बिहार के पाँच अनमोल नगमे।

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बिहार के सत्यम कुमार, तुलसी अवतार तथागत, आनंद कुमार, आरके श्रीवास्तव और ऋतु जायसवाल ने बिहार की कोख से पलकर अपने शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो से लाखो युवायों के रोल मॉडल बन चुके है। आइये जानते हैं इन अनमोल रत्न के बारे में–

सत्यम कुमार

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मात्र 12 साल की उम्र में दुनिया का सबसे कठिन मानी जाने वाली परीक्षा IIT JEE को पास कर पूरी दुनिया में तहलका मचा देने वाला बिहार का सत्यम बीते वर्ष भी फ्रांस में इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए नजीर बन चुका था।

बारह वर्ष की नन्ही सी उम्र में आइआइटी के ऊंचे किले को फतह करने वाला सत्यम के कायल फ्रांस में इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स भी रह चुके है। सत्यम की मेधा के कायल फ्रांसिसी छात्रों को भारतीय शिक्षा पद्धति का गुर सीखा चुके है। भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड के बखोरापुर निवासी रामलाल सिंह का पोता सत्यम कुमार  भारत में काफी चर्चा में आए थे, जब महज बारह वर्ष की उम्र में आइआइटी की प्रतियोगिता में बुलंदी का झण्डा लहराया था। सत्यम आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल से बीटेक कर वर्तमान में The University of Texas at Austin से पीएचडी की पढ़ाई कर रहे है।

आईआईटी कानपुर में पढ़ाई के दौरान फ्रांस में समर रिसर्च इन्टर्न के अवसर पर ब्रेन कम्प्यूटर इन्टरफेसेज’ विषय पर रिसर्च के लिए सत्यम का चयन कर लिया गया। उसका चयन फ्रांस के चार्पैक स्कॉलरशीप तथा भारत सरकार में ‘ए सर्विस ऑफ दी एम्बेसी’ के संयुक्त तत्वावधान में टू प्रमोट हाईयर एजुकेशन इन फ्रांस’ के लिए भी हो चुका है।

वही दुसरी तरफ फ्रांस के डीयू लैब के डायरेक्टर गिल्स कौपीन ने फोन से सत्यम से बात कर छात्रों को मोटीवेट करने का प्रस्ताव भी भेजा, जिस पर सत्यम ने अपनी सहमती दी। सत्यम फ्रांस के ब्रीस्ट शहर में टेलिकॉम डी सी ब्रीटेग्नी में रिसर्च का काम डीयू के लैब निर्देशक गिल्स कौपीन व फ्रांसिस्को एन्ड्रयूली के सान्निध्य में कर चुके है।

फ्रांस के वैज्ञानिकों के साथ बौद्धिक साझेदारी का सुन्दर अवसर उन्हें प्राप्त हो चुका है तथा सभी सत्यम के प्रतिभा के कायल भी हुए। इस प्रकार बिहार के साथ-साथ देश का नाम भी सत्यम ने रौशन किया है। इतनी छोटी उम्र में ही इतनी बडी उपलब्धि हासिल करना बहुत बडी बात है। बिहार को सत्यम पर गर्व है और उम्मीद है कि आने वाले समय में वे सफलताओं के बुलंदियों पर पहुँचेंगे और पूरे देश का नाम रौशन करेंगे।

डा तुलसी अवतार तथागत—-

प्रतिभाशाली बच्चों के रूप में ज्ञात तथागत अवतार तुलसी जिसने महज 9 साल की उम्र में मैट्रिकुलेशन, 11 साल की उम्र में ही बीएससी और 12 साल की उम्र में एमएससी की डिग्री हासिल कर इतिहास रच दिया था। मात्र 22 साल की उम्र में ही आईआईटी, मुंबई में उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का गौरव हासिल हुआ था। तुलसी आईआईटी के सबसे युवा प्रोफेसर माने जाते है।

