स्पेशल डेस्क
कोसी की आस@पटना
बिहार में एक ऐसा शैक्षणिक आँगन है, जहाँ वर्ग 7 से 10 वीं तक के छात्र-छात्रायें, स्नातक के गणित के प्रश्नों को आसानी से हल करते हुये दिख जायेंगे। यहाँ वर्ग 10 वीं से पहले ही छात्र-छात्रायें 11वीं और 12वीं के गणित के पाठ्यक्रम को पूरे काॅन्सेप्ट से पढने के बाद Bsc के गणित के पाठ्यक्रम के प्रश्नों को हल करना प्रारम्भ कर देते हैं। सभी WONDER KIDS छात्र-छात्राओं के हाथ में Lalji Prasad के Bsc ( स्नातक) के किताब दिख जायेंगे। यह नज़ारा है मैथेमैटिक्स गुरू फेम नाम से मशहूर आरके श्रीवास्तव के खूबसूरत और अनोखे “शैक्षणिक आँगन” का।
क्या है? WONDER KIDS PROGRAM—-
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में वर्ग 3 से छात्र-छात्राएं जुड़ना प्रारम्भ कर देते हैं। प्रत्येक दिन 4 से 5 घंटे तक छात्र-छात्राओं को शिक्षा दिया जाता है। प्रत्येक रविवार को सुबह 7 बजे से शाम 7 तक लगातार 12 घंटे गणित का गुर आरके श्रीवास्तव सिखाते है। इसके अलावा आरके श्रीवास्तव के द्वारा चलाया जा रहा “स्पेशल नाईट क्लासेज” भी देश में चर्चा का विषय बना हुआ। अभी तक आरके श्रीवास्तव छात्र-छात्राओं को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने हेतु 200 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घंटे गणित का गुर सिखा चुके है।
वंडर किड्स प्रोग्राम के तहत छात्र-छात्राओं को सिर्फ 2 से 3 वर्षों में 5 से 7 हजार घंटे आरके श्रीवास्तव अपने “शैक्षणिक आँगन” में गणित का गुर सीख चुके होते है। जब यह छात्र-छात्रा वर्ग 7- 8 में पहुँचते है तो 11वीं और 12वीं के सिलेबस को पूरे कांसेप्ट के साथ पढ़ चुके होते है। वर्ग 10वीं में तो कई बार 11वीं और 12वीं के पाठ्क्रम सहित आईआईटी प्रवेश परीक्षा के पिछले 40 वर्षों के question bank को कई बार revision कर चुके होते है।
अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय पढ़ाने का तरीका—-
कचरे से खिलौने बनाकर सैकड़ों गरीब छात्रों को गणित का गुर सिखाकर इंजीनियर बनाने वाला बिहारी जीनियस मैथेमैटिक्स गुरू फेम आरके श्रीवास्तव का पढ़ाने का तरीका अपने आपमें अनोखा है।
उनका मानना है कि हर बच्चे को खिलौनों से प्यार होता है।खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, ऐसे में हर माता-पिता कोशिश करते हैं कि वे अच्छे-से-अच्छा खिलौना लाकर अपने बच्चे के बचपन में रंग भर सकें।
हालांकि, आज भी ग्रामीण और शहरी इलाकों में हज़ारों परिवार अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने में असमर्थ हैं।
लेकिन, बिहार के आर के श्रीवास्तव नाम के इस शख्स ने बच्चों की जिंदगी में पैसों की वजह से “किसी की खुशी में कमी न रह जाए”, के लिए काम किया। और उसके निदान के लिए आर के श्रीवास्तव ने खिलौने के जरिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बच्चों को गणित पढ़ाने का एक मजेदार तरीका सोचा।
इसके लिए उन्होंने सस्ती सामग्री से नए खिलौने बनाने के तरीके खोजे और विकसित किए। छात्र-छात्राएं 11वीं और 12वीं के आलावे आईआईटी प्रवेश परीक्षा के गणित के काॅन्सेप्ट को खिलौने बनाकर आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक ऑगन में समझते हैं। चाहे वह 3-d , vector के concept हो या Algebra, Trigonometry, Co-ordinate, Calculus, Geometry, Menstruation के concept, इन सभी के concept को आर के श्रीवास्तव Waste Material से ‘खिलौने’ बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाते है।
बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में जन्मे, आरके श्रीवास्तव ने बचपन में पिता के गुजरने के बाद और गरीबी के कारण अपनी पढाई वीर कुवँर सिंह विश्वविद्यालय से पूर्ण किया। आर्थिक कारणों से उनकी प्रारंभिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की पढ़ाई भी स्थानीय सरकारी विद्यालय से हुई थी। उन्हें अपने शिक्षा के दौरान यह एहसास हो गया था कि देश में लाखों-करोड़ों प्रतिभायें होगी जो महंगी शिक्षा, महंगी किताबें इत्यादि के कारण अपने सपने को पूरा नहीं कर पाते होंगे।
टीबी की बिमारी के कारण नहीं दे पाये थे आईआईटी प्रवेश परीक्षा।
टीबी की बिमारी के कारण आईआईटीयन न बनने की टिस ने सैकड़ों गरीब छात्रों को इंजीनियर बना दिया। टीबी की बिमारी के दौरान स्थानीय डाॅक्टर ने करीब 9 महीने दवा खाने का सलाह दिया। उस दौरान अकेले घर में बैठे-बैठे बोर होने लगे। फिर उनके दिमाग में यह आईडिया आया कि क्यों न आसपास के स्टूडेंट्स को बुलाकर गणित का गुर सिखाया जाये। पढ़ाने के दौरान वैसे बहुत सारे स्टूडेंट्स थे जो प्रश्न को तो हल कर लेते थे परन्तु उनके काॅन्सेप्ट आजीवन के लिए क्लियर नहीं हो पाते। आजीवन शब्द का इस्तेमाल इस लिये किया गया कि यदि वे कुछ दिन उस चैप्टर की प्रैक्टिस छोड़ दे, तो जल्द वे भूल जाते थे। स्टूडेंट्स की इन कमियो को दूर करने के लिए उन्होंने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सस्ती सामग्रियों का इस्तेमाल करके सिंपल खिलौने बना शैक्षणिक प्रयोग विकसित किए।
इन खिलौनों के साथ उन्होंने स्कूलों में सेमिनार करके भी मजेदार तरीके से बच्चों को गणित के मूल सिद्धांतों को पढ़ाया। खिलौने की वजह से बच्चे आकर्षित होने लगे और उनकी रुचि पढ़ने में बढ़ने लगी।
माचिस की तीलियों, साइकल वाल्व ट्यूब, कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकड़ों से लेकर बेकार कागज इत्यादि का इस्तेमाल कर सुंदर खिलौने बना पढ़ाने समेत बच्चों के बीच ‘best-out-of-waste’ का आईडिया भी डाल रहे हैं। गणित के 3d Shape , ज्यमिती, क्षेत्रमिती, बीजगणित, त्रिकोणमिती सहित अनेकों गणित के कठिन-से-कठिन प्रश्नों को हल करना सीखा रहे हैं। खिलौने के सहारे थ्योरी को क्लियर कर चुटकियों में छात्र-छात्राएँ प्रश्न को हल कर दे रहे हैं।
उन्होंने छोटे ग्रामीण गांव के स्कूलों से लेकर देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थानों तक के हज़ारों बच्चों को खिलौने बनाकर गणित के प्रश्नों को हल करना सिखाया है। इनके पढाये सैकड़ों स्टूडेंट्स आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई, एनडीए में सफलता पाकर अपने सपने को पंख लगा रहे हैं।
आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली के चलते इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज हो चुका है। साथ ही दर्जनों अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके हैं। बच्चों को गणित से प्रेरित खिलौने बनाना सिखाकर गणित के काॅन्सेप्ट को रूचिकर बना जादुई तरीके से गणित पढ़ाने की शैक्षणिक कार्यशैली पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। और इस प्रकार ‘खिलौने’ वाले मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हो चुके हैं WONDER KIDS GURU आरके श्रीवास्तव ।