रेणी
12वी :- आर. डी. & डी. जे. कॉलेज मुंगेर, द्वितीय श्रेणी
स्नातक :- आई. एन. कॉलेज घोसठ, मुंगेर, द्वितीय श्रेणी
2. ग्राम :- बेकापुर, मुंगेर
3 जिला :- मुंगेर, बिहार
4. पूर्व में चयन :- Group- D, रेलवे
क्लर्क (SSC CHSL EXAM)
सहायक ग्रेड –III, (Food Corporation of India)
बिहार TET
क्लर्क (ISMU project Division, CPWD), धनबाद
5. वर्तमान पद :- इंस्पेक्टर इन सेंट्रल एक्साइज एंड जीएसटी, मुंबई
6. अभिरुचि:- क्रिकेट खेलना और किताबें पढ़ना।
7. किस शिक्षण संस्थान से आपने तैयारी की:- किसी ख़ास संस्थान से तो नहीं, किन्तु मैंने अंग्रेजी के लिए मुंगेर के “गुरु श्री अंजनी शुक्ला सर” और गणित के लिए “विक्की भैया” (वर्तमान में रेल्वे गार्ड) और “रौशन सर” मुंगेर के मार्गदर्शन से सफलता हासिल की।
8. आपको इसकी तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिला:- मेरे दादा जी श्री बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह, सेवानिवृत वन विभाग ड्राइवर और मेरे माता-पिता की मेहनत से मुझे प्रेरणा मिली। उन्होंने मेरे पढ़ाई के लिए काफ़ी कठिनाइयों का सामना किया, उनका मेरे ऊपर विश्वास ही मेरी ताक़त बनी।
9. आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:- मेरे दादा जी और मेरी माँ जिन्होंने बहुत मुश्किल हालात में भी मुझे पढ़ाया और कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दिया। मेरी माँ जो मेरी सबसे प्यारी टीचर भी हैं, मेरे पापा ओर भाई-बहन सबके अभूतपूर्ण सहयोग की वजह से ही मैंने ये सफलता पायी हैं।
10. वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे:- मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि कभी असफलता से घबराइए नहीं, निरंतर कोशिश करते रहिए। सफलता ज़रूर आपके क़दमों में होगी। मेहनत इतनी ख़ामोशी से करें कि सफलता शोर मचाने लगे।
वो कहते है ना “No Pain, No Gain”
कठिनाइयों से घबराइए नहीं और लगातार प्रयासरत रहें। यदि आप लगातार मेंहनत कर रहे हैं और प्रारंभ में ही आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, तो समझ लीजिये आने वाला समय आनंददायक होने वाला है।
11.अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं:- जब यह सवाल उनसे पूछा गया तो बहुत ही शानदार लाइन से “श्री अनुपम” ने शुरुआत की, कि “कठिनाइयों और संघर्षों के बिना सफलता का मज़ा नहीं लिया जा सकता”।
मेरे पिता जी के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के कारण घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ मेरे दादा जी पर थी। दादाजी को मैंने अपने बचपन से ही बहुत मेहनत करते देखा हूँ, उनकी मामूली आय में पुरे परिवार का पालन-पोषण करने में उनको काफ़ी समस्या आती थी, फिर भी वो हमलोगों को किसी चीज़ की कमी नहीं हो, के लिए हमेशा प्रयासरत रहे। वो हमारे परिवार के लिए भगवान से कम नहीं हैं। सच कहूँ “भगवान को किसी ने नहीं देखा है, लेकिन कोई मुझसे पूछे तो मैं यही कहूँगा कि मेरे दादा जी और मेरी माँ ही मेरे भगवान हैं”। मेरा घर बहुत छोटा था, महज़ दो कमरे के घर में परिवार के 9 सदस्य का रहना, आज भी मुझे बख़ूबी याद है। बारिश में पता ही नहीं चलता था कि कमरा कौन सा है और आँगन कौन सा, पूरा घर छत के टूटे होने के कारण बारिश के पानी से भर जाया करता था। ऐसे में घर में पढ़ाई करने में काफ़ी दिक्कत आती थी किन्तु दादाजी की मेहनत देख मुझे हमेशा लगता था कि कब में अपने दादाजी की इतनी बड़ी जिम्मेदारी में अपना सहयोग कर सकूँगा। उस वक्त की परिस्थिति में घर का बड़ा बेटा होने के कारण मुझे जल्द-से-जल्द एक अदद नौकरी की ज़रूरत थी। मैं लगातार मेहनत कर रहा था और प्रारंभिक सफलता भी मिल रही थी किन्तु अंतिम रूप से चयन नहीं हो पा रहा था। मैं एक वक़्त हारने लगा था, परिवार की समस्याओं और दादाजी की उम्र को देख मैंने कहीं भी नौकरी करने की सोचने लगा।
