सोचने से कहाँ मिलते हैं, तमन्नाओं के शहर।
मंजिल पाने के लिए, चलने की ज़िद भी जरुरी है॥
अगर सच कहें तो ऊपर की महज़ कुछ शब्दों की पंक्तियाँ, जीवन के सफलता की आधारशिला को प्रतिबिंबित कर रही है। कोशी की आस टीम पूर्व की भांति ही अपने प्रेरक कहानी शृंखला के 44वीं कड़ी में एक ऐसी ही सच्ची कहानी आपलोगों के लिय ढूँढ कर लाई है और उसी कड़ी में आज हम विराटपुर, सोनबरसा राज, सहरसा के एक प्रेरक व्यक्तित्व और अरविंद कुमार सिंह और कल्पना सिंह की सुपुत्री अपूर्वा प्रियदर्शी से मिलाने जा रहे हैं और बताएँगे उनकी अबतक के संघर्ष से सफलता की कहानी।
अपूर्वा, के लिए संगीत को अपना कॅरियर चुनना आसान नहीं था। लेकिन वो कहते हैं न कि आपकी लगन और ईश्वर साथ हो तो, बाँकी लोग धीरे-धीरे ख़ुद-व-ख़ुद साथ आ जाते हैं। राजपूत (क्षत्रीय) परिवार से ताल्लुक रखने वाली इस युवती के संगीत की तरफ का रुझान, उनके ख़ुद के परिवार वालों को पसंद नहीं था। आपसभी को बता दें कि आज भी हमारे समाज में संगीत, नृत्य और कला का प्रदर्शन तथाकथित उच्च परिवार के लड़कियों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है, लिहाज़ा बचपन से ही अपूर्वा के संगीत की तरफ के रुझान को लेकर परिवार में तनाव की स्थिति रही।
“उम्मीदों से बंधा, एक जिद्दी परिंदा है इंसान।
जो घायल भी, उम्मीदों से है और जिन्दा भी, उम्मीदों पर हैं”।।
उपर्युक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते हुये अपूर्वा ने भी उम्मीदों के सहारे अब तक की सफलता पाई है। तो आइये जानते हैं अपूर्वा के संघर्ष से सफलता की कहानी हैं कि उन्हीं की जुबानी। अपूर्वा कहतीं हैं कि पापा का सहरसा जिले के सोनबरसा राज में मेडिकल का एजेंसी था और मम्मी के साथ मैं पढ़ाई के लिए सहरसा में रहती थी। पता नहीं कैसे, लेकिन बचपन से ही संगीत में रुचि थी, जिसकी वजह से मैं गाने, गाने की कोशिश करते रहती और अपनी मम्मी से संगीत सिखाने वाले शिक्षक के पास भेजने की जिद्द करने लगी। मेरी ये बाते न तो मम्मी को पसंद आई और जैसे ही मेरे संगीत प्रेम को उन्होंने पापा को बताया, पापा काफ़ी नाराज़ हो गए। लेकिन कुछ दिन बाद मेरी जिद्द को देखते हुये मम्मी ने पापा को बगैर बताए, सहरसा के प्रसिद्ध शशि-सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान के रमन झा सर के पास मुझे संगीत शिक्षण के लिए भेजना प्रारंभ कर दिया। अपने पहले संगीत शिक्षक की तारीफ़ करती हुई अपूर्वा कहतीं हैं कि संगीत में आज़ मैं जो कुछ भी हूँ उनके सूत्रधार रमन झा सर हैं। पापा के बगैर सहमति से मम्मी द्वारा मेरे लिए, लिए गए इस निर्णय को मैंने एक आख़िरी अवसर के रूप में लिया और काफी मेहनत करने लगी। लिहाज़ा गुरुजी के सहयोग से मेरी मेहनत रंग लाने लगी। मेरी मम्मी को भी अपने फैसले पर संतुष्टि होने लगी। इस तरह अकादमिक शिक्षा के साथ-साथ मेरी संगीत शिक्षा भी प्रारंभ हो गई।

