WWC वर्ल्ड वीमेन फ़ौर चेंज महाराष्ट्र के तत्वाधान में आज दिनांक 27 सितंबर को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका विषय था “जीवन की घटना ने बनाया सशक्त महिला” जिसमें भारत के अलग अलग राज्यो से विभिंन्न महिलाओ ने अपनी कहानी साझा की।
इस कार्यक्रम का संयोजन करूणा सिंह, श्रीमती पुष्पा सहाय और श्रीमती स्नेहा सिंह ने संयुक्त रूप से किया। इस संस्था के संस्थापक सुरेश वर्मा हैं। महिलाओं ने अपने जीवन की उन विशेष घटनाओ का जिक्र किया जिससे उनका जीवन बदल गया। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती माँ को पुष्पाँजली अर्पित करके हुआ। अलका जैन (इन्दौर) ने दवा के गलत प्रभाव से कैसे जीवन को बचाया बताया।
रांची से पुष्पा सहाय ने अपने बारे में बताते हुए बताया कि “2017 में कार ऐक्सिडेंट में मेरे पति के लंग्स, कंधे, हाथ बुरी तरह ज़ख्मी हो गए थे, सांस लेना मुश्किल था और डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। हिम्मत नहीं हारते हुए मै उन्हें दूसरे हॉस्पिटल ले गई, रांची के बाहर से (कोलकाता) लंग्स विशेषज्ञ को बुलवाया, डॉक्टर, हॉस्पिटल और आर्थिक समस्या से जूझते हुए एक महीना के बाद आखिरकार पति को घर लेकर आयी।”
वडोदरा से मीनाक्षी त्रिवेदी ने बताया कि कैसे मानसरोवर मे मित्र की जान बचाई। साधना मिश्र लखनऊ ने जब भूखे लोगो की मदद की तो जन्मदिन को उन्हीं के साथ मनाना शुरु कर दिया। अरुणा सिंह ने पति के ना रहने पर कैसे जीवन को बढ़ाया। मीना जैन भोपाल ने कोरोना काल मे लोगो की जो मदद की उसे आगे भी करते रहने का मन बना लिया। स्नेहा सिंह महाराष्ट्र ने बताया कि कैसे समाज से लड़ते हुए फिल्ममेकर बनी। गीतांजली वाष्र्णेय बरेली ने कहा कि कैसे मिडडे मिल के लिये ग्रामप्रधान से लड़ी और जेल भिजवाया। ज्योती किरण रतन ने बताया बेटी होने के कारण ससुराल से निकाला गया 2वर्ष की बेटियो के साथ बडी दुर्घटना से निकल कर आगे बढी। श्यामा देवी कैसे कैन्सर से छुटकारा पायी बताया। क्रांती श्रीवास्तव बोकारो ने कैसे जीवन में सकारात्मक लायी, मुनमुन ढाली रांची ने कैसे अपने डर पर काबू पाया आदि ने अपनी कहानी साझा की।
धार, रांची से रेणु बाला ने अपने संघर्षों के बारे बताते हुए कहा कि बात मई 20 13 की है। मेरे पति घर से नजदीक की सड़क को पार कर रहे थे कि अचानक से एक तेज रफ्तार से आती हुई मोटरसाइकिल ने उनको धक्का दे दिया और वह गिर पड़े। वे बेहोश हो गये थे। उन्हीं के जेब में रखे फोन नंबर से मुझे जब कॉल किया गया तो मैं भागी दौड़ी हॉस्पिटल पहुंची। 2 दिन वहां इलाज कराने के बाद भी जब उनको होश नहीं आया तो मैंने इलाज के लिए राज हॉस्पिटल से शिफ्ट कर उन्हें अपोलो हॉस्पिटल ले गई।
वहां 28 दिन तक इलाज कराते रहे। लाख़ों का खर्च करके भीकोई फल फर्क उनके स्वास्थ्य पर नहीं पड़ा ।आखिर कार 4 जून 2013 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली। मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। पैरों के तले की जमीन निकल गई। मुझ पर तो जो गुजरी या गुजर रही है इस बाबत क्या सुनाऊं। सामने मेरी दो बड़ी बेटियां खड़ी दिख रही थी मैंने उसी क्षण प्रणकर लिया कि मेरा तो सब कुछ चला ही गया मेरी बेटियों के सर से पिता का साया भले ही उठ गया लेकिन अब उन्हें किसी क्षण किसी दिन ऐसा कुछ नहीं महसूस होने दूंगी और उनके माता-पिता दोनों का फर्ज मैं हर घड़ी पूरा करूंगी।
इस दौरान मैंने दोनो बेटियों कोMBA और बीसीए की शिक्षा दिलाई। बड़ी बेटी एमबीए में सेकंड टॉपर रही और कैंपस सिलेक्शन में आईटी कंपनी में अच्छी जॉब मिल गई। बड़ी बेटी की शादी एक उच्च पदस्थ योग्य अधिकारी से करवा दी। छोटी बेटी को भी बी सी ए की डिग्री दिलवाकरअपने जगह पर नौकरी सरकारी विभाग में दिलवा दी ताकि उन दोनों के भविष्य के प्रति निश्चिंत हो पाऊं और मैं पेंशन की रकम से ही संतुष्ट होकर शांति से अपने समय को रचना धर्मिता में लगाकर व्यतीत कर रही हूं। आज मेरी दोनों ही बेटियां स्वावलंबी और संतुष्ट हैं।
कार्यक्रम संयोजक करूणा सिंह ने बताया कि सभी महिलाओ के जीवन की घटनाये एक संदेश देती है कि कोई भी परेशानी केआगे हारना नही है। सभी महिलायें बधाई की पात्र है। सलाम है उनके जज्बे को जिन्होंने मजबूती से जूझते हुए हिम्मत से सामना किया और एक साहसी महिला के रूप में समाज के सामने आयी।
करुणा सिंह कल्पना
कोशी की आस@राँची (झारखंड)