कृषि विधेयक 2020 आज़ादी या ग़ुलामी!

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नई दिल्ली : किसान बिल ग़ुलामी का प्रतीक नहीं हो सकता क्योंकि कोई भी सरकार हो वो किसानों को ग़ुलामी के जंजीरों में धकेल नहीं सकती क्योंकि लोकतंत्र इसकी अनुमति नहीं देता। कुछ लोग कहते हैं ये बिल भी लोकतंत्र या आज़ादी को छीनने वाली है, इस बिल के माध्यम से किसान बड़े-बड़े उद्योगपतियों के हाथ की कठपुतली बन जाएंगे, लेकिन कुछ बातें समझना होगा और समझने के लिए बिल को पढ़ के समझाना होगा।

विरोध क्यों?

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बात अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखी जाए तो पंजाब ने इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध किया है। कांग्रेस इस बिल के विरोध में पूरी मजबूती से खड़ी है। कांग्रेस का आरोप है कि इस तरह से सरकार मंडी व्यवस्था खत्म कर के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित करना चाहती है।

कानून का किसानों पर क्या होगा असर ?

यह कानून किसानों को एपीएमसी की जकड़ से आज़ाद करेगा। यह कानून किसानों को अपना उत्पाद सीधे किसी को भी बेचने की छूट देगा। इससे ख़रीदारों में प्रतियोगिता बढ़ेगी, और किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे। अब कानूनी रूप से मान्य बिचौलिये के न होने से किसान सीधे ग्राहकों (मसलन रेस्तराओं, फूड प्रोसेसिंग कंपनी आदि) को अपना उत्पाद बेच सकेंगे। तो जब इससे किसानों को फायदा होना है तो फिर वह विरोध क्यों कर रहे हैं?

एक आरोप ये भी है कि मौजूदा सरकार MSP को कमजोर कर रही है, लेकिन अगर आंकड़ो और LMT को देखें तो लगेगा 2009 से 2014 के मुताबिक इस सरकार में दाल हो या कई ऐसे चीजें हैं जिनमें सरकार ने बढाके और यूं कहें तो अच्छी कीमत दी है।

इसमें एक प्रावधान ये भी है कि अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद भी किसान कभी भी अपना निर्णय वापस ले सकता है, दंड के बिना, यदि कोई अग्रिम नहीं लिया जाता है, अगर अग्रिम लिया जाता है तब भी बिना ब्याज के वापस ले सकते हैं।

कृषि संबंधी दो विधेयकों को रविवार को राज्यसभा में मंजूरी दे दी गई है, इस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर होने के साथ ही यह कानून का रूप ले लेगा, जिन विधेयरों को मंजूरी मिली है उसमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 शामिल है।

कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 के तहत किसान या फिर व्यापारी अपनी उपज को मंडी के बाहर भी अन्य माध्यम से आसानी से व्यापार कर सकेंगे।

इस बिल के अनुसार राज्य की सीमा के अंदर या फिर राज्य से बाहर, देश के किसी भी हिस्से पर किसान अपनी उपज का व्यापार कर सकेंगे। इसके लिए व्यवस्थाएं की जाएंगी। मंडियों के अलावा व्यापार क्षेत्र में फार्मगेट, वेयर हाउस, कोल्डस्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिटों पर भी बिजनेस करने की आजादी होगी। बिचौलिये दूर हों इसके लिए किसानों से प्रोसेसर्स, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों का सीधा संबंध स्थापित किया जाएगा।

भारत में छोटे किसानों की संख्या ज्यादा है, करीब 85 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है, ऐसे में उन्हें बड़े खरीददारों से बात करने में परेशानी आती थी। इसके लिए वह या तो बड़े किसान या फिर बिचौलियों पर निर्भर होते थे। फसल के सही दाम, सही वक्त पर मिलना संभव नहीं होता था। इन विधेयकों के बाद वह आसानी से अपना व्यापार कर सकेंगे।

किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी, वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेचेगा। देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।

नए बिल में न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य यानी MSP को नहीं हटाया गया है (पीएम नरेंद्र मोदी देकर यह बात कह चुके हैं कि एमएसपी को खत्‍म नहीं किया जा रहा है)।

किसानों की इन चिंताओं के बीच राज्‍य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा- को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्‍हें मंडियों में मिलने वाले टेक्‍स का नुकसान होगा।

सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान कर दिया है। केबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने यह मंजूरी दी है। किसानों की चिंता को देखते हुए एक महीने पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मंजूरी दे दी गई है। सरकार ने एमएसपी में 50 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की है.किसानों से उनके अनाज की खरीदी FCI व अन्य सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर करेंगी।

कृषि बिलों की तारीफ करते हुए ‘पीएम ने कहा कि ‘हमारे देश में अब तक उपज बिक्री की जो व्यवस्था चली आ रही थी, जो कानून थे, उसने किसानों के हाथ-पांव बांधे हुए थे। इन कानूनों की आड़ में देश में ऐसे ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे।

ये बिल किसान के जीवन बदलाव की क्रांतिकारी कदम है, इसमें खेती युक्त जमीन मतलब उपजाऊ जमीन या जो किसानों की जमीन बिना उसकी स्वेक्षा से बेचना, या lease पे लेने की रोक है, ये सिर्फ एक खेती करने और उपज बेचने की अनुबंध प्रक्रिया है।

इस बिल के माध्यम से बिचौलिए खत्म हो जाएंगे, किसान अपनी मर्जी के मालिक होंगे, एक बहोत पहले हम सब लोगों ने एक गाना सुना था “साड्डा हक़, इत्थे रख”/ इस बिल के माध्यम से ये गाना वर्तमान समय में चरितार्थ हो रहा है।

(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, कोशी की आस का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

गौतम सिंह
अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

 

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