“अपने पहले ही प्रयास में BPSC में 11वें रैंक के साथ सफल एक इंजीनियर की कहानी”

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“धूल धुल गई जब, सच के आइने से,

मेरी कोशिशों का असर, रंग दिखाता रहा।

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टूट रहा था वो पत्थर, भी धीरे-धीरे,

साध निशाना मैं वार, हर बार बरसाता रहा।”

 

आज “कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला के 5वीं कड़ी में “अपने पहले ही प्रयास में BPSC में सफल एक ऐसे इंजीनियर की कहानी” बताने जा रही है जो आज इंजीनियर नहीं बल्कि एक प्रशासक की भूमिका में हैं। यह बातचीत उन सभी छात्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो गाहे-बगाहे 12 वीं और स्नातक में विषय के चयन के मामले में अपने परिवार को कोसते हैं और ख़ुद के ही जज़्बे को कमजोर करते हैं। आम तौर पर हमलोगों के समाज में देखा गया है कि “हर बेटे के जन्म पर हमारी हसरत उन्हें इंजीनियर और हर बेटी के जन्म के साथ ही उन्हें डॉक्टर” के रूप में देखने की होती है। हमलोगों के समाज में आज भी शिक्षा के लिए विषय के चयन में “विज्ञान विषय” को प्रथम वरीयता, “कला” को द्वितीय और “वाणिज्य” को तृतीय वरीयता दिया जाता है। “कोसी की आस” टीम अपने सभी पाठक वर्ग से यही कहना चाहती है कि हमारे “पापा-मम्मी” हमलोगों के भलाई के लिए उसवक्त जो उनको सबसे बेहतर लगता है वैसा सलाह देते हैं किन्तु यदि आपको लगता है कि किसी ख़ास क्षेत्र में आप ज्यादा अच्छा कर सकते हैं,तो बेशक आप अपने परिवार को कोसने के बजाय, जुनून के साथ अपने लक्ष्य को पाने की जिद में जुड़ जाइए। “कोसी की आस” टीम जिनके बारे में बात करने जा रही है वो हैं दयालपाली, थाना-खजौली, मधुबनी, बिहार के बहुमुखी प्रतिभा के धनी बिहार सरकार के कर्मचारी श्री विनय कुमार सिंह और श्रीमती रंजना सिंह के महज़ 27 वर्षीय सुपुत्र श्री सौरभ कुमार।

 

व्यक्तिगत परिचय

नाम:- सौरभ कुमार

पिता/ माता का नाम:- श्री विनय कुमार सिंह और श्रीमती रंजना सिंह

ग्राम – दयालपाली, थाना-खजौली, मधुबनी, बिहार।

 

शिक्षा:-             10वीं-  ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल दरभंगा 2006,

12वीं-  वुडवाइन मॉडर्न स्कूल दरभंगा 2008,

स्नातक- NIT पटना इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन 2009-13

 

  1. पूर्व में चयन:-– सहायक योजना पदाधिकारी, बिहार सरकार योजना एवं विकास विभाग (रैंक-226, BPSC 56-59 बैच)
  2. वर्तमानचयन:-  वरीय उप-समाहर्ता, बिहार प्रशासनिक सेवा (रैंक-11, BPSC 60-62 बैच)

 

  1. अभिरुचि:- विकास के मुद्दों पर लिखना, डॉक्यूमेंट्री देखना, कॉइन संग्रह करना।
  2. किस शिक्षण संस्थान से आपने तैयारी की:-सिर्फ वैकल्पिक विषय भूगोल के लिए “वाजी राम और रवि” और माजिद हुसैन का “जियोग्राफी टेस्ट”।
  3. आपको इसकी तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिला:-अपने शिक्षक और परिवार के सदस्यों से।
  4. आप इस सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं:-पापा-मम्मी का आशीर्वाद और भगवान की असीम अनुकंपा को।
  5. वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे:-अपने शिक्षण में नियमितता (Consistency) बनाए रखें, समाज के विकास के बारे में सोचें और समाज के विकास में अपने किरदार (role) को तलाशें। सकारात्मक सोच के साथ अपने आप पर विश्वास रखें और पूर्व में की गई गलतियों से सीख, सुधार करते रहें।
  6. अपनी सफलता की राह में आनेवाली कठिनाई के बारे में बताएं:-जब श्री सौरभ से यह सवाल किया गया एक लम्बी सांस लेने के बाद बताते हैं कि शिक्षण के दौरान एक पंक्ति जो सबसे ज्यादा प्रभावित और प्रेरित किया वो बताना चाहूँगा कि

