जहाँ एक तरफ भारत चंद्रमा पर अपने यान को भेज कर अन्तरिक्ष के क्षेत्र में अपने प्रभाव को स्थापित कर अपने आप को अग्रणी देश की सूची में शामिल कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ भारतीय समाज का एक ऐसा वर्ग आज भी है, जहाँ लड़कियों के कॅरियर के दृष्टिकोण से कुछ ख़ास क्षेत्र को सही नहीं माना जाता है, जिसमें संगीत गायन भी प्रमुख है।
“कोसी की आस” टीम ने अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 32वीं कड़ी में जिस प्रेरक व्यक्तित्व की कहानी और जीवन-संघर्ष के बारे में बताया था, कम-से-कम उनके निर्णय में उनके पापा ने साथ दिया था लेकिन आज़ हम जिनकी कहानी बताने जा रहे हैं, उनके पापा ही थे, जो उनको समझ सकते थे लेकिन दुर्भाग्य, वो सीजोफ़ेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित हो गए और इस बेटी को परिवारवालों का तो साथ नहीं ही मिला बल्कि समय-समय पर ताने जरूर मिले।
इन हालातों से स्पष्ट होता है कि वर्तमान परिदृश्य में भी समाज सामान्य परिवार के बच्चे-बच्चियों के हसीन या फिर यूँ कहें कि बड़े सपने को पचा नहीं पाता। आज़ “कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 33वीं कड़ी में जिस कोसी की बेटी की कहानी आप सब के सामने प्रस्तुत करने जा रही है, उस बेटी ने साबित किया है कि आपमें अपनी हसरत पूरी करने का जज़्बा और जुनून होना चाहिए और यदि आपमें वो जिद है, तो कैसी भी मुश्किलें क्यों न हो, आप अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँचेंगे। आज़ की यह कहानी उन सभी युवाओं के लिए एक सीख या फिर एक मार्गदर्शन करने वाला पथ है, जो हमें बताएगा कि यदि हम अपने पसंद के क्षेत्र को अपना कॅरियर बनाएँगे तो न सिर्फ हम अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करेंगे बल्कि हम मानसिक रूप से प्रसन्न भी रहेंगे। तो आइये मिलते हैं बिहार की संगीत की दुनियाँ में अपना स्थान बना चुकी बीना,बभंगामा, सुपौल के डॉ श्याम चैतन्य झा और श्रीमती सुलोचना प्रियदर्शनी की प्रतिभावान सुपुत्री श्यामा शैलजा से।
श्यामा शैलजा से बातचीत की सिलसिला का शुरुआत करने से पहले उनके अब तक के जीवन–संघर्ष और सफलता के आधार पर मित्रों से एक पंक्ति साझा करना चाहूँगा कि
“दौलत और शोहरत में ताकत होती है,
जब ये दोनों न हो तो,
इंसान को अपने भी छोड़ देते हैं,
और
जब ये दोनों आ जाएँ तो,
अपनों की कतार लगी होती है।”
बचपन से ही गाना सुनने और गाने की शौक़ीन श्यामा शैलजा बताती हैं कि मेरे पापा संगीत के प्रेमी रहे हैं और बहुत अच्छा गाते थे, इसलिए संगीत की प्राथमिक शिक्षा मुझे घर में ही मिल गई। बचपन से ही संगीत के प्रति रुचि ने संगीत और संगीत के प्रति मेरे लगाव को इस कदर बढ़ाया कि जब भी मुझे समय मिलता, मैं हारमोनियम बजाने की कोशिश ख़ुद ही करती रहती थी। शैलजा आगे बताती हैं कि पापा दिल्ली में नौकरी करते थे, हमलोग सपरिवार दिल्ली में रहते थे। यहाँ तक सब ठीक चल रहा था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, मैं जब लगभग महज़ 10 साल की थी, पापा को सीजोफ़ेनिया नामक मानसिक बीमारी हो