जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में फीस वृद्धि और छात्रावास ड्राफ्ट मैनुअल को लेकर के छात्रों द्वारा सोमवार से लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, वो भी उस वक़्त से जब विश्वविद्यालय अपना तीसरा दीक्षांत समारोह मना रहा था। इस समारोह को संबोधित करने के लिए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को आमंत्रित किया गया था। यहाँ बता दें कि विरोध के कारण तीसरे दीक्षांत समारोह का स्थान विश्वविद्यालय के भीतर ही अलग जगह आयोजित किया गया। सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठन के द्वारा किए जा रहे भारी विरोध प्रदर्शन का वजह जानना आवश्यक है-
शुल्क पहले अब
मेस सिक्योरिटी :- 5,500 रुपये 12,000 रुपये (एक बार और वापसी योग्य)
एकल कमरे का किराया :- 20 रुपये प्रति माह 600 रुपये प्रति माह
डबल कमरे का किराया :- 10 रुपये प्रति माह 300 रुपये प्रति माह
यूटिलिटी शुल्क
(बिजली,पानी आदि) :- शून्य इस्तेमाल के हिसाब से
सर्विस चार्ज :- शून्य 1700 प्रतिमाह (इस्तेमाल के हिसाब से)
इस्टेबलिसमेंट शुल्क :- 1100 प्रति सेमेस्टर 1100 प्रति सेमेस्टर
क्रॉकरी, बर्तन :- 250 सालाना 250 सालाना
समाचारपत्र :- 50 सालाना 50 सालाना
मेस बिल :- इस्तेमाल के हिसाब से इस्तेमाल के हिसाब से
(नोट : आंकड़े जेएनयू के अनुसार)
यह आंकड़े मुख्य रूप से मैं भारत के तमाम गरीब छात्रों को दिखाना चाहता हूँ और उनसे जानना चाहता हूँ कि क्या वाकई विश्वविद्यालय के इस फीस बढ़ोतरी से गरीब छात्र पढ़ नहीं पाएंगे? मेरे समझ से 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में 30-40% आबादी ऐसे युवाओं की है जो कहीं-न-कहीं पढ़ाई कर रहे हैं, तो उन लगभग 39 से 52 करोड़ छात्रों में से कितनों का JNU में नामांकन होता है, साथ ही एक और सवाल की वहाँ पढ़ने वाले 10-20% गरीब परिवार से आने वाले छात्र में सबसे गरीब का जो पैमाना होगा, उससे भी कई गुना गरीब परिवार से आने वाले छात्र इस देश में कैसे पढ़ रहे हैं? ये जानना बेहद अहम है।
कल मैं NDTV के प्रसिद्ध कार्यक्रम प्राइम टाइम जिसे एक प्रसिद्ध पत्रकार द्वारा संचालित किया जाता है, उनको सुन रहा था, उनका कहना था कि सिर्फ इस वजह से कि JNU के छात्रों द्वारा विरोध किया जा रहा है, विरोध मत करिए, भारत के विभिन्न हिस्सों में जैसे IIT MUMBAI, BHU, उत्तराखंड के आयुर्वेद विश्वविद्यालय आदि जैसे शैक्षणिक संस्थान में भी फीस बढ़ोतरी को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ है या हो रहा है। उसी रिपोर्ट में उन्होंने कहा JNU को छोड़ अन्य शैक्षणिक संस्थानों में 50,000/- से 2,00,000/- या 2,20,000/- तक की बढ़ोतरी हुई है। जी हाँ, 50,000/- से 2,00,000/- या 2,20,000/- तक की बढ़ोतरी का मैं भी समर्थन नहीं कर सकता और उसमें मैं भी सरकार से चाहूँगा कि बढ़ोतरी को संतुलित करने का प्रयास किया जाय लेकिन JNU में 10/- रु मासिक से 300/- रु मासिक बढ़ोतरी के बारे में हम आपसे ही जबाब चाहेंगे?
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण लगा जब NDTV के ही एक रिपोर्ट में पत्रकार जब JNU के कुछ छात्र से बात कर रहे थे, एक छात्र से जब उन्होंने सवाल किया की अगर फीस में बढ़ोतरी नहीं वापस ली गई तो क्या करेंगे?
उस छात्र ने अपने जबाब से समूचे देश को निराश करने वाला जबाब दिया, उसने कहा मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और अगर फीस में कमी नहीं की गई तो मैं वापस चला जाऊँगा। उसके जबाब के आधार पर मैं उससे कहना चाहूँगा कि अगर फीस में कमी हो भी जाय तो आप वहाँ सच में रहने लायक नहीं है। आपको पता नहीं है कि करोड़ों छात्रों को आपकी तरह JNU जैसे संस्थानों में अपनी पढ़ाई करने का मौका नहीं मिल पाता, लेकिन उसके बाबजूद भी वो ऐसा नहीं बोलते कि हम पढ़ाई छोड़ देंगे और वो विपरीत परिस्थितियों में भी ट्यूशन पढ़ाकर या कहीं काम कर अपनी पढ़ाई न सिर्फ जारी रखते हैं, बल्कि सफल होते हैं।
वर्तमान JNU प्रकरण में, मैं सरकार के सभी फ़ैसलों के साथ नहीं हूँ किन्तु अन्य शैक्षणिक संस्थानों की तुलना में JNU में फीस में की गई बढ़ोतरी अमानवीय नहीं है और फीस के आलावे अन्य मांगों के बारे में छात्र यदि बात करें तो शायद उन्हें ज्यादा समर्थन मिलेगा।
गुड्डू सिंह
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)