“उद्योगे नास्ति दारिद्रयं,

जपतो नास्ति पातकम्।

मौने च कलहो नास्ति,

नास्ति जागरिते भयम्॥”

 

अर्थात “पुरूषार्थी के पास दरिद्रता नहीं भटकती, जप करनेवाले के पास पाप नहीं रहता, मौन रहने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और जागने वाले को भय नहीं होता।”

मैं बिहार सरकार के एक सामान्य कर्मचारी का बेटा था,प्रारंभिक शिक्षा “ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल, दरभंगा” से हुई,बचपन से ही मैं पढ़ाई में मम्मी-पापा के समुचित प्रयास की वजह से अच्छा था, 10वीं की परीक्षा मैंने 88% अंक के साथ उत्तीर्ण की और 12वीं में मेरा नामांकन “वुडवाइन मॉडर्न स्कूल, दरभंगा” में करवाया गया, 12वीं मैंने 78% अंक के साथ उत्तीर्ण किया। मैं अपने घर वाले के इच्छा के आधार पर 12 वीं के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए प्रयासरत था और मुझे 2009 में “इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन” ब्रांच NIT पटना में मिला। मैंने सत्र 2009-2013 में अपना इंजीनियरिंग स्नातक पूरा किया।

मेरी रुचि बचपन से ही समाज के विकास के बारे में जानने की रहती थी, जिसके कारण जैसे-जैसे मैं बड़ा होते गया मेरी रुचि समाज और समाज के विकास को जानने की और प्रगाढ़ होती गई। साथ ही मैं “समाज के विकास में” में अपने किरदार को तलाशते रहता।  इंजीनियरिंग स्नातक पूरा करने के उपरांत जो भी इंजीनियरिंग सेक्टर में नौकरी की संभावना थी, उसमें मैं अपने आपको फिट नहीं पा रहा था। आख़िरकार मैंने सिविल सेवा के परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया, इस फैसले में परिवार का अमूल्य साथ मिला। यह फैसला इतना भी आसान नहीं था किन्तु “ख़ुद में भरोसा था और समाज के विकास में सीधे तौर से भागीदार बनने की जिद” जिसने काफी हिम्मत दिया।

“चट्टान सी खड़ी रही मुसीबतें,

मैं सागर की लहरें बन टकराता रहा।

कठोर छाती ढकेल देती वापस मुझे,

बटोर हिम्मत मैं बार-बार वापिस आता रहा।”

 

मैंने वैकल्पिक विषय के रूप में “भूगोल” को चुना और सिर्फ वैकल्पिक विषय के लिए “वाजी राम और रवि” और माजिद हुसैन का “जियोग्राफी टेस्ट” का सहयोग लिया बाँकी स्व-अध्ययन और माता-पिता के आशीर्वाद का परिणाम है। जनवरी 2014 में मैंने लोक सेवा आयोग के लिया पढ़ना प्रारंभ किया और अगस्त 2018 में मुझे अपने पहले ही प्रयास (BPSC 56-59 बैच) में 226 रैंक के साथ “सहायक योजना पदाधिकारी, बिहार सरकार योजना एवं विकास विभाग” पद के लिए सफलता मिली। ये लगभग 4 वर्ष मेरे जीवन का सबसे मुश्किल वक्त था, प्रत्येक दिन कभी-न-कभी मन में नकारात्मक ख़याल आता लेकिन वो कहते हैं न कि “अगर कुछ कर गुजरने की जिद हो, तो………….”

 

पहले ही प्रयास में मिले परिणाम ने मेरे आत्मविश्वास को काफी बढ़ाया और मैं फिर से…….

“बिखर रहा था वो इस चोट से ज़र्रा-ज़र्रा,

देख साहिल मैं उस पार रास्ता बनाता रहा।

कट गया पत्थर मेरी रुकावटों का,

धुन उमंग के गीतों की मैं गाता रहा।

चट्टान सी खड़ी रही मुसीबतें

मैं सागर की लहरें बन टकराता रहा।”

इन पंक्ति को सूत्र वाक्य बना अगले प्रयास में लग गया और परिणाम (रैंक-11, BPSC 60-62 बैच वरीय उप समाहर्ता, बिहार प्रशासनिक सेवा) आपके सामने है।

 

(यह श्री सौरभ कुमार से “कोसी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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