“पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं”, “होनहार बिरवान के होत चिकने पात” और “पूत सपूत ते क्यों धन संचय”, बेशक अजीब लग रहा होगा कि “आख़िर का हो गया इनको सुबह-सुबह, मुहावरा बोलते जा रहे हैं, भांग-वांग तो नहीं खा लिए या सठिया गए हैं का?
नहीं-नहीं, न तो हम भांगे खाये हैं आज और न ही सठियाए हैं। लेकिन आप सब से एगो बात पूछ रहे हैं कि ये सब मुहावरा तो पूरा रटल होगा, याद है कि नहीं, यदि तनियो भुलाए होंगे न, ते आज़ हम “कोशी की आस” टीम के प्रेरक कहानी श्रृंखला के साप्ताहिक और 41वीं कड़ी में एक वैसे ही शख़्सियत से मिलाने जा रहे हैं, जो सब भूललका याद करा देंगे और हाँ, उ मास्टर साब वाला सटकी का भी जरूरत न होने देंगे। तो आइये मिलते हैं एक ऐसे ही व्यक्तित्व, जो काफी समय से अपने पढ़ाई के साथ-साथ अपनी अद्भुत लेखनी से सोशल मीडिया का उपयोग करते हुये देश-विदेश में रह रहे लाखों लोगों को उनकी भूली-बिसरी यादों को ताजा कर उन्हें कुछ पल के लिए ही सही, लेकिन इस बेपनाह मुश्किलों से भरी दुनियाँ में सुकून दिलाने का काम कर रहे हैं। आप सभी सोच रहे होंगे कि ठीक है, बहुत हुआ भूमिका, भाषण-पर-भाषण दिये जा रहे हैं, अब तो मिलवा दीजिये, ते हम बोलना चाहेंगे कि आप उतावले हो रहे हैं, तो ठीक है, अब हम अपन सब चुट्टा-कमंडल समेटेते हैं लेकिन जिस शख्सियत से मिलने जा रहे हैं न, उनका लेल इतना शब्द काफी नहीं है। खैर सच में भाषण बाजी को समेटते हुये आइये मिलते हैं चोरौत, सीतामढ़ी के श्री राकेश लाल कर्ण के पुत्र, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अद्भुत लेखक और अभी-अभी असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित श्री अमन आकाश से और जानते हैं उनकी अब-तक की कहानी उन्हीं की जुबानी।
दसवीं और बारहवीं बिहार बोर्ड से पूर्ण करने के उपरांत श्री अमन ने पत्रकारिता से स्नातक के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन कराया। पत्रकारिता ही क्यों? का सवाल जब “कोशी की आस” टीम के सदस्य ने उनसे किया तो उन्होंने बताया “पटना में रंगमंच करते हुए साथियों ने बताया कि आप अच्छा बोलते हैं, अच्छा लिखते भी हैं तो पत्रकारिता का फील्ड आपके लिए सबसे उपयुक्त होगा।” चूंकि उस समय बारहवीं के छात्र थे तो ज्यादा देर भी नहीं हुई थी। मैंने आगे की पढ़ाई मास कम्युनिकेशन से करने की ठान ली। माता-पिता, दोस्त और एक अदृश्य शक्ति जिसे हम परमपिता परमेश्वर कहते हैं, का पूरा सहयोग और समर्थन मिला। दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा दिया और उसमें सफल होने के उपरांत दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन हो गया, ज़िन्दगी फिर पटरी पर आ गयी।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) से मास कम्युनिकेशन में स्नातकोत्तर और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से मीडिया स्टडीज में एमफिल कर चुके, साथ ही हाल ही चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद (हरियाणा) में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित श्री अमन से जब हमारे टीम के सदस्य ने पूछा कि आपने किस शिक्षण संस्थान से तैयारी की? बहुत ही खूबसूरत जवाब उन्हीं की जुबानी “संचार कला सीखने के लिए आपको किसी संस्थान का मोहताज नहीं होना पड़ता, अपने व्यक्तिगत प्रयास, निरन्तर अध्ययन, अपने वातावरण का सूक्ष्म अवलोकन आपको एक कुशल संचारकर्ता बना सकता है।” हाँ, मीडिया के छात्रों के दिल्ली में अपार संभावनाएं हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय का माहौल हमारे अंदर के टैलेंट को निखारने का पूरा मौका देता है। बाकी अगर आप मीडिया के अध्येता हैं तो हर आदमी, हर शहर, हर संस्कृति से आपको कुछ-ना-कुछ नया सीखने का मौका मिलता है, बशर्ते हमारे कानों में इयरफोन ना लगा हो और आंखों के सामने मोबाइल की स्क्रीन ना हो।
अध्यापन, लेखन और एंकरिंग में रुचि रखने वाले श्री अमन से जब उनकी अबतक की सफलता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सफलता नहीं यह शुरुआत है। अध्यापन का यह जो मौका मिला है इसके पीछे माता-पिता, गुरुजनों, दोस्तों, अपने सीनियर्स के असीम स्नेह और शुभकामनाओं का योगदान है। आगे और भी मौके मिलते रहेंगे। दादा मजरूह सुल्तानपुरी के शब्दों में
