एक वक़्त महज़ 2रु के लिए सोचने वाले परिवार का बेटा बना IA&AD में राजपत्रित अधिकारी।

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“मुसीबतों से निखरती है, शख्सियत यारों,

जो चट्टानों से न उलझे, वो झरना किस काम का।”

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मोबाइल पर यूँ ही उँगलियाँ फेरते-फेरते पंक्ति पर नज़र चली गई, वाकई सिर्फ दो पंक्ति में बहुत ही बड़े परिदृश्य समाये हुये हैं। “कोशी की आस” टीम आज़ अपने प्रेरक कहानी शृंखला की साप्ताहिक और 40वीं कड़ी में 24 वर्षीय ऐसे ही एक युवा की कहानी बताने जा रही है, जिनके अब तक के जीवनवृत को देखें तो उपर्युक्त पंक्तियाँ सच में चरितार्थ होती नज़र आ रही है। तो आइये मिलते हैं ऊंटा मदारपुर, जहानाबाद, बिहार के श्री विनय प्रसाद यादव और श्रीमती ममता देवी के कर्तव्यनिष्ट, प्रतिभावान और ऊर्जावान पुत्र श्री गजेन्द्र कुमार से और जानते हैं, उनकी अब तक की सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी।

कहते हैं न कि अगर ईश्वर की कृपा हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार में जन्म लेने वाले श्री गजेन्द्र बताते हैं कि सच कहें तो बचपन से ही परेशानी लगी रही, परिवार में हम तीन भाई और एक बहन है। जन्म दो कमरे के मिट्टी के बहुत पुराने घर में हुआ, जिसमें आए दिन सांप-कीड़ा निकला करता था। सांप से दो बार तो वेलोग बाल-बाल बचे थे। जन्म होने के काफी महीने बाद तक मैं बहुत मोटा हुआ करता था, शुरुआती 1 साल के बाद भी मैं चल नहीं पाया, तो मम्मी-पापा जिला मुख्यालय में एक डॉक्टर के पास मुझे ले गये। डॉक्टर ने कहा कि इस बच्चे के शरीर में हड्डी नहीं है और जीवन भर बैठा रहेगा। पापा आर्थिक रूप से इलाज करने में सक्षम नहीं थे, इसलिए आगे किसी डॉक्टर के पास नहीं ले जा सके। अगर आर्थिक पहलुओं को छोड़ दिया जाय तो अपने स्तर से माँ का प्यार और मुझे स्वस्थ रखने के उनके समर्पण में कोई कमी नहीं थी। मैं चुप-चाप बैठा रहता था, इसलिए माँ मुझे भोला बोलने लगी। डॉक्टर का कहना महज वहम साबित हुआ। 2 साल के बाद में थोड़ा दुबला हुआ और गुडकना शुरू कर दिया और उसके कुछ दिनों बाद मैं चलने भी लगा।

भाइयों के साथ सफ़ेद शर्ट में

क्रिकेट खेलने और देखने में रुचि रखने वाले श्री गजेन्द्र आगे बताते हैं कि आर्थिक कारणों की वजह से मुहल्ले के ही एक छोटे से घर में मामा द्वारा संचालित विद्यालय से हम सभी भाई-बहनों की प्राथमिक शिक्षा हुई। बातचीत के दौरान “कोशी की आस” टीम के सदस्य ने जब उनसे उनके बचपन के मुश्किल दिनों के बारे में पूछा तो सवाल सुनते हुये भावुक गजेन्द्र एक लंबी सांस लेते हैं और अपने इमोशन पर काबू करते हुये बोलते हैं कि कहाँ से शुरू करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा, परेशानियों के बारे में मैं जितना बताऊं उतना कम है। एक ऐसा किसान जिसकी अपनी जमीन थी ही नहीं, बटाई की जमीन पर खेती करता था और बाकी के दिनों में ट्रैक्टर से बालू लोड किया करता था, एक बार बालू लोड करने के लिए उनको ₹13 मिलता था और कुल मिलाकर के दिन भर में उनका मेहनताना करीब ₹50 के आसपास रहता था और सच बताऊँ तो उसी से नौ सदस्यीय परिवार का गुजारा होता था। मैं पढ़ने में ठीक था और क्लास में हमेशा पहले स्थान पर आया करता था। कभी-कभी किसी विषय की घंटी खाली रहती थी, क्लास में वह खुद अपने सहपाठियों को पढ़ाते थे। लेकिन घर के हालात कभी-कभी ऐसे होते थे कि घर में सब्जी के पैसे नहीं होते थे तो माँ 2 रूपये देती थी कि चीनी ले आओ और रोटी के साथ खा लो क्योंकि तुमलोग को पढ़ना होता है, इसलिए भूखे मत सोना।

ग्यारहवीं के दौरान

श्री गजेन्द्र एक सुर में पुराने दिनों की याद को सामने बयां करते जा रहे थे, लग रहा था कि सचमुच में वो उस पल को एक बार फिर से जी रहे थे। श्री गजेन्द्र बताते हैं कि पापा अच्छे विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ थे, इसलिए मामा के विद्यालय में नामांकन था। बतौर फीस पापा से जो बनता था, वह मामा को दे देते थे और मामा उसे रख लेते थे। प्राथमिक शिक्षा के उपरांत में सरकारी विद्यालय से दसवीं तक की पढ़ाई किया और दसवीं 77.80% से पास किया। मुश्किलों को याद करते हुये बताते हैं कि “पढ़ाई के दौरान ना ही कभी हमलोगों को औरों की तरह स्कूल बैग, स्कूल ड्रेस और ना ही कभी जूता नसीब हुआ”। हम लोगों के पास महज़ दो ड्रेस होते थे एक घर में पहनने के लिए और दूसरा स्कूल जाने में और कहीं जाने के लिए। स्कूल जाने के लिए हाफ पेंट और व्हाइट शर्ट और यही कपड़ा शादी-ब्याह समेत कोई भी मुख्य अवसर पर हमलोग उपयोग करते थे। कभी-कभी तो बिना चप्पल के भी स्कूल जाना पड़ जाता था और जब दोस्त पूछते थे कि तुम्हारा चप्पल क्या हुआ? तो उनको झूठ ही बोल दिया करते थे के पैर में छाले पड़ गए, इसलिए चप्पल नहीं पहने हैं।

