संघर्षों से लबालब परिस्थितियों से गुजरते हुये सफलता का स्वाद चखने वाले एक युवा की बहुत ही प्रेरित करने वाली कहानी को “कोसी की आस” टीम आज अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 15वीं कड़ी में आपके सामने प्रस्तुत करने का फैसला किया है।
“कोसी की आस” टीम आज जो कहानी आपको बताने जा रही है, वो एक जज़्बे की कहानी है, एक जुनून और एक सही मार्गदर्शन को बयां करता है। साथ ही बताता है कि “वक्त कभी भी किसी का जागीर नहीं हो सकता” और “जैसे ही आपने वक्त को पहचानना शुरू करेंगे, वक़्त आपका हो जाएगा या फिर यूँ कहें कि वक़्त आपको पहचानने लगेगा”। इस संबंध में एक बहुचर्चित कहावत भी है कि “जब जागो, तभी सबेरा”।
आज के इस कहानी के जो मुख्य हीरो हैं उनके और उनके परिवार के विपरीत हालात से लड़ते हुये आगे बढ़ने की ललक और ख़ासकर ऐसे शख़्स जो जानकारी या सलाह के आभाव में पहले अपने पथ से विमुख होता है और उससे भी बदत्तर परिस्थितियों में काम करने के बाद जैसे ही एक उचित सलाह मिलती है और माता-पिता के आशीर्वाद और सहयोग से एक नई शुरुआत कर बेहतर कल के प्रयास में जुट जाता है। इस बातचीत का अंश न सिर्फ मुश्किल और लगातार विपरीत परिस्थितियों से परेशान होकर भी सफलता की चाह रखने वाले छात्र के लिए बल्कि मुश्किल और लगातार विपरीत परिस्थितियों से परेशान होकर प्रयास छोड़ देने वाले छात्रों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, “कोसी की आस” टीम इस सच्ची कहानी के माध्यम से अपने सभी पाठकों से एक बार फिर से प्रयास जारी करने का आग्रह करती है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पंक्ति उधार लेकर प्रस्तुत करता हूँ:-
“जिस मिट्टी ने लहू पिया
वह फूल खिलायेगी ही
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा,
और अधिक ले जाँच,
देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गए क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है”।
आज हम जिनकी कहानी आप सबके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह हैं अदम्य परिश्रमी और आशावादी सोच से परिपूर्ण मिश्रपुर (कुमैठा) भागलपुर के श्री अश्वनी कुमार झा और श्रीमती सीमा झा के छोटे पुत्र श्री गौरव कुमार झा उर्फ गुलशन।
- व्यक्तिगत परिचय
नाम :- श्री गौरव कुमार झा उर्फ गुलशन
पिता&माता का नाम:- श्री अश्वनी कुमार झा & श्रीमती सीमा झा।
शिक्षा:- 10वीं :- हाई स्कूल कुमैठा भागलपुर,2002 (द्वितीय श्रेणी)।
12वीं :- मुरारका कॉलेज सुल्तानगंज भागलपुर, 2004 (द्वितीय श्रेणी)।
स्नातक :- तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर (प्रथम श्रेणी)।
- 2. ग्राम :- मिश्रपुर (कुमैठा) भागलपुर।
3 जिला :- भागलपुर।
- पूर्व में चयन :-
(i) क्लर्क, सिविल कोर्ट, बिहार।
(ii) अवर श्रेणी लिपिक (SSC), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय नई दिल्ली।
(iii) मल्टी टास्किंग स्टाफ (SSC), पोरबंदर, गुजरात।
(iv) कमर्शियल अप्रेंटिस, रेलवे, मुंबई।
(v) सहकारिता प्रसार पदाधिकारी (BSSC) बिहार।
(vi) लेखापाल (SSC), रायपुर।
- वर्तमान पद :- सहायक लेखा अधिकारी (AAO) (भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग)।
- अभिरुचि:- कुछ-न-कुछ नया सीखते रहने का प्रयास करना।
- किस शिक्षण संस्थान से आपने तैयारी की:- यूँ तो मैंने किसी शिक्षण संस्थान से तैयारी नहीं की बल्कि मैंने मेरे सीनियर्स को फॉलो किया। उनसे मुझे प्रतियोगी परीक्षा की बारीकी सीखने को मिला। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के दौरान जहाँ भी मुझे परेशानियां होती, मैं उन भैया लोगों के पास जाता और तब तक उनके पीछे पड़ा रहता जबतक कि उन समस्याओं का हल न निकल जाय।