“मैं अकेला ही चला था,
ज़ानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए,
और कारवां बनता गया।”
बहुत ही मिलनसार स्वभाव और मैथिल के साथ हमेशा मैथिली में प्रमुखता से अपनी बात रखने वाले श्री अमन से जब पूछा गया कि वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे? तो उन्होंने बताया कि अध्ययन-अवलोकन सतत ज़ारी रखें, इसके अलावा हमारे पास भी कोई विकल्प नहीं है। अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाएं, रिश्ते अच्छे रखें, अपना एक अलग व्यक्तित्त्व बनाएं, देश-दुनिया से अपडेट रहें और मेरी बातों पर बिल्कुल ध्यान ना दें, जो दिल करे वही करें, किसी के प्रभाव में नहीं आएं, आपको आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता।
अपनी अद्भुत लेखन शैली से सोशल मीडिया पर एक अच्छी-ख़ासी फैन फोलौइंग बना चुके श्री अमन से जब उनकी अब तक की सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि हमारे करियर बनाने के पीछे हमारा पूरा परिवार, आसपड़ोस, समाज सब लगा होता है। ऐसे में कठिनाइयाँ कैसे आ सकती हैं! हाँ, हम बिहार के मध्यमवर्गीय परिवार से हैं, हमारी ज़िन्दगी में संघर्ष और समझौते हर कदम पर आते रहते हैं, चाहे वो करियर के मामले में हों या आर्थिक मामलों में, कई बार हमें बहुत सोच समझ कर फैसले लेने होते हैं, बड़ा सामंजस्य बिठाना होता है। हालांकि लंबे समय तक हमारे परिजन हमारी आर्थिक समस्याओं से लड़ते हैं, अपने परिजनों के इस संघर्ष का हम सम्मान करें। फिर लाख कठिनाइयां आएंगी, हम उसे हंसते-हंसते झेल लेंगे।
ये सब तो हुई, उनकी कुछ बाते, लेकिन ऊपर में उनके बारे में जो हम बोले थे कि सभी बचपन के भुललका-बिसरलका याद दिला देंगे, उसके बारे में चर्चा करना ही भूल गए थे। असल में वे अपने अद्भुत लेखनी से इतने कम उम्र में सोशल मीडिया पर अपनी छाप छोड़ने में वे जो कामयाब हुये हैं, उसकी वजह है उनके शब्दों का चयन, अपने अद्भुत शब्दों के माध्यम से आए दिन सोशल मीडिया पर “चाहे सरसती पूजा की याद हो या मिथिला की बारात, अनंत पूजा हो या विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा की याद हो या पापा को जन्मदिन पर हैप्पी बर्थडे कहने की बात हो, अपनी हर लेखनी से उन नब्ज़ पर हाथ रख बैठते हैं, जिसे हम मुसकुराते हुये सिर्फ महसूस कर सकते हैं।
उनके चर्चित लेखों में से बस टू पटना जिसके दस-ग्यारह किस्त सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं। बस टू पटना छोटे से गांव से निकल कर पटना जाकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों की जीवन यात्रा है। मिड्ल क्लास फैमिली से निकल कर पटना जाने वालों छात्रों की जीवनशैली, उसके संघर्षों को सूक्ष्मता से लिखा गया है। सहज ठेठ बोली में इस तरह का आर्टिकल तभी लिखा जा सकता है जब लेखक ने उस जीवन को जीया हो, महसूस किया हो।
आपको बताते चलें कि श्री अमन को उनकी लेख, निबंध के साथ-साथ रंगमंच के लिए भी दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, उनमें से कुछ का विवरण इस प्रकार है—
- कविता लेखन के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत
- स्लोगन राइटिंग के लिए यूनिसेफ बिहार द्वारा पुरस्कृत
- विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा द्वारा निबन्ध लेखन के लिए पुरस्कृत
- NIT, भोपाल के हिंदी कार्यक्रम तूर्यनाद में पुरस्कृत
- विभिन्न विश्वविद्यालयों में निबन्ध, स्लोगन, रचनात्मक लेखन में पुरस्कृत
अमन आकाश के अब तक की सफलता के लिए कोशी की आस परिवार की ओर से बहुत-बहुत शुभकामना। साथ ही कोशी की आस परिवार, श्री अमन के उनके उज्ज्वल भविष्य के साथ-साथ उनकी अद्भुत लेखनी पर माँ सरस्वती की कृपा अनवरत बरसती रहे, यही कामना करती है।
(यह “अमन आकाश” से “कोशी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
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टीम- “कोशी की आस” ..©