निर्भया मामले का आखिरकार 7 साल, 3 माह और 4 दिन बाद इंसाफ मिल ही गया। निर्भया के दोषियों की फांसी के साथ ये मामला हमेशा के लिए बंद हो जाएगा साथ ही ये मामला भविष्य में हमेशा के लिए याद रखा जाएगा। इस मामले की शुरुआत 16 दिसंबर 2012 की रात को शुरू हुआ था, जब निर्भया(काल्पनिक नाम) अपने एक दोस्त के साथ साकेत स्थित सेलेक्ट सिटी मॉल से मूवी देखकर वापस आ रही थी। घर लौटने के कम्र में उनके साथ जो घिनौना कांड हुआ शायद ही हमने कभी सुना था।
जिस जगह पर दोनों (निर्भया और उसके दोस्त) को फेंका गया था वह दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर के नजदीक वसंत विहार इलाका था। सुबह होते होते ये खबर पूरी दिल्ली और कुछ समय बाद पूरे देश में फैल चुकी थी। हर कोई निर्भया की जिंदगी और उसको इंसाफ की मांग कर रहा था। इसको लेकर लोग जहां सड़कों पर उतर गए थे वहीं निर्भया अपनी जिंदगी की जंग अस्पताल में लड़ रही थी। देश भर में निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे थे। इस बीच उसकी हालत नाजुक होती जा रही थी जिसकी वजह से उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था।
उस समय दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी उसको देखने अस्पताल गई थीं। उन्होंने कहा था कि निर्भया की हालत देखने के बाद उनके रौंगटे खड़े हो गए थे। उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो पीड़ित लड़की को दोबारा देख सकें।
निर्भया की बिगड़ती हालात को देखते हुए तत्कालीन हुक्मरान ने निर्भया को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराने का फैसला लिया। हलांकि वहां पर डॉक्टरों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। 29 दिसंबर को निर्भया ने रात के करीब सवा दो बजे वहां दम तोड़ दिया था।
इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की महिला अधिकारी ने तुरंत कार्यवाही करते हुए घटना के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने छह में से चार आरोपियों राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को गिरफ्तार किया। और अगले तीन दिनों में पांचवें आरोपी जो नबालिग था उसे दिल्ली से और छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार से गिरफ्तार किया था। फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाई गई। साकेत की फास्ट ट्रेक कोर्ट में यह मामला सुना गया। हालांकि एक आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च, 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी।
अदालत के द्वारा चारों वयस्क दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी, जबकि एक आरोपी को नाबालिग मानते हुए उसे तीन साल किशोर सुधार गृह में रहने की सजा दी गई है। इसके बाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी दोषियों को मिली फांसी की सजा पर मुहर लगी। इसके बाद भी काफी कानूनी प्रक्रिया होने के चलते इस मामले को अपने अंजाम तक पहुंचने में सात वर्ष से अधिक का समय लग गया।