गई, बीमारी से ग्रसित होने के कारण एक अच्छे संगीतज्ञ होने के बावजूद भी पापा का संगीत से रिश्ता टूटता गया, यूँ कहिए तो इस घटना से हमारा परिवार ही बिखड़ गया। लगभग 1 वर्ष बाद वापस बिहार आ गई और नाना के यहाँ से वैसी परिस्थिति में दसवीं संत जेवियर्स स्कूल सहरसा से पास किया, 12वीं के लिए रमेश झा महिला कॉलेज सहरसा में पिताजी के कहने पर नामांकन करवा ली, पर सपना तो सहरसा से बाहर निकलकर संगीत में कुछ कर दिखाने का था। मेरी संगीत की रुचि अब भी मुझे झकझोर रही थी, लेकिन परिवारवालों और रिशतेदारों द्वारा संगीत सीखने की बहुत कोशिश करते देख आए दिन कहा जाता था कि संगीत-वंगीत से कुछ नहीं होता, पढ़ाई पर ध्यान दो, संगीत को सेकेंडरी रखो। इन बातों से मैं परेशान हो जाती, लेकिन मजबूरियां रोक रही थी।
श्यामा शैलजा आगे बताती हैं कि पापा और गुरुजनों के कहने पर मैंने 12वीं में साइंस रख लिया लेकिन साइंस में मन नहीं लग रहा था, मैं गाने गा-गाकर फेसबुक पर पोस्ट करने लगी। भी॰ जे॰ इंटरटेनमेंट (V. J. Entertainment) नामक एक कंपनी के संचालक विकास झा, जो मैथिली में एक स्टेबल सिंगर हैं, ने सोशल साइट के माध्यम से मुझसे संपर्क किया और मुझे मौका देने का आश्वासन दिया। वह वक़्त मेरे लिए बहुत ही मुश्किल वक़्त था, मेरे लिए निर्णय की घड़ी थी, मैंने नोएडा जाने का निर्णय किया, लेकिन मेरे इस निर्णय से कोई सहमत नहीं थे, उसके बाबजूद मैं नोएडा चली गई, वहाँ भी मेरे लिए स्थितियाँ आसान नहीं थी, मैंने जैसे-तैसे छह-सात महीने गुजारे उसी दौरान मेरी पहली गीत रिलीज हुई लेकिन मैं अपने संगीत का भविष्य और ज्यादा वहाँ नहीं देख पा रही थी। मैं घर वापस आई, लेकिन यहाँ परिवार और समाज में मेरे बारे में क्या कुछ नहीं बोला गया? कईयों ने तो मेरे बारे में बोला था कि मैं भाग गई थी, तो मैं बताना चाह रही हूँ कि हाँ, मैं भागी जरूर थी लेकिन अपनी संगीत के लिए, अपने सपनों के लिए। वापस आने के बाद 12वीं का परीक्षा काफी नजदीक था, मैंने उस सीमित समय में जो संभव हो पाया पढ़ा और परीक्षा दी, भगवान की दया से मैं अच्छे अंकों से पास हो गई। 12वीं की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद घरवालों ने फैसला लिया कि मुझे सहरसा में रहकर ही पढ़ाई करनी है। वहाँ की परिस्थितियां मेरे अनुसार बिल्कुल नहीं थी, मुझे वहाँ यह बताया जा रहा था कि लड़की हो, घर संभालना सीखो लेकिन मुझे कभी घरेलू कार्यों में मन नहीं लगता था। जहाँ तक संगीत की बात थी, घरवालों का कहना था कि फिल्मी गाना छोड़ो और सिर्फ़ पारंपरिक लोकगीत और शास्त्रीय संगीत पर ध्यान दो, मगर मेरा मन हमेशा से ही कुछ अलग करने का था। मुझे पदचिन्हों पर नहीं चलना था बल्कि ख़ुद एक नया रास्ता बनाना था। मैंने बहुत से सपने देखे हुए थे जैसे एक अच्छे विश्वविद्यालय में पढना या फ्यूजन और रॉक मुझें लुभाती थी और वही करने की मेरी इच्छा थी। मैंने फिर से घर छोड़ने का फैसला किया और पटना आ गई। सबकी बातों को नकार कर यहाँ आना बहुत कठिनाइयां भरा रहा लेकिन मैंने खुद की मदद से ही पटना में रहने में सक्षम बनी और पटना यूनिवर्सिटी के मगध महिला कॉलेज में स्नातक में नामांकन करा लिया। इतनी सारी नकारात्मक चीजों के वजह से कुछ गलतियाँ भी हुई, किन्तु उसे सुधारकर मैंने बहुत कुछ सीखा भी।
