दाह संस्कार और औद्योगिक जरूरतें पूरी करने गोबर से बना रहे लकड़ी।

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गुजरात के जामनगर में आणदाबाबा सेवा संस्थान ने गाय के गोबर से लकड़ी बनाने की शुरूआत की गई है। गो-शालाएं इस तकनीक को अपनाकर राजस्व का नया स्रोत खोज सकती हैं। सामान्यत: पेड़ की लकड़ी में नमी का प्रमाण 12 से 15 प्रतिशत होता है, जबकि गो-काष्ठ में सिर्फ 2 से 3 प्रतिशत। इसका एक लाभ यह है कि अंतिम क्रिया में इस काष्ठ का प्रयोग करने की स्थिति में घी सहित अन्य पदार्थ का कम प्रयोग करना होगा। इतना ही नहीं गो-काष्ठ में कैलोरिफिक वैल्यू 8000 केजे (किलोजूल्स) होती है। औद्योगिक जरूरतों के हिसाब से लकड़ी-कोयले का चूरा मिला कर गो-काष्ठ की कैलोरिफिक वैल्यू बढ़ाई जा सकती है।

जामनगर के शरदभाई शेठ ने बताया कि एक मशीन की मदद से हम यह काम कर रहे हैं। मशीन छोटी है, लेकिन हर दिन 1000 (250 मन) टन गोबर को गौ-काष्ठ के रूप में तब्दील कर देती हैं। गो-काष्ठ का जो टुकड़ा बनता है, उसमें छेद होते हैं। इससे यह सूखने में ज्यादा वक्त नहीं लेता। यह छेद इसके जलने में मददगार हैं। 4 से 6 फीट लंबे गो-काष्ठ 2 से 3 दिन में सूख जाते हैं। इनकी मूवमेंट करना भी आसान है।

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राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में मशीन की मदद से गोबर को लकड़ी में बदलकर इन राज्यों में गो-काष्ठ का उपयोगकर किया जा रहा है। आणदाबाबा सेवा संस्थान के महंत देवप्रसादजी को जामनगर के शरदभाई शेठ ने गो-काष्ठ के बारे में बताया। उन्होंने मशीन मंगवा कर संस्थान में गो-काष्ठ तैयार करवाना शुरू किया है। इस काम से जुड़े लोगों का कहना है कि व्यापक स्तर पर गो-काष्ठ का प्रयोग किया जाए तो पर्यावरण संतुलन में बड़ा योगदान होगा। दाह संस्कार में गो-काष्ठ को अपनाए तो पर्यावरण संतुलन में सहयोग होगा।

Source – Dainik Bhaskar

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