तथागत ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से पीएचडी कर भारत के सबसे युवा पीएचडी होल्डर और सबसे कम पेज का (मात्र 33 पेज) पीएचडी थेसिस लिखने का रिकार्ड भी बनाया था। 2002 में आई हॉलीवुड फिल्म ए ब्यूटीफुल माइंड तथागत की उपलब्धियों से ही प्रेरित थी। इस फिल्म को चार ऑस्कर पुरस्कार भी मिले थे। तथागत ने कहा कि आईआईटी, पटना ने मेरे ऑफर को ठुकरा दिया था।

तुलसी को कनाडा की वाटरलू यूनिवर्सिटी ने भी अच्छे खासे पैकेज पर अपने यहां प्रोफेसर बनने का ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया था क्योंकि वह देश में रहकर ही काम करना चाहते थे। उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस भोपाल ने भी नौकरी की पेशकश की थी। 2003 में उन्हें टाइम पत्रिका ने विश्व के सात सर्वाधिक चमत्कारिक युवाओं की लिस्ट में शामिल किया था।

 

आनंद कुमार—-

शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था सुपर 30’ को कौन नहीं जानता। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके ‘सुपर 30’ की चर्चा अखबारों में खूब सुर्खियाँ बटोरती हैं। आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं। सन् 2002 में आनंद कुमार ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30’ के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई। उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली। इसीप्रकार सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा।

आज आनंद कुमार राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को संबोधित करते हैं। उनके सुपर 30’ की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। आनंद कुमार को विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय अपने यहाँ सेमिनार के लिए भी बुलाते है। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार बिहार के गौरव हैं।

 

आरके श्रीवास्तव ——

मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव यानी गणित पढ़ाने का दीवाना, पूरी रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाते, वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव मशहूर है कि वे जादुई तरीके से खेल-खेल में गणित का गुर सिखाते है। चुटकले सुनाकर खेल-खेल में पढ़ाते हैं। गणित के मशहूर शिक्षक मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव जादुई तरीके से गणित पढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी पढ़ाई की खासियत है कि वह बहुत ही स्पष्ट और सरल तरीके से समझाते हैं। सामाजिक सरोकार से गणित को जोड़कर, चुटकुले बनाकर सवाल हल करना आरके श्रीवास्तव की पहचान है। गणित के लिये इनके द्वारा चलाया जा रहा निःशुल्क नाईट क्लासेज अभियान पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। पूरे रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाना कोई चमत्कार से कम नही। सबसे बड़ी बात है कि वैसे स्टूडेंट्स जिन्हें गणित के नाम से ही डर लगता है परंतु वे आरके श्रीवास्तव के क्लास में जब शिक्षा ग्रहण करते है तो वे गणित के हौवा को भूल जाते है। स्टूडेंट्स अगले दिन भी यह कहते है कि हमे आरके श्रीवास्तव के नाईट क्लासेज में पूरे रात लगातार 12 घण्टे गणित पढ़ना है। पूरे रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स बिना किसी तनाव के एन्जॉय करते हुए गणित के प्रश्नों को हल करते है।

उनके इस क्लास को देखने और उनका शैक्षणिक कार्यशैली को समझने के लिए कई विद्वान इनका इंस्टीटूट देखने आते है। नाईट क्लासेज अभियान हेतु स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने और गणित को आसान बनाने के लिए यह नाईट क्लासेज अभियान अभिभावकों को खूब भा रहा। स्टूडेंट्स के अभिभावक इस बात से काफी प्रसन्न दिखे की मेरा बेटा बेटी जो ठीक से घर पर पढ़ने हेतु 3-4 घण्टे भी नही बैठ पाते, उसे आरके श्रीवास्तव ने पूरे रात लगातार 12 घण्टे कंसंट्रेशन के साथ गणित का गुर सिखाया। आपको बताते चले कि अभी तक आरके श्रीवास्तव के द्वारा 200 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स को निःशुल्क गणित की शिक्षा दी जा चुकी है जो अभी भी जारी है।

