100 से अधिक गणित के चर्चित सूत्रों को कबाड़ की जुगाड़ से खिलौने बनाकर सिद्ध करने वाला मैथेमैटिक्स गुरू।

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स्पेशल डेस्क
कोसी की आस@पटना।

100 से अधिक गणित के चर्चित सूत्रों को वेस्ट मटेरियल से खिलौने बनाकर ( कबाड़ की जुगाड़ ) सिद्ध करने वाले बिहार के वे मैथेमैटिक्स गुरू हैं आरके श्रीवास्तव। कचरे से खिलौने बनाकर गणित के प्रमुख सूत्र जैसे रॉल्स थ्योरम, लगरन्जे मीन वेल्यू थ्योरम, पाईथागोरस थ्योरम, फलन के सभी प्रकार, त्रिकोणमिती के सूत्र इत्यादि के अलावा सांख्यकी में माध्य, माध्यिका, बहुलक सहित ज्यमिती में यूक्लिड ज्यमिती, नियामक ज्यमिती, त्रिक ज्यमिती के दर्जनों सूत्रों को भी सिद्ध कर चुके है। लघुतम समापवर्तक और महतम समापवर्तक, रोमन अंक के कांसेप्ट को कबाड़ की जुगाड़ से समझाने का तरीका भी अदभुत है।

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कचरे से खिलौने बनाकर हजारों छात्रों को गणित सिखाने वाला बिहारी जीनियस मैथेमैटिक्स गुरु,

हर बच्चे का खिलौनों से प्यार होना आम बात है। खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, ऐसे में हर माता-पिता कोशिश करते हैं कि वे अच्छे-से-अच्छा खिलौना लाकर अपने बच्चे के बचपन में रंग भर सकें। हालांकि, आज भी ग्रामीण इलाकों में सभी परिवार अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने में असमर्थ हैं।

लेकिन, बिहार के आर के श्रीवास्तव नाम के एक शख्स ने बच्चों की जिंदगी में पैसों की वजह से किसी खुशी की कमी न रह जाए, के लिए काम किया। साथ ही, आर के श्रीवास्तव ने खिलौने के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को गणित पढ़ाने का एक मजेदार तरीका सोचा।

इसके लिए उन्होंने सस्ती सामग्री से नए खिलौने बनाने के तरीके खोजे और विकसित किए। बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में जन्मे, आरके श्रीवास्तव ने बचपन में पिता के गुजरने के बाद गरीबी के कारण पैसों के अभाव में अपनी पढाई वीर कुवँर सिंह विश्वविद्यालय से किया। प्रारंभिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की भी पढाई पैसो के अभाव के कारण सरकारी विद्यालय से किया। उन्हें अपने शिक्षा के दौरान यह एहसास हो गया था कि देश में वैसे लाखों-करोड़ों प्रतिभायें होंगी जो महंगी शिक्षा, महंगी किताबे इत्यादि के कारण अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

टीबी की बिमारी के कारण नहीं दे पाये थे आईआईटी प्रवेश परीक्षा।

टीबी की बिमारी के कारण आईआईटीयन न बनने की टिस ने बना दिया सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर । टीबी की बिमारी के दौरान स्थानीय डाॅक्टर ने करीब 9 महीने दवा खाने का सलाह दिये। उसी दौरान इन 9 महीने अकेले घर में बैठे-बैठे बोर होने लगे। फिर उनके दिमाग में आईडिया आया क्यों न आसपास के स्टूडेंट्स को बुलाकर गणित का गुर सिखाया जाये। वहीं से चालू हुआ गणित पढाने का सिलसिला। सबसे बड़ी समस्या आर्थिक रुप से गरीब स्टूडेंट्स को पैसे के आभाव में महंगी किताबो के न होने से गणित के कांसेप्ट को समझने मे दिक्कत होने लगी। इसके अलावा कुछ स्टूडेंट्स गणित के प्रश्नो को तो सूत्र रटकर हल तो कर देते लेकिन उसके कांसेप्ट प्रैक्टिकली उन्हें दिखाई नहीं देता। जिसके कारण कुछ दिनो के बाद वे कांसेप्ट को भुल जाते। आरके श्रीवास्तव ने बताया की इन आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स के आजीवन कांसेप्ट क्लियर होने के लिये गणित पढाने के अद्भूत तरीके को हमने विकसित किया। वेस्ट मटेरियल से खिलौने बनाकर गणित के सूत्रों को सिद्ध करना प्रारंभ किया जिसे स्टूडेंट्स को भी अच्छा लगने लगा और ये कारवां धीरे-धीरे आगे बढते गया।