मुझे हमेशा से एक ही बात सबसे ज़्यादा दुःख देता था कि मैं अपने परिवार के लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। एक वाकया साझा करना चाहूँगा कि मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि “तू अब कोई काम कर ले, सरकारी नौकरी ग़रीबों को नहीं मिलती” तुझे मैं एक काम दिलवा सकता हूँ, मैं उसके साथ वो काम करने चला गया। काम के बारे में पता चला कि मुझे एक रजिस्टर से डिटेल कम्प्यूटर में टाइप करना है और प्रत्येक एंट्री के ३० पैसे मिलेंगे। सारा दिन मेहनत करने के बाद भी कुछ ज्यादा नहीं मिला।
एक बार फिर, दादाजी और मम्मी का उन पारिवारिक समस्याओं के बीच ही मेरी पढ़ाई जारी करने की जिद ने मुझे झकझोर कर रख दिया कि कुछ भी कर लेने से “हम अपनी ही नहीं, उनकी उम्मीद और मेहनत पर भी पानी फेर देंगे”। मुझे लगा कि जब मेरे घर वाले इतना मेहनत मुझे कुछ अच्छा बनाने के लिए कर रहे हैं, तो मुझे भी कुछ अच्छा कर के ही दिखाना है। घर में पैसे की समस्या के कारण मुझे कोचिंग क्लास या फ़ॉर्म फ़ीस देने में घर से पैसे माँगने में अच्छा नहीं लगता था, मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि घरवालों से कम-से-कम पैसे माँगना पड़े।
फिर ये पंक्तियाँ जो हिम्मत देती, वो कहते है ना……
“हमारी उपलब्धियों में,
परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है,
क्योंकि
समन्दर में भले ही पानी अपार है,
परन्तु
सच तो ये है कि वो,
नदियों का उधार है।”
प्रतियोगी परीक्षा देने जाने के दौरान ज़्यादा पैसे नहीं होने के कारण बिना टिकट ट्रेन यात्रा करना और ठहरने के लिए होटल नहीं ले पाने के कारण ना जाने कितनी बार प्लेटफॉर्म (रेल्वे स्टेशन) पर सोया, बाद में परीक्षा स्थल जाने से पहले सीनियर भैया लोगों से उस शहर के सबसे सस्ते धर्मशाला और गुरुद्वारा आदि का पता लगा लेता ताकि कम-से-कम खर्च में परीक्षा देकर वापस आ सकें, ये सब अपनी जीवन का एक हिस्सा बन गया था। एक ख़ास बात आप सबको बताना चाहूँगा कि जब भी प्रतियोगी परीक्षा देने किसी भी शहर में जाता ठहरने की पहली प्राथमिकता परीक्षार्थिर्यों की गुरुद्वारा होती थी क्योंकि वहाँ निःशुल्क ठहरना और खाना मिल जाता। हालाँकि मेरे दादा जी ने अपने हिसाब से कभी ऐसा महसूस होने नहीं दिया कि उन्हें पैसे की दिक्कत हैं और हर क़दम मेरा साथ दिया और आज़ दादाजी और मम्मी का अप्रीतम स्नेह, मेहनत, विश्वास और हमारे निरंतर प्रयास का परिणाम आपके सामने है।
अंत में एक पंक्ति जो मैंने कहीं पढ़ा था साझा करूँगा कि…….
“कितना भी पकड़ो, फिसलता जरूर है,
ये वक्त है साहब, बदलता जरूर है”॥
आख़िर में “कोसी की आस” टीम बड़े ही दुःख के साथ कहना चाहती है कि श्री अनुपम जिन्हें (दादाजी) अपनी सफलता के द्योतक मानते थे, उनका (दादाजी) दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। “कोसी की आस” परिवार की ओर से ऐसे महान दादाजी को भावभीनी-श्रद्धांजलि।
(यह “अनुपम सिंह” से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
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टीम- “कोसी की आस” ..©