अपनी जादुई आवाज और गायकी की मधुरता से मैथिली गीत-संगीत के क्षेत्र में विशिष्टता कायम कर चुकी सहरसा के नरियार, बगहा रोड निवासी श्यामा शैलजा कहती हैं कि मैथिली गीतों की अपनी एक खास मीठास है, जो अन्य दूसरे भाषा में नहीं है। मैथिली हमारी संस्कृति में रची बसी हुई है, मैथिली गीत ही ऐसा गीत है, जो हमारे हर पर्व-त्यौहार और लोकोत्सव से जुड़ी हुई है।
संगीत के माहौल वाले घर में पैदा हो, अपने पिता से ही संगीत का ककहरा सीखने वाली शैलजा अपना पहला गुरु पिता को मानती है। इसके बाद स्वरांजलि संस्था से जुड़कर संगीत और गायन की बारीकियों को सीखा और वर्तमान में श्री रजनीश कुमार से सीख रही हैं। सीखने की अवस्था में ही अपनी गायकी और जादुई आवाज से लोगों को दीवाना बना चुकी शैलजा मैथिली के पारंपरिक गीत भी गाती हैं।
श्यामा शैलजा बेहद कम उम्र में अपनी जादुई आवाज का जलवा बिखेरकर बिहार दिवस, युवा महोत्सव, जयनगर महोत्सव, कोशी महोत्सव, उग्रतारा महोत्सव, कोसी फिल्म फेस्टिवल, युवा कम्युनिटी, काशी महोत्सव और यात्री लोकउत्सव जैसे महोत्सव और मंचों में चार-चाँद लगा चुकी हैं। 2017 युवा महोत्सव में सुगम संगीत गायन में राज्य स्तर पर द्वितीय स्थान, नेहरू युवा केंद्र द्वारा आयोजित स्थापना दिवस समारोह में विशेष सम्मान युवा महोत्सव 2018 में प्रथम स्थान और जिला स्तर पर कई बार जीत चुकी शैलजा अपनी सफलता का श्रेय अपने पापा के आलावे अपने गुरुजन प्रोफेसर भारती सिंह और रजनीश कुमार को देती हैं। फिलहाल मैथली के साथ-साथ हिंदी गीतों पर काम कर रही है, उनका पहला हिंदी कवर गीत रिलीज हो गया है।
संगीत गायन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल और आत्मविश्वास से लबरेज़ शैलजा बताती हैं कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है और बहुत आगे जाना है किन्तु मैं आज़ जो भी हूँ, उसमें घरवालों की बहुत सी बातों का बड़ा योगदान रहा है, अरे तुम क्या कर पाओगी? जब मैं नवी कक्षा में थी, मेरे मामा जी ने कहा था कि 12वीं तक जाते-जाते बर्बाद हो जाओगी, किन्तु मैंने इन सभी तानो को सकारात्मक रूप में लिया और अपनी सफलता के माध्यम से जबाब देने की सोची, इसलिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
युवाओं को आपके माध्यम से बस एक ही संदेश देना चाहूंगी कि जीवन एक ही बार मिलता है, इसे व्यर्थ ना करें, हर समय को इस्तेमाल करें और उसे कुछ-न-कुछ सीखने की कोशिश करें, समय गवाएं बगैर अपना कर्म करते चलें, सक्सेस खुद ही आपके साथ आएगी। भविष्य के बारे में ना सोचें, बस आपने अपना जो लक्ष्य बनाया है, उस लक्ष्य के लिए हर दिन 100% देने का प्रयास करें। सफलता प्राप्त करने के लिए लड़ने की क्षमता और इग्नोर करने का साहस जरूर रखें, कठिनाइयां आएगी पर टिक नहीं पाएगी।
(यह “श्यामा शैलजा” से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
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टीम- “कोसी की आस” ..©