वैसे आरके श्रीवास्तव का प्रतिदिन क्लास में तो स्टूडेंट्स गणित का गुर सीखते ही है, परंतु यह स्पेशल नाईट क्लासेज प्रत्येक शनिवार को लगातार 12 घण्टे बिना रुके चलता है। इसके लिए आरके श्रीवास्तव का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हो चुका है। आरके श्रीवास्तव गणित बिरादरी सहित पूरे देश मे उस समय चर्चा में आये जब एक चैलेंज के दौरान इन्होंने क्लासरूम प्रोग्राम में बिना रुके पाइथागोरस थ्योरम को 50 से ज्यादा अलग-अलग तरीके से सिद्ध कर दिखाया। आरके श्रीवास्तव ने कुल 52 अलग-अलग तरीको से पाइथागोरस थ्योरम को सिद्ध कर दिखाया। जिसके लिए इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन में दर्ज चुका है।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन के छपी किताब में यह जिक्र भी है कि बिहार के आरके श्रीवास्तव ने बिना रुके 52 विभिन्न तरीकों से पाइथागोरस थ्योरम को सिद्ध कर दिखाया। इसके लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने आरके श्रीवास्तव को इनके उज्ज्वल भविष्य के लिए बधाई एवं शुभकामनाये भी दिया। इसके अलावा आरके श्रीवास्तव संख्या 1 क्या है?, पर शैक्षणिक सेमिनार में घण्टो भाषण देकर अपने प्रतिभा से बिहार को गौरवान्वित कराया।

आरके श्रीवास्तव गणित को हौवा या डर होने की बात को नकारते हैं। वे कहते हैं कि यह विषय सबसे रुचिकर है। इसमें रुचि जगाने की आवश्यकता है।अगर किसी फॉर्मूला से आप सवाल को हल कर रहे हैं तो उसके पीछे छुपे तथ्यों को जानिए। क्यों यह फॉर्मूला बना और किस तरह आप अपने तरीके से इसे हल कर सकते हैं? वे बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही गणित में बहुत अधिक रुचि थी, जो नौंवी और दसवी तक आते-आते परवान चढ़ी।

 

आरके श्रीवास्तव अपने पढ़ाई के दौरान टीबी की बीमारी की वजह से आईआईटी प्रवेश परीक्षा नही दे पाये थे। उनकी इसी टिस ने बना दिया सैकड़ो आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनयर। आर्थिक रूप से गरीब परिवार में जन्मे आरके श्रीवास्तव का जीवन भी काफी संघर्ष भरा रहा।

आरके श्रीवास्तव सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर  पढ़ाते है गणित, प्रत्येक अगले वर्ष 1 रुपया अधिक लेते है गुरु दक्षिणा।सैकड़ो आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स  (सब्जी विक्रेता का बेटा, गरीब किसान, मजदूर ,पान विक्रेता ) को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई में सफलता दिलाकर बना चुके है इंजीनियर। आज ये सभी स्टूडेंट्स अपने गरीबी को पीछे छोड़ अपने सपने को पंख लगा रहे। वे कहते हैं कि मुझे लगा कि मेरे जैसे देश के कई बच्चे होंगे जो पैसों के अभाव में पढ़ नहीं पाते।

आरके श्रीवास्तव अपने छात्रों में एक सवाल को अलग-अलग तरीके से हल करना भी सिखाते हैं। वे सवाल से नया सवाल पैदा करने की क्षमता का भी विकास करते हैं। रामानुजन, वशिष्ठ नारायण को आदर्श मानने वाले आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के युग में गणित की महत्ता सबसे अधिक है, इसलिए इस विषय को रुचिकर बनाकर पढ़ाने की आवश्यकता है। इनके द्वारा चलाया जा रहा वंडर किड्स प्रोग्राम क्लासेज भी अद्भुत है, इस प्रोग्राम के तहत नन्हे उम्र के बच्चे जो वर्ग 7 और 8 में है परंतु अपने वर्ग से 4 वर्ग आगे के प्रश्नों को हल करने का मद्दा रखते है। वर्ग 7 व 8 के स्टूडेंट्स 11 वी , 12 वी के गणित को चुटकियो में हल करते है। आरके श्रीवास्तव के वंडर किड्स प्रोग्राम क्लासेज के इन स्टूडेंट्स से मिलने और शैक्षणिक कार्यशैली को समझने के लिये अन्य राज्यो के लोग इनके इंस्टीटूट को देखने आते है। इसी खासियत और इनके गणित पढ़ाने के जादुई तरीके ने उन्हें मैथमेटिक्स गुरु का दर्जा दिला दिया ।

