“कोशी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी श्रृंखला की 43वीं कड़ी में आपलोगों के लिए एक ऐसी सच्ची और प्रेरक कहानी ढूँढ कर लाई है, जिसे पढ़कर आप एक बार जरूर सोचने को मजबूर होंगे कि आख़िर उन मासूम की गलती क्या थी? आख़िर किन वजहों से उनकी मासूमियत छीन ली गई? क्या वे महज़ मासूमियत तक के हकदार नहीं थे? इसे पढ़ने के बाद एक बार जरूर सोचिएगा और उसके बाद एक बार फिर से अपने आसपास के उन मासूमों को निहारियेगा और इस तथाकथित आधुनिक दुनियाँ (जहाँ कोई महज़ 200रू दिहाड़ी पाकर भी अपने परिवार के साथ खुश है तो कोई दिन में 50000रू पाकर भी चिंतित) में फिर अपने आप से सवाल करिएगा कि क्या हम तिनका भर उन मासूमों के खुशी में काम आ सकते हैं?
उन्हीं उदास, बेखबर मासूमों के चेहरे पर खुशी और उसके भीतर छुपी असीम क्षमताओं की कुसुम को पुष्प का स्वरूप देने के प्रयास में लगे समाजसेवी शैक्षणिक संस्था “शिक्षा तरु” के संस्थापक सदस्यों में से एक कुमार रौनक संस्था के प्रतिनिधि के तौर पर हमारे आज़ के मेहमान हैं। बेहद सौम्य स्वभाव और प्रगतिशील सोच वाले कुमार रौनक वर्तमान में भारत सरकार के अधिकारी के तौर पर कार्यरत हैं। उनसे जब इस कार्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बचपन में मैंने जो कमियाँ देखी थी, मुझे लगता था कि मेरा परिवार ही बेबस है लेकिन जब इन मासूम को देखता हूँ तो कुछ समझ में नहीं आता…..
“इन्हें,
इनके हिस्से की खुशी देकर,
नहीं कोई एहसान कर रहे,
हम तो सिर्फ़,
इंसानियत के फ़र्ज़ का,
सम्मान कर रहे।
इनकी कमनसीबी,
इनकी बदनसीबी न बन जाये,
ये जिम्मेदारी हमारी है,
हमारी संवेदनाओं में,
इनकी भी थोड़ी,
हिस्सेदारी है।
“शिक्षा तरु” का प्रयास है,
कि इन्हें,
सुखद यादों का बचपन मिले,
अच्छी शिक्षा मिले,
अच्छा समाज मिले,
और
चतुर्दिक विकास का जीवन मिले।”
अगर सच में कहा जाय तो उपर्युक्त खुद की रचित पंक्तियों के माध्यम से कुमार रौनक ने सारी बाते कह दीं हैं। तो आइये जानते हैं गरीब और असहाय बच्चों की शिक्षा को समर्पित समाजसेवी संस्था “शिक्षा तरु” की कहानी उनके संस्थापक सदस्य कुमार रौनक की जुबानी-
सदियों से भारत की भूमि सहृदय और नेक विचारों वाले व्यक्तियों से परिपूर्ण रही है। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने भी लोक कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से हमेशा गरीबों और मजबूरों के उत्थान के लिए काम किया है। साथ-ही-साथ कई समाजसेवी संस्थाओं के द्वारा निःस्वार्थ भाव से सामाजिक उत्थान के कार्य किये जा रहे हैं।
गरीब और असहाय बच्चों की शिक्षा के साथ चदुर्दिक विकास को समर्पित समाजसेवी संस्था “शिक्षा तरु” की स्थापना बिहार के पटना और सुपौल के कुछ समाजसेवी युवाओं के द्वारा की गई। धीरे-धीरे इस संस्था से कई और समाजसेवी जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। यूँ तो “शिक्षा तरु” बीते कुछ वर्षों से कार्य कर रही थी लेकिन दिनांक 27 मई 2019 को बिहार सरकार के रजिस्टार के यहाँ निबंधन (निबंधन संख्या: S000005/2019-20) उपरांत औपचारिक रूप से इसे सम्पूर्ण भारत में कार्य करने की अधिकारिता मिल गई।
“शिक्षा तरु” का मुख्यालय डाक्टर्स कॉलोनी, छोटी पहाड़ी, अगमकुआं, पटना में है। संस्था का संचालन 13 सदस्यीय कार्यकरिणी समिति के द्वारा किया जाता है, जिनके सदस्यों में शिक्षा और समाजसेवा जैसे क्षेत्रों के अनुभवी लोग भी शामिल हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अनुभवी शिक्षिका कुमारी रेणुका संस्था की अध्यक्षा है और शिक्षिका कुमारी शिल्पी संस्था की सचिव है। संस्था के उपाध्यक्ष का भार सुपौल शहर के समाजसेवी निरंजन कुमार और कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी समाजसेवी राजीव अग्रवाल के मजबूत कंधों पर है। संस्था से करीब 60 स्वैच्छिक सदस्य जुड़ें हुए हैं, जिसमें भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारीगण, बैंक के कई अधिकारी, कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आदि शामिल है। ये स्वैच्छिक सदस्य नियमित रूप से संस्था में सहयोग राशि प्रदान करते हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई नियमित और निर्बाध चलती रहती है। साथ-ही-साथ कई सहृदय दानकर्ताओं द्वारा समय-समय पर संस्था को मदद मिलती रहती है।