मैट्रिक में अच्छे नंबर से सफल होने के बाद मैं आईआईटी की तैयारी करना चाहता था, किन्तु पापा ने मना कर दिया और बोले कि मुझे सभी बच्चे को पढ़ाना है और मैं उतना सक्षम नहीं हूँ। उन्होंने बोला कि पिछले साल ही बहन की शादी किए हैं, कुछ कर्ज भी हो गया है। उन्होंने कहा कि बेटा मैं सरकारी कॉलेज से इंटर और स्नातक करवा सकता हूँ। साथ ही उन्होंने सलाह दी कि इंटर करो और सामान्य प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करो और जल्दी से नौकरी ले लो।

राजपत्रित अधिकारी बनने के बाद

एस. एन. सिन्हा कालेज जहानाबाद से विज्ञान विषय से इंटरमीडिएट करने के समय से ही मैंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कोचिंग में पढ़ाना शुरू कर दिया। कोचिंग में पढ़ाने से मुझे ₹4000 प्रति महीने मिलते थे जिसमें ₹3000 पापा को दे दिया करता था और ₹1000 जहाँ मैं कोचिंग के रहा था उसको पैसा देता था। समय मिलने पर मैं पापा के साथ खेती और उनके दूध के व्यवसाय में भी सहयोग किया करता था, जैसे सुबह उठकर दूध दूहना आदि हालांकि अब भी जब घर जाता हूँ मुझे कोई समस्या नहीं होती। स्नातक के दौरान ही मैंने पापा से जिद की, कि मुझे कुछ पैसे चाहिए पटना जाकर एसएससी की तैयारी के लिए। उन्होंने ₹5000 दिए और मैं पटना के द गाइड इंग्लिश लिसेम दरियापुर गोला रोड पटना में एडमिशन ले लिया। चूँकि पटना में रहने का खर्च पापा नहीं दे सकते थे तो जहानाबाद से पटना ट्रेन से प्रतिदिन आने-जाने लगा और किसी तरह मैंने एसएससी के लिए अंग्रेजी की तैयारी की। मेरा गणित, रिजनिंग और सामान्य अध्ययन शुरू से ही अच्छा था। पढ़ाई के दिनों को याद करते हुये कहते हैं कि उस दौरान हमारे पास 14 रू वाली एक ही मोटी कापी हुआ करता था, उसी में सारा कुछ, अलग से नोट्स वाली कोई बात नहीं थी और हाँ किताब के मामले में सिर्फ गणित का, बाकी किताब दोस्तों मांग-मांग कर पढ़ लेता था।

एस. एन. सिन्हा कालेज, जहानाबाद से ही 2015 में अंग्रेजी (आनर्स) में स्नातक करने वाले श्री गजेन्द्र आगे बताते हैं कि संयोग देखिये द गाइड इंग्लिश लिसेम दरियापुर गोला रोड पटना से एसएससी के लिए अँग्रेजी पढ़ लेने से बाद 18 वर्ष कुछ महीने की आयु में, मैं पहली बार SSC (CHSL)-2014 का फॉर्म भरा और पहली ही बार में IA&AD में डाटा इंट्री ऑपरेटर (DEO) के पद पर अंतिम रूप से चयनित हुआ, मेरी ज्वाइनिंग करीब 20 वर्ष की उम्र में हुई। उसके बाद से जिंदगी में कठिनाइयां कम होना शुरू हो गया।

द गाइड इंग्लिश लिसेम दरियापुर गोला रोड पटना के गुरु मो. जमाल परवेज सर को अपनी पहली सफलता का श्रेय देते हुये श्री गजेन्द्र कहते हैं कि वह मेरे जीवन का एकमात्र कोचिंग था जहाँ मैंने चार महीने की नियमित कोचिंग ली। IA&AD में वर्तमान पद सहायक लेखापरीक्षा अधिकारी (राजपत्रित) पर चयन के बारे में बात करते हुये बताते हैं कि वर्तमान सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन और प्रेरणा मधुकांत सर, अविनाश सर और अनुपम सर से मिला। वर्तमान में प्रयासरत युवाओं को संदेश देते हुये श्री गजेन्द्र कहते हैं कि एक लक्ष्य पर केन्द्रित रहें यथा एसएससी या बैंक या फिर कुछ और, तथा तैयारी करते समय सही पुस्तक और उचित मार्गदर्शन के अनुसार प्रयास करें, सफलता अवश्य मिलेगी।

गजेन्द्र कुमार के इस बेहतरीन,संघर्षपूर्ण और प्रेरक सफलता के लिए कोशी की आस परिवार की ओर से बहुत-बहुत शुभकामना। कोशी की आस परिवार उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ आशा करती है कि नित्य नई कामयाबी हासिल करें। साथ ही कोशी की आस परिवार अपने सभी पाठकों से कहना चाहती है कि मुश्किलों का सामना करिए, मुश्किलों से भाग सफलता नहीं पाई जा सकती, वक्त है मुश्किलों से मुक़ाबला करने का।

(यह “गजेन्द्र कुमार” से “कोशी की आस” टीम के सदस्य के बातचीत पर आधारित है।)

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टीम- “कोशी की आस” ..©

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