श्रीवास्तव के गणित के प्रति प्रेम और नाईट क्लासेज के रूप में लगातार 12 घण्टे 200 क्लास से अधिक बार जादुई तरीके से गणित पढाकर विश्व रिकॉर्ड बनाने हेतु इन्हें सम्मानित किया गया। आरके श्रीवास्तव का बचपन काफी गरीबी गुजरा। उनके पास अपने शौक पूरा करने के पैसे नहीं थे। श्रीवास्तव अपने शैक्षणिक तरीको से स्टूडेंट्स में काफी लोकप्रिय है। चाहे वह नाईट क्लास के रूप में लगातार 12 घण्टे गणित का गुर सीखना हो या वे इस बात से भी काफी लोकप्रिय है कि 10 से भी ज्यादा तरीकों से 1 सवाल को बना सकते है। इसी खासियत ने उन्हें आज देश मे मैथमेटिक्स गुरु का दर्जा दिला दिया। पिछले कई वर्षों से आरके श्रीवास्तव अखबारों में खूब सुर्खियां बटोर रहे है।

आरके श्रीवास्तव का बचपन अन्य बच्चों जैसा सामान्य नही रहा। बचपन मे 5 साल की उम्र में पिता के गुजरने और बड़े होने पर एकलौते बड़े भाई के गुजरने के बाद परिवार को काफी संघर्षो का दिन भी देखना पड़ा। आरके श्रीवास्तव की शुरुआती पढ़ाई ग्रामीण परिवेश के सरकारी विद्यालयों से हुई। शुरू में श्रीवास्तव का रुचि बिल्कुल गणित के प्रति नही रहा किन्तु प्राइमरी परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया। आगे की पढ़ाई के लिए पहली बार उच्च माध्मिक स्कूल में गये यहीं से गणित की पढ़ाई की शुरुआत हुई।

प्रश्न पूछने का शौक

आरके श्रीवास्तव को बचपन से ही प्रश्न पूछने का शौक रहा। और वे कभी-कभी ऐसा प्रश्न पूछते कि शिक्षकों के समझ में नहीं आता की इतना छोटा बच्चा ऐसे सवाल कैसे कर रहा है। दरअसल, किसी सवाल को जानने की उनमें बहुत जिज्ञासा हमेशा से रहा।

आपको बताते चले कि यह भी मशहूर है कि अपने क्लास में पढ़ाई करने के दौरान अपने सीनियर को गणित भी पढ़ाया करते। वर्ग 12 से पहले ही लोनी द्वारा कृत प्रसिद्द ट्रिग्नोमेट्री और कोआर्डिनेट ज्योमेट्री के प्रश्नों को हल कर दिया।

गणित में करते टॉप, बाकी विषयों में आते कम नम्बर

बचपन से ही आरके श्रीवास्तव गणित इतना अधिक पढ़ाई करते कि अन्य विषयों पर थोड़ा-सा भी ध्यान नहीं दे पाते। इसका नतीजा एक बार ऐसा हुआ कि 10वी की परीक्षा में गणित में तो टॉप कर लिया जबकि अन्य सभी विषयों में बहुत कम अंक आये।  श्रीवास्तव के जीवन के कुछ साल बहुत संघर्ष भरा रहा। बड़े भाई के गुजरने के बाद श्रीवास्तव पर अपने पढ़ाई के अलावा तीन भतीजियों की शादी और भतीजे को पढ़ाना सहित पूरे परिवार की जिमेद्दारी आ गया। परन्तु श्रीवास्तव ने अपने जीवन मे कभी हार नही माना और अपने कड़ी मेहनत, ऊंची सोच,  पक्का इरादा के साथ आज मैथमेटिक्स गुरु के नाम से मशहूर है।

सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर शुरू किया था पढ़ाना। प्रत्येक अगले वर्ष 1 रुपया अधिक लेते है गुरु दक्षिणा। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष 50 गरीब स्टूडेंट्स को आरके श्रीवास्तव अपनी माँ के हाथों निःशुल्क किताबे बंटवाते है। वर्तमान में बिहार के आरके श्रीवास्तव को देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थाए गेस्ट फैकल्टी के रूप में शिक्षा देने के लिए भी बुलाते है।

 

 

ऋतु जायसवाल —–

 

दिल्ली में वरिष्ठ आईएएस के रूप में पदस्थापित अरूण कुमार जायसवाल की पत्नी ॠतु जायसवाल बिहार के सीतामढ़ी के सोनवर्षा प्रखंड के सिंघवाहिनी पंचायत से मुखिया बन सीतामढ़ी के गांवों की नई इबारत लिख रही हैं।

अपने प्रयास से ऋतु ने लोगों को समझाया कि अपना वोट मत बेचो। मुखिया को पंचायत में शौचालय व पानी की व्यवस्था करनी होती है, इसलिए उन्हें चंद रुपयों की लोभ में वोट नहीं बेचना चाहिए। ऐसा करने से वे सुविधाओं से वंचित हो जाते थे और आजीवन बीमारी के शिकार होते थें। लोगों ने भी बात को समझा और उन्हें समर्थन देकर भारी मतों से जीत दिलाया। उनके प्रयास से आजादी के बाद पहली बार सिंघवाहिनी पंचायत  में बिजली आई। कुछ एनजीओ की मदद से बच्चों के लिए ट्यूशन क्लास शुरू करवाई गई। असर यह हुआ कि इस बेहद पिछड़े गांव की 12 लड़कियां एक साथ मैट्रिक पास हुई हैं। गांव के लोगों के कहने पर ही उन्होंने चुनाव लड़ा और तमाम जातीय समीकरणों के बावजूद भारी मतों से जीत गईं।

वह कहती हैं कि जिस संकल्प को लेकर वे मुखिया का चुनाव लड़ी हैं उसे वह हर हाल में पूरा करेंगी। अब गांव में रहकर ही गांव की तस्वीर बदलेंगी। उन्होंने बताया कि उनके गांव में ना तो चलने के लिए सड़क है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी। लोगों को शौचालय के बारे में भी पता नहीं था कि शौचालय क्या होता है? गांव के तक़रीबन अस्सी प्रतिशत लोग आज भी सड़कों पर शौच के लिए जाते हैं। बिजली सहित तमाम मूलभूत सुविधाओं से लोग अब भी कोसो दूर हैं।

वह कहती हैं कि मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के बाद विकास के काम पर ध्यान देंगी। विकास के लिए उन्होंने कृषि विभाग से बात किया है। विभाग यहां के लोगों को ट्रेंनिंग देगा जिससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यहां की भूमि कृषि योग्य है पर यहां के लोग अब बाहर कमाने के लिए जा रहे है। गांव में सिर्फ औरतें और बुजूर्ग हैं।

बिजली विभाग से बात कर एक गांव में बिजली लाने में सफल हुईं। अपने गांव की फोटो खींच एक डॉक्युमेंटरी बनाई और एनजीओ को दिखाया। फिर वह काम करने के लिए तैयार हो गएं। वे बताती हैं कि दो साल में कई एनजीओ आए और गांव की महिलाओं और लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दिलाया गया। यह सारा फंड एनजीओ ही वहन करते थे। करीब दो साल पहले नरकटिया के बच्चों के लिए सामुहिक रूप से दो शिक्षक लगवाए। वे कहती हैं गांव की हालत अब सुधर रही है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।

