मिलये मुंबई की पहली महिला बस ड्राइवर प्रतीक्षा दास से

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“यूँ तो समाज में प्रेरक कहानियों की कोई कमी नहीं है, आए दिन हमसबको एक-से-बढ़कर-एक सच्ची और प्रेरक कहानियों से रूबरू होने का मौका मिलता है। कोसी की आस भी एक प्रयास है, जिसका उदेश्य अन्य वेब पोर्टल की तरह आपके सामने सिर्फ समाचार प्रस्तुत करने के बजाय हर अंतिम घर में “एक उम्मीद की किरण” जगाने का है। कोसी की आस” टीम अपने प्रेरक कहानी शृंखला की 26वीं कड़ी में आप सबके के सामने मुंबई की बेटी की एक ऐसी कहानी बताने जा रही है जो सिर्फ लड़कियों के लिए नहीं बल्कि समूचे समाज के लिए प्रेरणादायक है।

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“जिनमें अकेले चलने का हौंसला होता है, उनके पीछे एक दिन काफ़िला होता है”

 

आज हम जिस बेटी की बात करने जा रहे हैं, उसने न सिर्फ लीक (एक तय सुदा मार्ग) से हटकर ख़ुद का एक अलग मुकाम बनाने का निर्णय किया बल्कि ऐसी सोच रखने वाले करोड़ों युवाओं के लिए रास्ता बनाने का कार्य भी कीं है। आज इस बेटी ने एक बार फिर से साबित किया कि बेटी, बेटों से कम नहीं है, साथ ही समाज क्या कहेगा? ये तो लड़कों का काम है, ये काम कैसे करेंगे (इच्छा रहने के बाद भी)? आदि जैसे सवालों को धता बताते हुये, तमाम लड़के-लड़कियों को दिखाया है कि ईमानदारी, मेहनत, लगन और जुनून से किए गए किसी नए कार्य को समाज प्रारंभ में स्वीकारने में भले हिचकिचाती है, किन्तु सफल हो जाने पर यही समाज हमारी सफलता को हाथों-हाथ लेकर प्रचारित भी करती है।

मुंबई महानगर की पहली अधिकृत महिला बस ड्राइवर बन प्रतीक्षा दास ने समाज के सामने ऐसी ही लकीर खींच कर नई मिसाल कायम की है। महाराष्ट्र के मालाड के ठाकुर कॉलेज से मैकेनिकल इंजिनियरिंग में डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रतीक्षा आरटीओ (रिजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर) बनना चाहती थीं, लेकिन ख़ुद के जुनून ने उनके करियर की दिशा बदल दी।”

आज जहाँ लगभग हरेक कार्य क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं ने साबित किया है कि वह पुरुषों से किसी भी मायने में कम नहीं है, फिर चाहे राजस्थान की ग्रामीण घूंघटधारी महिला हो या कोई भी, समय-समय पर महिलाओं या लड़कियों ने अपने कारनामें से चकित किया है। ठीक उसी प्रकार, जैसे आम तौर पर भारी वाहन ड्राइव करते हुए ज्यादातर पुरुषों को ही देखा जाता है, लेकिन महज़ 24 वर्ष की उम्र में मुंबई जैसे महानगर में भारी वाहन (बस) चलाने को अपना कॅरियर बना प्रतीक्षा ने जो नज़ीर पेश किया है, उससे साफ जाहीर होता है कि आज की लड़कियाँ किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं है। प्रतीक्षा के लिए एक चर्चित खूबसूरत पंक्ति सोंपना चाहूँगा :-

 

दुनियाँ में दो तरह के लोग होते हैं,

एक वो जो,

दुनियाँ के अनुसार खुद को बदल लेते हैं

और दूसरे वो जो,

खुद के अनुसार दुनियाँ को बदल देते हैं।

 प्रतीक्षा बताती हैं कि बचपन से ही मन में बड़ी-बड़ी गाड़ियों को चलाने का जुनून था। यह मेरी ऐसी शौक थी, जिसमें निपुणता हासिल करने के लिए मैं लगभग 6 वर्षों से प्रयास कर रही थीं। भारी वाहनों के लिए प्रतीक्षा का लगाव कोई नया नहीं है। वह स्पोर्ट्स बाइक और बड़ी-बड़ी कारें तो पहले से चलाती रही हैं अब, वह बस और ट्रक भी ड्राइव कर लेती हैं। उनका कहना है कि हैवी वाहनों की ड्राइविंग उन्हे रोमांच से भर देती है।