माचिस की तीलियों और साइकल वाल्व ट्यूब के छोटे-छोटे टुकड़ों से लेकर बेकार कागज का इस्तेमाल करते हैं। इनसे वह सुंदर खिलौने बनाने समेत बच्चों के बीच ‘बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट’ का आईडिया भी डाल रहे हैं। गणित के ज्यमिती, क्षेत्रमिती, बीजगणित, त्रिकोणमिती सहित अनेकों गणित के कठिन-से-कठिन प्रश्नों को हल कर देते है। इसका मुख्य कारण है खिलौने के सहारे थ्योरी को क्लियर कर चुटकियों में छात्र-छात्राएँ प्रश्न को हल कर दे रहे।

उन्होंने छोटे ग्रामीण गांव के स्कूलों से लेकर देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थानों तक के 1000 से अधिक बच्चों को खिलौने बनाकर गणित के प्रश्नों को हल करना सिखाया है।

इन खिलौनों के साथ उन्होंने स्कूलों में सेमिनार करके भी बच्चों को गणित के मूल सिद्धांतों को पढ़ाया, उन्होंने मजेदार तरीके से बच्चों को इन खिलौने के जरिए पढ़ाया। यह खिलौने बच्चों को आकर्षित करते हैं और वह पढ़ने में अपनी रुचि दिखाते हैं।

गणित को सबसे कठिन माना जाता है लेकिन एक ताज़ा शोध में पता चला है कि गणित के सूत्र में मौजूद अंकों और अक्षरों का जटिल सिलसिला मस्तिष्क में आनंद की वैसी ही अनुभूति पैदा करती है, जैसी एक शानदार कलाकृति को देखकर या महान संगीतज्ञों का संगीत सुनकर पैदा होती है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में ब्रेन स्कैनिंग के दौरान कुछ गणितज्ञों को ‘अप्रिय’ और ‘सुंदर’ समीकरणों को दिखाया गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि सुंदरता के न्यूरोबायोलाजिकल कारण हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि कला को सराहने में मस्तिष्क का जो हिस्सा सक्रिय होता है, वही हिस्सा ‘सुंदर’ गणित से उत्प्रेरित होता है। हालांकि यूलर और पाइथागोरस के गणितीय सूत्रों को शायद ही कभी मोजार्ट, शेक्सपियर और वॉन गॉग के समानांतर रखा जाता है।

फ्रन्टियर्स इन ह्यूमन न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस अध्ययन में 15 गणितज्ञों को गणित के 60 सूत्र दिए गए थे।

शोधकर्ता प्रो. समीर जकी के अनुसार, ”एक समीकरण को देखने में मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा सक्रिय होता है, लेकिन जब कोई ‘सुंदरतम’ सूत्रों को देखता है तो भावनात्मक मस्तिष्क वैसे ही सक्रिय हो जाता है जैसे किसी सुंदर तस्वीर को देखने या सुकूनदायक गाने को सुनने पर होता है”। यह हिस्सा होता है मस्तिष्क के बीच स्थित आर्बिटो फ्रंटल कार्टेक्स।

ब्रेन स्कैन से पता चला है कि जो गणितीय सूत्र जितने अधिक ‘सुंदर’ आंके गए थे, वे उतना ही अधिक मस्तिष्क हलचल पैदा करने में सफल रहे। शायद पहली बार देखने वालों के लिए यूलर के गणितीय फार्मूले में इतनी सुंदरता न दिखे लेकिन अध्ययन में पता चला है कि गणितज्ञों का यह सबसे पसंदीदा रहा ।

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