सामाजिक कार्य में रुची उन्हें पहले से थी पर गांव को देख रुची और ज्यादा बढ़ गया। वे कहती हैं कि इस गांव से एक लगाव सा हो गया। सिंघवाहिनी पंचायत में नरकटिया को मिलाकर 6 गांव हैं। नरकटिया की आबादी 2300 के आसपास है। बाकी सभी गांव इससे बड़े हैं। इससे पहले जितने भी मुखिया थे, उन्होंने कुछ ख़ास काम नहीं किया है। इस बार भी बहुत लोगों ने मुखिया पद के लिए पर्चा भरा था। चुनाव में उनको यहां के लोगों का तो साथ मिला ही साथ ही उनके पति का भी बहुत सहयोग रहा।

क्षेत्र में उनके द्वारा किये अच्छे कामों, प्रयासों और लोकप्रियता का ही नतीजा था कि उन्होंने एक शांति रैली निकाली जिसका मकसद था लोगों को जागरुक करना जिसमें छह हजार लोग शामिल हुए जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उस रैली में ऐसी महिलाएं भी शामिल हुईं जो कभी घर से बाहर कदम भी नहीं रखी थीं। वह कदम से कदम मिलाकर चल रही थीं। यह उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वे मुखिया का चुनाव दो हजार वोटों से जीतीं। यह जीत उन दो हजार लोगों के बदलते हुए समाज की जीत थी।

ॠतु जयसवाल ने अपनी पढ़ाई वैशाली महिला महाविद्यालय, हाजीपुर से किया है। उन्होंने बीए की डिग्री अर्थशास्त्र में ली। शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखा। उनके दोनों बच्चे बैंगलोर के एक रेसीडेंशियल स्कूल में पढ़ते हैं। उनकी बेटी अवनि जो 7वीं में पढ़ती है उसने उनका बहुत सहयोग किया ताकि वे अपना ज्यादातर वक्त गांव में ही बीता सकें। वह अपने बेटी के बारे में कहती है कि जब उन्होंने अपनी बेटी से बात की तो वह बोली कि मैं तो होस्टल में रह लूंगी और आप बहुत सारे बच्चों की जिंदगी बदल पाएंगी। बेटी की इस बात से उन्हें बहुत हौसला मिला।

श्रीमति जयसवाल शहर की सारी सुख सुविधाओं को छोड़ सिर्फ समाज सेवा के मकसद से गाँव की तस्वीर बदलने में लगी है। इसकी जितनी भी तारीफ किया जाए कम है। जहाँ लोग सफलता मिलते ही गाँव को भूल जाते है, शहर को अपना घर बना लेते है और गाँव से अपना रिश्ता ही तोड लेते हैं, वहीं ऋतु जायसवाल ने चमचमाती शहर की तमाम सुख-सुविधा छोड़कर गाँव में काम कर न सिर्फ अपना, अपने पति और परिवार का नाम रौशन कर रही हैं बल्कि तमाम लोगों के लिए भी एक आदर्श स्थापित करने में कामयाब हुई हैं। श्रीमति जायसवाल को कई राष्ट्रीय अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। निःसंदेह आज वे समाज के लिये रोल मॉडल बन चुकी है।

हमारे देश ने दुनिया को कई सारे महान व्यक्ति दिए है। उन्होंने अपने अपने क्षेत्र में काफी बड़ा योगदान दिया है। किसी ने कला और साहित्य को बढ़ाने का काम किया, तो किसी ने खेल के क्षेत्र मे देश का नाम रोशन किया है। इसी तरह सत्यम कुमार, तुलसी अवतार तथागत, आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव, ऋतू जायसवाल अपने शैक्षणिक और सामाजिक कार्यशैली से बेहतर राष्ट्र निर्माण मे अपना योगदान दे रहे।

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