प्रतीक्षा आगे बताती हैं कि वैसे तो मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद आरटीओ (रिजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर) बनने की तैयारी कर रही थीं, जिसके लिए मुझे भारी वाहन चलाने के लाइसेंस की जरूरत थी। गोरेगांव बस डिपो में ट्रेनिंग लेते समय अचानक मुझे लगा कि वह खुद बस ड्राइव करना भी क्यों न सीख लें? इस तरह उनके करियर की राह बदल गई। प्रतीक्षा ने बताया कि ट्रेनिंग के वक्त उनके ट्रेनर्स टेंशन में रहते थे कि कैसे एक महिला बस चला सकती है? क्योंकि कार की स्टीयरिंग के मुकाबले बस की स्टीयरिंग काफी मुश्किल होती है। उनके ट्रेनर्स आपस में बार-बार पूछा करते थे- ‘ये लड़की चला पाएगी या नहीं’? लाइसेंस मिला और उसके साथ ही प्रतीक्षा को अपने शहर की पहली अधिकृत महिला बस ड्राइवर बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। वह इस समय मुंबई के अभ्यास मार्ग पर बस दौड़ाती हैं। वह प्रतिप्रश्न करती हैं कि महिलाएँ ड्राइविंग सीट पर क्यों नहीं बैठ सकती हैं? महिलाएँ भी ऐसे जोखिम भरे सपने देखने की हकदार हैं। हर किसी को अपना लक्ष्य हासिल करने का जुनून होना चाहिए। उनकी 30 दिन की बेसिक से एडवांस लेवल्स तक ट्रेनिंग हुई। पहले दिन प्रतीक्षा ने पहले गेयर पर बस चलाई और दूसरे दिन इस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर 16 किलोमीटर तक गाड़ी चलाई। वह बताती हैं कि लोग मुझे देखकर घूरते थे, लेकिन मैंने नजरअंदाज किया और अपनी ड्राइविंग पर ध्यान केन्द्रित किया।

5 फिट और 4 इंच कद वाली प्रतीक्षा कहती हैं कि उनकी उम्र की लड़कियाँ जहाँ आधुनिकता की चकाचौंध में खो जाना चाहती हैं, मुझे अपने घर-परिवार से ऐसा संस्कार नहीं मिला है। शायद इसीलिए वह भारी वाहनों को सिर्फ चलाती ही नहीं, बल्कि खूब एंज्वॉय भी करती हैं। उनके अंदर सड़कों पर तरह-तरह के वाहन ड्राइव करने का एक अजीब सा ज़ज्बा रहता है। वह तो घुड़सवारी का भी प्रशिक्षण ले चुकी हैं। वह बताती हैं कि मैं पहली बार जब आठवीं में थीं, अपने मामा की बाइक चलाई थी। जब वह बस पर चढ़ती हैं, उनके ट्रेनर भी उन्हें हैरत से घूरने लगते हैं। उन्हें भी खुद पर गर्व होता है कि मुंबई की पहली लाइसेंस शुदा लड़की को बड़ी बसें चलाने की ट्रेनिंग उन्होंने दी।

प्रतीक्षा का अगला प्लान हवाईजहाज चलाने का है और वह मुंबई के फ्लाइंग स्कूल में एडमीशन लेने के लिए पैसे बचा रही है। यही नहीं वो बाइक से ग्रुप में लद्दाख ट्रिप पर जाने की प्लानिंग कर रही है तथा उस ग्रुप की लीडर भी प्रतीक्षा ही हैं। अंत अपने युवा साथियों के लिए एक पंक्ति समर्पित करना चाहूँगा

“ये क्या सोचेंगे?

वो क्या सोचेंगे?

दुनियाँ क्या सोचेगी?

इससे ऊपर उठकर कुछ सोच,

जिंदगी सुकून का दूसरा नाम हो जाएगी”

 

Pic Source- Google Image

(यह प्रतीक्षा दास” के बारे में “कोसी की आस टीम” की जुटाई गई जानकारी पर आधारित है।)

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टीम- “कोसी की आस” ..©

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