यूँ तो कोशी की धरती ने कई ऐसे सपूत दिए हैं जिन्होंने विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी हार न मानने की ज़िद को कमतर नहीं होने दिया है और अपने अदम्य आत्मविश्वास, अथक मेहनत और निरंतरता के फलस्वरूप सफलता की अनगिनत कहानियाँ लिखी है।
“वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या,
जब राह में बिखरे शूल न हो,
वो नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
जब धाराएँ प्रतिकूल न हो “
जी हाँ दोस्तों, “कोशी की आस” आज अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 45वीं कड़ी में आदरणीय जयशंकर प्रसाद की उपरोक्त पंक्तिओं के भावार्थ को साकार करने वाले सुपौल के ऐसे ही एक गुदड़ी के लाल की अतिप्रेरणात्मक कहानी को आप सबों के समक्ष प्रस्तुत रही है।
बेहद कम उम्र में माता-पिता का साया सर से हट जाने और आर्थिक तंगी से संघर्ष कर रहे एक ऐसे युवा से आज हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं जिसने निराशाओं के अंधेरों को चीरकर सफ़लता का अद्भुत अभिषेक किया है और अपने परिवार और समाज को अप्रतिम आंनद दिया है।
जी हाँ दोस्तों, हम बात कर रहे हैं सुपौल शहर के गुदड़ी बाजार के स्वर्गीय जयशंकर लाल दास के पौत्र और स्वर्गीय रविन्द्र लाल दास और स्वर्गीया लीला देवी के होनहार पुत्र अभिषेक आनंद की, जिन्होंने माता- पिता की अपूरणीय कमी और घोर आर्थिक तंगी के बीच बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग 2019 की प्रतिष्ठित परीक्षा उत्तीर्ण कर “सहायक अधीक्षक, जेल” (Assistant Superintendent of Jail) का सम्मानजनक पद हासिल कर गौरवशाली सफलता अर्जित की है। उनकी इस महत्वपूर्ण सफलता ने एक बार फिर से साबित कर दिखाया है कि
“तेरी मेहनत का नतीज़ा, जरूर निकलेगा,
इसी स्याह समंदर से नूर निकलेगा”
“कोशी की आस” से खास बातचीत के दौरान काफी भावुक होते हुए अभिषेक ने बताया कि बचपन में माता-पिता का साया उठ जाने से आस-पास के लोगों का दृष्टिकोण काफी नकारात्मक हो गया और मेरे परिवार को लोग हेय दृष्टि से देखने लगे। लेकिन वहीं कई ऐसे लोग मिलें जिन्होंने मुझे प्रेरित किया और मेरे जीवन को नई दिशा दी।
किस शिक्षण संस्थान से आपने प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की?
व्यायाम, खेलकूद और किताब पढ़ने में रूचि रखने वाले अभिषेक बताते हैं कि बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग के द्वारा ली गयी परीक्षा में PT से MAINS तक का सफर स्वाध्याय (self-study) पर ही आधारित रहा, मैंने अपनी पूरी तैयारी सुपौल में ही रहकर की। मैंने किसी भी शिक्षण संस्थान से पढ़ाई नहीं की।
आपको प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली?
निजी संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत श्री अभिषेक कहते हैं कि मेरे लिए प्रेरणा के श्रोत हमारे आस-पास के नकारात्मक लोग थे, जो बराबर हमें जताते रहते थे कि बिना माता-पिता के और घोर आर्थिक तंगी में कोई भी बच्चा कम्पटीशन नहीं निकाल सकता। उन खास लोगों के इस गहरे विश्वास को तोड़ना काफी ज़रूरी था। साथ ही सामाज में फैली पुलिस के प्रति लोगों की गलत धारणा को हटाने के उद्देश्य ने भी मुझे पुलिस विभाग में जाने को प्रेरित किया। आज अभिषेक की सफलता ने, न सिर्फ उन लोगों की नकारात्मकता को बदला बल्कि कई गरीब और संघर्षरत छात्र-छात्राओं के लिए “उम्मीद की एक किरण” भी जगायी है।
सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं?
