उपभोक्ता मंत्रालय के नारे “जागो ग्राहक जागो” को ही आधार बना, सरकार के विभिन्न कार्यशैली में से एक बिजली विभाग के कार्य करने के तरीके को आईना दिखाती वाइरल संदेश।
स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था।
बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी न पूछा : “केले कैसे दे रहे हो”?
राजू : केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ?
अधिकारी :- मतलब ??
राजू :- मतलब ये साहब कि “यदि मंदिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन, वृद्धाश्रम में देने हों तो 15 रुपए दर्जन, बच्चों के टिफिन के लिए हों तो 20 रुपए दर्जन, घर में खाने के लिए तो 25 रुपए दर्जन और अगर पिकनिक के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन।”
अधिकारी :- ये क्या बेवकूफी है? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं, तो भाव अलग-अलग क्यों बता रहे हो?
राजू : – ये पैसे वसूली का, आप का ही स्टाइल है साहब।
1 से 100 रीडिंग का रेट अलग,
100 से 200 का अलग,
200 से 300 का अलग।
अरे आपके बाप की बिजली है क्या?
आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो।
तो फिर घर के लिए अलग रेट,
दूकान के लिए अलग रेट,
कारखाने के लिए अलग रेट,
फिर इंधन भार, विज आकार…..
और हाँ, एक बात और साहब,
मीटर का भाड़ा।
मीटर क्या अमेरिका से आयात किया जाता है? जो 25 सालों से उसका भाड़ा वसूल रहे हो। आखिर उसकी कीमत कितनी है? आप ये बता तो दो, मुझे एक बार।
जागो ग्राहक जागो
बिजली बिल से पीड़ित एक आम नागरिक की व्यथा।