“शिक्षा तरु” के तीन महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं जिनके संरक्षण और अनुभव के साथ हम कदम-दर-कदम बढ़ते जा रहे है-
हमारे पहले संरक्षक हैं बिहार के ख्यातिप्राप्त समाजसेवी आदरणीय फुलेन्द्र चौधरी जी, जिन्होंने मूक बधिर बच्चियों के जीवन में रौशनी लाने का कार्य किया है। मुंगेर स्थित “बाबा बैद्यनाथ मूक बधिर बालिका आवासीय विद्यालय“ में पिछले 28 वर्षों से उनके द्वारा इन विशेष बच्चिओं की जिन्दगी में रौनक लाने का काम निःस्वार्थ और निःशुल्क कर रहे है। उनके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा “राजीव गाँधी मानव सेवा सम्मान –2009″ से नवाज़ा जा चुका है।
हमारे दूसरे संरक्षक हैं बिहार प्रशासनिक सेवा के तेज तर्रार और जिम्मेदार अधिकारी, लखीसराय के उपसमाहर्ता आदरणीय मुरली प्रसाद सिंह। श्री सिंह प्रारंभ में एक शिक्षक थे। उन दिनों कई जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा प्रदान किया करते थे और उनके कई छात्र भारत सरकार और बिहार सरकार के उच्च पदों पर पदस्थ हैं।
हमारी तीसरी संरक्षिका हैं आदरणीया संगीता अग्रवाल। मुजफ्फरपुर की सुश्री अग्रवाल जन्म से ही दृष्टिहीन हैं, लेकिन अपने अन्दर की आत्मशक्ति से उन्होंने रौशनी से एक अलग ही दुनिया का निर्माण किया है। मुजफ्फरपुर में उनके द्वारा संचालित स्कूल “शुभम दिव्यांग विकास संस्थान“ में पढ़कर सैकड़ों मुक-बधिर और दृष्टिहीन लड़के-लड़कियां अपनी ज़िन्दगी को सार्थक कर रहे हैं। सुश्री अग्रवाल भारत की पहली दृष्टिहीन महिला हैं, जिन्होंने संस्कृत भाषा से एम्.फिल किया और एल.एस. कॉलेज, मुजफ्फरपुर में सहायक प्रोफेसर हैं। इन्हें महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
वर्तमान में संस्था के द्वारा 25 बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठाया जा रहा है। ये सभी बच्चें अपने शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। साथ ही मुजफ्फरपुर, बिहार में अवस्थित “शुभम दिव्यांग विकास संस्थान“ में “शिक्षा तरु” की तरफ से एक शिक्षिका की सेवा दी जा रही है। सुपौल शहर में 20 बच्चों के साथ आधारीय शिक्षा को लेकर एक आधार स्कूल चलाया जा रहा है। संस्था के द्वारा पटना में माता शीतला मंदिर, अगमकुआं के प्राँगण में मलिन बस्तियों के बच्चों की आधारीय शिक्षा के लिए शीघ्र ही एक आधार कक्षा की शुरुआत की जाने वाली है। एक और पंक्तियों के माध्यम से “शिक्षा तरु” के उदेश्य को कुमार रौनक ने बयां किया….
शिक्षा ही जीवन है, ये अलख हमें जगाना है,
शिक्षा तरु की छाँव को, गाँव-गाँव फैलाना है।
कर्मवीरों और दानवीरों से, ये दुनिया भरी पड़ी है,
सिर्फ हमें अपनी सच्चाई का एहसास दिलाना है।
जो मिले सहयोग तो, हँस के गले लगाना है,
और मिले इनकार तो, प्यार से ठुकराना है।
द्वार-द्वार, घर- घर, हमें अपना हाथ फैलाना है,
शिक्षा तरु की छाँव को, गाँव-गाँव फैलाना है।
उनकी जीवनदायी शिक्षा, है एकमात्र लक्ष्य हमारा,
हर कीमत पर हमें, अपने इस लक्ष्य को पाना है।
माना अँधेरा घना है, फिर भी दीप हमें जलाना है,
ज्ञान को जरिया बना कर, उनका जीवन हर्षाना है।
न रुकना है, न थकना है, बस आगे बढ़ते जाना है,
शिक्षा तरु की छाँव को, गाँव-गाँव पहुंचाना है।
शिक्षा क्षेत्र में सेवा देने के अतिरिक्त सामाजिक सरोकार से जुड़ें अन्य क्षेत्रों में भी हमारे समाजसेवी सदस्यगण अपनी सेवा देते रहें हैं। संस्था ने मुजफ्फरपुर शहर में इंसेफेलाइटिस से प्रभावित क्षेत्रों में, बाढ़ से घिरे लोगों के बीच, कोरोना महामारी से बचाव के जागरूकता कार्यक्रमों में अपनी सेवा प्रदान की है।
भारत के प्रसिद्ध शिक्षाविद और गणितज्ञ आनंद कुमार ने “शिक्षा तरु” के कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार-2019 से संम्मानित केदार कानन कहते हैं कि “शिक्षा तरु” ने अत्यल्प समय में जो मुकाम हासिल किया है, वह इस तरह के कार्यों में लगी अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणादायी है। गंभीर और ईमानदार प्रयास, कार्य के प्रति अटूट निष्ठा, लक्ष्य के प्रति समर्पण इस संस्था का मूलाधार रहा है। विश्वास के साथ उन्होंने संस्था को उज्ज्वल भविष्य की शुभकमनाएं भी दिया। साथ ही कोशी क्षेत्र में समाजसेवा का सर्वोच्च मुकाम बनाने वाली संस्था “रोटी बैंक” ने “शिक्षा तरु” के कार्यों को देखते हुए “मानव सेवा सम्मान-2019″ से सम्मानित किया है।