- आपको इसकी तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिला:- अपनी बातचीत के अनोखे अंदाज से लोगों को हँसाने वाले “श्री गौरब” ने मुस्कुराते हुये कहा कि यह थोड़ा रोचक है, जब मैं दसवीं-बारहवीं में था, तो गाँव में अक्सर सुनने को मिलता था कि “आराधना या तपस्या से भगवान मिल सकता है किन्तु सरकारी नौकरी नहीं” उनसब की बातें मेरे दिमाग में बैठ गया कि सरकारी नौकरी तो होगा नहीं इसलिए यहाँ (घर) से 10वीं, 12वीं और स्नातक कर घर में बैठने से क्या फायदा? मैं बारहवीं करने के बाद गाँव के ही एक चाचा जी के मदद से (मेडचल) हैदराबाद चला गया। वर्ष 2005 की घटना है, उन्होंने मुझे बैटरी बनने वाली एक फैक्ट्री में काम पर लगा दिया, मुझे वहाँ नई बनने वाली बैटरी में एसिड की मात्रा देखने का काम मिला था और जिसमें एसिड की मात्रा कम होता उसमें सही मात्रा में एसिड डालना था, इस काम के दौरान अक्सर एसिड कपड़े पर कहीं-न-कहीं गिर जाता और कपड़े में जगह-जगह छिद्र हो जाता था। मैं घबरा गया था और मुझे उस उम्र में यह काम अच्छा नहीं लग रहा था।
मैंने कुछ दिन काम करने के बाद अपने एक चचेरे बड़े भाई की मदद से दिल्ली चला गया, वहाँ उन्होंने मुझे एक ट्रांसपोर्टिंग कंपनी “ओम लॉजिस्टिक”, ओखला, नई दिल्ली मैं 2500 रुपए महीने की ही नौकरी पर लगवा दिया। वहाँ मेरा काम ट्रक से आए गुड्स को उतरवाना और उस पर मार्किंग करना लेकिन इसे दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य काम का कोई समय नहीं था रात-दिन कभी भी ट्रक आता और मुझे ये काम करना होता चाहे वह रात के 1बजे हों या कोई भी वक़्त। मैं यहाँ भी फिट नहीं बैठ पा रहा था और मेरा मन विचलित हो रहा था।
उसी कंपनी में मैंने देखा कि जो कंप्यूटर पर बैठकर के काम कर रहे हैं उनको मेरे वनिस्पत पैसा भी ज्यादा मिल रहा है और उनका काम भी मुझे आसान लगा, लेकिन मुझे कंप्यूटर का ज्ञान बिल्कुल नहीं था। मैंने दिमाग शांत करके सोचा कि आगे सारी जिंदगी पड़ी है, इसलिए मैंने वापस गाँव आने का फैसला किया और अपने आप में तय किया कि अब कुछ-न-कुछ सीखने (अंदर कुछ स्किल डेवेलप करने) के बाद ही काम के बारे में सोचेंगे। मैं अपने मौसा जी के यहाँ भागलपुर चला गया और वहीं कंप्यूटर सीखने के लिए एक संस्थान में नामांकन करा लिया। वहीं कुछ सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे कुछ छात्रों से बातचीत हुई। सरकारी नौकरी के प्रति गाँव-समाज की धारणा से मैं पहले से ही अवगत था लिहाज़ा उन भैया लोगों की बातों को गौर से सुनने लगा। मैंने जब उनमें से एक भैया से पूछा सरकारी नौकरी के लिए क्या करना होता है? तो उन्होंने मुझे सामान्य ज्ञान के लिए “लुसेंट पब्लिकेशन” और गणित के लिए “आर एस अग्रवाल” का किताब दिखाया और बताया कि इस दोनों किताब को अच्छे से पढ़ लेने के बाद इतना तय है कि आपका चयन रेलवे के चतुर्थवर्गीय श्रेणी में अवश्य हो जाएगा। मुझे यह कार्य एसिड भरने और मर्किंग करने से बहुत आसान लगा और सरकारी नौकरी का अलग सम्मान। बस यहीं से मेरे सपनों को पंख लगाना शुरू हो गया। एक महत्वपूर्ण बात जो मैंने सीखा कि आपका परिवेश, वातावरण और संसर्ग आपको क्या-से-क्या बना देगा, इसकी परिकल्पना कोई नहीं कर सकता।
श्री गौरब और सफलता के लिए प्रयासरत सभी युवाओं के लिए एक पंक्ति उधार लेकर सोंपता हूँ कि
जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा,
जो चल रहा है, उसके पांव में छाला होगा।
बिना संघर्ष के, इंसान चमक नहीं सकता,
जो जलेगा, उसी दिए में तो उजाला होगा।।
- आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:- ईश्वर की असीम कृपा के साथ-साथ माता-पिता का आशीर्वाद, मेरी मौसेरी दीदी श्रीमती प्रेरणा भारती (वर्तमान में शिक्षिका) का समय-समय पर हौसला बढ़ाते रहना तथा मेरे बड़े भाई श्री ब्रजेश कुमार झा (वर्तमान में कटिहार में रेलवे में कमर्शियल सुपरवाइजर) का तो इतना बड़ा योगदान है कि लिखावट में शब्द कम पड़ जाएंगे, भैया की वजह से मैं एकाग्र होकर अपना पूरा समय अपने पढ़ाई में लगा पाया क्योंकि जो भी घर का काम होता, भैया ही कर दिया करते थे।
- वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे:- सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत युवाओं से कहूँगा कि प्रतियोगी परीक्षा के साथ-साथ आपके धैर्य की भी परीक्षा होती रहती है। यह दोनों परीक्षाएं आपस में साथ-साथ चलती रहती हैं, इसलिए अपना धैर्य बनाए रखें। एक और महत्वपूर्ण बात जो मैंने महसूस किया वो बताना चाहूँगा कि हरेक परीक्षा “चाहे वह किसी समूह के द्वारा आयोजित क्वीज या नौकरी के लिए परीक्षा हो” के बाद अपनी कमियों को ढूंढिए और उसमें अच्छा करने का प्रयास करिए। और यदि आपने इस प्रक्रिया को अपनाए रखा तो कुछ समय बाद आपकी त्रुटियां बहुत ही कम दिखाई देगी।
- अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं:- कठिनाइयां तो बहुत थी जैसा कि मैंने पहले भी बताया है। और मुझे लगता है कि कठिनाई होनी भी चाहिए क्योंकि “दर्द न हो तो लोग दवा क्यों लेंगे” यही कठिनाई आपके अंदर के जुनून का पैमाना है। आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे कि मैं कोई उच्च स्तर की पढ़ाई कर पाता। वर्ष 2009, की पिताजी वापी, गुजरात में एक शीशे की फैक्ट्री में ₹5000/- मासिक पर नौकरी करते थे, आप सोच सकते हैं कि उसमें परिवार चलाने से लेकर दो भाइयों को पढ़ाना कितना मुश्किल रहा होगा, घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए माँ ने भी वापी, गुजरात में ही एक प्राइवेट कंपनी जहाँ महिलाओं के द्वारा प्लास्टिक डब्बे बनाने की फिनिशिंग की जाती थी, में महज़ ₹3000/- मासिक पर नौकरी करने का फैसला किया। उनको रोजाना सौ डब्बों की फिनिशिंग करना होता था। बोलते-बोलते श्री गौरब भावुक हो थोड़े देर के लिए शांत हो जाते हैं और फिर बताते हैं कि एक बार SSC के MTS पद के लिए मैंने परीक्षा केंद्र सूरत दिया था ताकि मैं वहाँ जाकर मम्मी-पापा से भी मिल सकूँ क्योंकि वे लोग साल-साल भर पर ही घर आते थे। मैं परीक्षा के तुरत बाद सूरत से 93 किलोमीटर दूर वापी चल दिया। मैं बहुत खुश था कि काफी समय बाद पापा-मम्मी से मिलूँगा। मैं वहाँ पहुँचा, सोमवार का दिन था, माँ छुट्टी लेकर घर पर थी तो मैंने पूछा आज तो छुट्टी ली होगी? कितनी छुट्टी मिलती है? उन्होंने बताया कि कोई छुट्टी बगैरह नहीं है ₹3000/- 30 दिन के मिलते हैं , ₹100 प्रतेक दिन के हिसाब तो आज जैसे मैं नहीं गई तो ₹100 मेरे कट जाएंगे, ये पूरी लाइन वो एक साँस में बोल गयी जैसे लगा कि वो इसे याद नही करना चाहती हो। पैसे का महत्व देखये मैं वहाँ 1-2 दिन रुकूँगा सोचकर गया था लेकिन माँ की बातें सुन मेरी हिम्मत नही हुई, यह पल कितना भावुक करने वाला और कष्टकारी रहा होगा आप बस कल्पना कर सकते हैं। आप एक माँ का अपने बच्चों के पढ़ाई जारी रहे के लिए जुनून को महसूस किया जा सकता है। मैंने पहले भी कहा है कि आवश्यकता नहीं होगी तो उसका हल भी नहीं ढूँढा जाएगा। मैं फिर कहूँगा कि “आपका जीवन जितना संघर्ष से भरा होगा, आपकी जीत भी उतनी ही शानदार होगी”। जीवन संघर्षमय हो तो दो ही बात हो सकती है या तो आप निखरेंगे या फिर बिखरेंगे, और आपने अपना धैर्य बनाए रखा तो आप बेशक निखरेंगे।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक पंक्ति साझा करना चाहूँगा-
“लोहे के पेड़ हरे होंगे तू गान प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी जरूर आंसू के आंसू के कल बरसाता चल….”
(यह “श्री गौरव कुमार झा उर्फ गुलशन” से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)
“कोसी की आस” टीम परिवार की ओर से “श्री गौरव कुमार झा उर्फ गुलशन” के उस मुश्किल परिस्थितियों से निकल अकल्पनीय सफलता के लिए अनंतिम शुभकामनायें।
निवेदन- अगर यह सच्ची और प्रेरक कहानी पसंद आई हो तो लाइक/कमेंट/शेयर करें। यदि आपके आस-पास भी इस तरह की कहानी है तो हमें Email या Message करें, हमारी टीम जल्द आपसे संपर्क करेगी। साथ ही फ़ेसबूक पर कोसी की आस का पेज https://www.facebook.com/koshikiawajj/ लाइक करना न भूलें, हमारा प्रयास हमेशा की तरह आप तक बेहतरीन लेख और सच्ची कहानियाँ प्रस्तुत करने का है और रहेगा।
टीम- “कोसी की आस” ..©