विलियम्स हाई स्कूल सुपौल से 2009 में दसवीं और बी. एस. एस. कॉलेज सुपौल से क्रमशः 2011 में 12वीं और 2016 में स्नातक करने वाले अभिषेक कहते हैं कि मेरी सफलता का श्रेय सबसे पहले मेरे माता-पिता को जाता है जिनकी बदौलत मैं आज आप सब के बीच हूँ। पापा-मम्मी के गुजर जाने के बाद मेरे चाचा और बुआ ने मुझे आगे बढ़ने में काफी सहयोग किया। साथ ही इस सफलता का महत्वपूर्ण श्रेय मैं अपने दोस्तों को देना चाहता हूँ, जिन्होंने मुझपर हमेशा अपना भरोसा बरकरार रखा। सुपौल शहर के प्रतिष्ठित स्कूल R.S.M. Public School में शिक्षण के दौरान सभी सहकर्मियों ने अपना भरपूर सहयोग दिया और कभी भी मेरे उत्साह को कम नहीं होने दिया। यही मेरी सबसे बड़ी ताकत बनी जिसने मुझे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया और आज मेरा परिणाम आपके सामने है।
सफलता की राह में आनेवाली कठिनाइयों को किस तरह दूर किया?
बेहद कम उम्र में ही जब माता-पिता का साया सर से हट गया और एक बड़ी बहन की जिम्मेदारी कंधे पर आ गयी। ऐसे प्रतिकूल परिस्थति में प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाते हुए बहन की शादी की जिम्मेदारी पूरी की। परिवार के लोगों की अमूल्य मदद, विषम परिस्थितियों में दोस्तों और कुछ शुभचिंतकों ने आर्थिक और मानसिक सहारा देकर मेरे मनोबल को कभी टूटने नहीं दिया।
कई प्रतियोगिता परीक्षाओं में कुछ नंबर से अन्तिम चयन न होने की टीस को अभिषेक ने अपनी अथक मेहनत, अदम्य इक्षाशक्ति और सकारात्मक सोच से शानदार सफलता में बदल दिया। लगातार मेहनत के बाद अभिषेक को मिली इस स्वर्णिम सफलता ने सोहन लाल द्विवेदी की इन पंक्तिओं को चरितार्थ कर दिया है-
“असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”
अपनी चुनौतीपूर्ण कहानी को आगे बढ़ाते हुए अभिषेक कहते हैं कि RSM Public School, Supaul में शिक्षण का कार्य करते हुए तैयारी को जारी रखना कठिन था परन्तु किसी और विकल्प की अनुपस्थिति में मैं निरंतर प्रयासरत रहा और आत्मविश्वास बनाए रखते हुए स्कूल और ट्यूशन के बाद के बचे समय में तैयारी को जारी रखा।
वर्तमान में प्रयासरत युवाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
कोशी की आस टीम के उपरोक्त सवाल के जबाब में अभिषेक (एक लंबी सांस लेकर) कहते हैं कि बस इतना कहना चाहूंगा कि खुद पर भरोसा रखें, मुश्किलें आयेंगी पर उनसे विचलित होकर हार नहीं मानना है बल्कि उससे सीखकर खुद को सुधारने का प्रयास निरन्तर जारी रखना है। NCERT और बिहार बोर्ड की किताबों का गहन अध्ययन और प्रतियोगिता दर्पण का निरंतर अध्ययन से तैयारी में काफी सहयोग मिलेगा। अंततः बस यही कहूँगा कि सच्ची मेहनत और लगन का कोई विकल्प नहीं है और अपनी गलतियों को नियमित रूप से सुधारने की जरूरत है, क्योंकि आप अपनी गलती से ही सीखते हैं।
“कोसी की आस” परिवार की ओर से “अभिषेक आनंद” को उनके इस बेहतरीन सफलता के लिए अनंत शुभकामनायें, साथ ही परिवार उनके बेहतर और नित्य नए आयाम बनाने वाले भविष्य की कामना करता है।
साथ ही “कोसी की आस” परिवार तमाम छात्र-छात्राओं को सन्देश देना चाहता है कि आर्थिक तंगी और समाज के तानों को कभी भी अपनी सफलता के राह का रोड़ा नहीं समझे। सकारात्मक विचार वाले सफल लोगों से लगातार संपर्क में रह कर मार्गदर्शन लेते रहें और आपके आस पास कई ऐसे अच्छे लोग हमेशा मिलेंगे जो आपकी मदद करने को हमेशा तैयार हैं। बस विनम्रता से अपनी जीतने की ज़िद को लोगों से साझा करें। सहयोग, उम्मीद और सफलता तीनों आपके पास हैं, बस उसे सच्चे दिल से पुकारने की ज़रुरत है।
विशेष आभार- शिक्षा तरु
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टीम- “कोसी की आस” ..©