दसवीं की पढ़ाई जय प्रताप सिंह पब्लिक स्कूल, सहरसा से 2016 में पूर्ण करने के बाद बेहतर शिक्षा के लिए परिवार वालों ने अपूर्वा को पटना भेजने का निर्णय किया। जे डी विमेंस कॉलेज पटना से बारहवीं की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद अपूर्वा ने संगीत में ही अकादमिक शिक्षा लेने का निर्णय लिया और वर्तमान में संगीत से स्नातक के द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं।
अपूर्वा कहतीं हैं कि पढ़ाई के लिए पटना जाना और वहाँ संगीत में पढ़ाई करना मेरे लिए आसान नहीं था। हाँ, मम्मी मेरे प्रतिभा से वाकिफ़ हो चूँकि थी और धीरे-धीरे पापा भी सहमत हो रहे थे लेकिन वो कहते हैं न कि जो अच्छा दिखता है न, उसके पीछे बहुत सारी कठिनाइयाँ छुपी होती हैं। इस 21वीं सदी में भी हमलोगों के समाज और परिवार में पढ़ाई का मतलब डॉक्टर, इंजीनियर अथवा पारंपरिक पढ़ाई आदि ही है, उनलोगों के लिए खेल, संगीत, नृत्य और कला आदि जैसे क्षेत्र में कॅरियर तलाशने वाले युवाओं पर विश्वास कर पाना आसान नहीं होता। लिहाज़ा मम्मी-पापा के सहमत होने के बाद भी आए दिन पड़ोसियों और रिश्तेदारों द्वारा मुझे पॉइंट-आउट कर बताया जाता था कि मेरी बेटी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही, तो कोई मेरा बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा और इतने से भी नहीं होता तो बोला जाता था कि संगीत से ग्रेजुऐशन करने कौन पटना जाता है। हालाँकि, मुझे उन सबकी बातों से गुस्सा जरूर आता था लेकिन मैं अपने निर्णय को लेकर बिल्कुल स्पष्ट थी इसलिए मुझे फर्क नहीं पड़ता था लेकिन कुछ पल के लिए पापा-मम्मी परेशान हो जाते थे।
लेकिन क्या ख़ूब कहा गया है…………..
जीतने के लिये, ज़िद और जूनून चाहिये,
हारने के लिये तो, आपका डर ही काफी है।
अपूर्वा कहतीं हैं कि संगीत शिक्षक ढूँढने के लिए मैं 2-3 महीने पटना में भटकती रहीं तब जाकर राजीव सर के रूप में एक अच्छे शिक्षक से मुलाक़ात हुई जिन्होंने न सिर्फ मेरे संगीत की अच्छाइयों को सराहा बल्कि मुझे मेरी कमियों को ठीक करने की भी सलाह दी। मैं स्पष्ट रूप से कह सकती हूँ कि राजीव सर के रूप में एक नए जगह पर (पटना) मैंने न सिर्फ एक कुशल संगीत गुरु पाई बल्कि वहाँ मेरी अभिभावक की कमी भी दूर हो गई।

अपूर्वा की मेहनत ने रंग लाना प्रारंभ कर दिया और संगीत से स्नातक प्रथम वर्ष के दौरान ही पटना में आयोजित जिला युवा महोत्सव 2018-19 में उन्होने सेमी क्लासिकल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। साथ ही विभिन्न महोत्सव जैसे उमगेश्वरी महोत्सव, औरंगाबाद, कोशी महोत्सव और उग्रतारा महोत्सव में न सिर्फ कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया बल्कि उम्दा प्रदर्शन के लिए सम्मानित भी किया गया।
अपने सभी शिक्षकों का बहुत सम्मान करने वाली अपूर्वा कहतीं हैं कि रमन सर और राजीव सर के आलवे मेरे संगीत को निखारने में सरोज़ दास सर का बहुत बड़ा योगदान रहा है विभिन्न संगीत प्रतियोगिता के समय उनका आशीर्वाद मेरे लिए काफ़ी महत्वपूर्ण रहा है।

लता मंगेशकर को अपना आदर्श मानने वाली और पार्श्वगायन में अपना कॅरियर बनाने की चाहत रखने वाली अपूर्वा कहती हैं कि संगीत ही मेरा जीवन है, संगीत ही मेरी आयु है और संगीत के बिना मेरा जीवन अधूरा है। अपूर्वा ने बेहद कम उम्र में बिहार राज्य अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता तरंग 2019 में सुगम संगीत में प्रथम स्थान तथा शास्त्रीय संगीत और उप-शास्त्रीय संगीत में दृष्टिया स्थान के साथ-साथ बेस्ट परफॉर्मर के रूप में प्रथम स्थान, पटना जिला युवा उत्सव 2019-20 में सुगम संगीत में प्रथम तथा शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत में दृष्टिया स्थान, राज्य स्तरीय युवा उत्सव 2019 में उप-शास्त्रीय संगीत में प्रथम स्थान प्राप्त किया। तत्कालीन कला, संस्कृति और युवा विभाग के मंत्री प्रमोद कुमार द्वारा सम्मानित भी हुई।
इतना ही नहीं, दूरदर्शन बिहार, उमगेश्वरी महोत्सव, औरंगाबाद, उग्रतारा महोत्सव तथा कोशी महोत्सव सहरसा आदि में कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी अपूर्वा का चयन 2020 में सोनी टीवी के चर्चित शो इंडियन आइडियल 12 के ऑडिशन राउंड के लिए हुआ है।
अपूर्वा प्रियदर्शी के अब तक के संघर्षपूर्ण और शानदार सफ़र के लिए कोशी की आस परिवार की ओर से बहुत-बहुत शुभकामनायें। कोशी की आस परिवार बेहतर भविष्य की कमाना करते हुये आशा करता है कि माँ सरस्वती की कृपा अपूर्वा पर यूँ ही बरसती रहे।
(यह साक्षात्कार अपूर्वा प्रियदर्शी और कोशी की आस टीम के सदस्य के बीच हुई बातचीत पर आधारित है।)
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टीम- “कोसी की आस” ..©