अटूट घराना : भारत का सबसे बड़ा संयुक्त परिवार।

0
196
- Advertisement -

स्पेशल डेस्क

कोशी की आस@नई दिल्ली

- Advertisement -

जहाँ एक तरफ भारत की संस्कृति का परिचायक संयुक्त परिवार का भारत में ही गला घोंट दिया गया है वहीं बेंगलुरु से 500 किलोमीटर दूर धारवाड़ जिले का लोकुर गाँव के एक परिवार ने मिसाल पेश किया है। इसी गाँव का भीमा नरसिंहवर परिवार देश के सबसे बड़े संयुक्त परिवारों में शुमार है। परिवार के 80 पुरुष और 60 महिलाएं अर्थात कुल 140 सदस्य एक साथ रहते हैं। परिवार में 18 साल तक की उम्र के 30 लोग हैं। परिवार के बारे में और जानकारी हासिल करने जब संवाददाता वहाँ पहुंचे तो घर के आंगन में 7-8 चूल्हों पर नहाने के लिए पानी गर्म हो रहा था। एक कमरे से आटा चक्की चलने की आवाज आ रही थी। पूछने पर परिवार के सदस्य मंजूनाथ ने बताया कि दाल, बेसन मैदा और ज्वार पीसने के लिए परिवार के पास खुद की दो चक्की है। यहाँ रोज पिसाई होती है, रोज सबका खाना एक साथ बनता है, वह भी दिन में तीन बार और एक बार में कम-से-कम 300 ज्वार की रोटियां बनती है। 40 गायें हैं जिनसे हर रोज 150 लीटर दूध होता है, जिसमें 60 लीटर घर में ही लग जाता है।

परिवार के पास 200 एकड़ जमीन है। 90 साल के ईश्वरप्पा बताते हैं कि सात पीढ़ी पहले हमारे पुरखे महाराष्ट्र के हटकल अंगदा से यहाँ आए थे, तब से कोई बंटवारा नहीं हुआ। इस बीच कई मुसीबतें आई और गई पर परिवार साथ रहा। 1998 से 6 साल सूखा रहा, कर्ज लेना पड़ा जो बढ़ते-बढ़ते अब चार करोड़ रु. का हो गया है। हमने मिलकर रास्ता निकाल लिया है। हम 15 एकड़ जमीन बेचेंगे। यहाँ 20 से 25 लाख रुपए एकड़ जमीन है। खेती का काम देखने वाले देवेंद्र बताते हैं कि रोज 10 से ज्यादा खेतों पर 50 मजदूर काम करते हैं। छोटे-मोटे खर्च का पता ही नहीं चलता लेकिन बड़े खर्च खूब होते हैं। हर साल परिवार में दो-तीन शादियां होती है। एक शादी पर औसतन ₹10 लाख खर्च होते हैं। पढ़ाई पर भी खूब खर्च होता है।

परिवार में एक अपवाद को छोड़कर कोई सदस्य 75-80 साल से कम नहीं जिया।

परिवार की बहू अकम्मा गर्व से कहती हैं कि हमारे परिवार में कभी कोई मौत 80 साल से कम उम्र में नहीं हुई। हर साल मुंबई, बेंगलुरु, हुबली से 15 से 20 विद्यार्थी परिवार पर रिसर्च करने आते हैं। निर्देशक केतन मेहता इस परिवार के ऊपर फिल्म बना चुके हैं।

गोल्डन रूल एक साथ रहने की प्रेरणा देते हैं :-

खाना एक ही चूल्हे पर बनेगा – बढ़ती जरूरत की वजह से परिवार के 6 घर हैं। पूरे घर का खाना 1975 में बने सबसे पुराने घर की रसोई में ही बनता है।

सबकी जिम्मेदारी जवाबदेही तय है – 30 बच्चों की पढ़ाई मंजूनाथ देखते हैं, जो 20 किलोमीटर दूर रहते हैं। रसोई 75 साल की कस्तूरी संभालती हैं। बहुएं-बेटियां मदद करती हैं। देवेंद्र कृषि-मशीनों का काम देखते हैं। महिला मजदूरों को पद्प्पा और पुरुष मजदूरों को धर्मेंद्र देखते हैं।

सब साथ बैठ शिकवे दूर करते हैं – शिकायतें परिवार साथ बैठकर निपटाता है। अंतिम फैसला 90 साल के ईश्वरप्पा का होता है। इनकी बात कोई नहीं काटता।

सादगी बचपन से सिखाई जाती है – परिवार की सबसे बड़ी खूबी सादगी है। बचपन से ही बच्चों को सिखाया जाता है कि कम संसाधन में भी दिया जा सकता है और हर मुसीबत का हल खोजा जाता है।

दशहरे पर पूरा परिवार जुता है – नौकरियों की वजह से बाहर रह रहे परिवार के अन्य 70 सदस्य दशहरे पर गाँव जरूर आते हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि बाहर रह रहा हो कोई सदस्य गमी में आ नहीं पाया हो।

बच्चे टीवी और मोबाइल से दूर – पूरे परिवार में सिर्फ दो टीवी हैं। बच्चों को कभी टीवी की जरूरत महसूस नहीं होती। मोबाइल और टीवी से बच्चों को दूर भी रखा जाता है।

सोर्स- दैनिक भास्कर

- Advertisement -