एक तरफ जहाँ कोरोना महामारी से समूचा विश्व जूझ रहा है, वहीं भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था महामारी के इस दूसरे लहर में लगभग धराशाही हो गई है। आम-जनमानस त्राहिमाम की स्थिति में है।
वर्तमान कोरोना संकट के मद्देनजर असहाय हो चुके या फिर यूँ कहें कि ध्वस्त हो चुके स्वास्थ्य विभाग के समूचे तंत्र ( फिर चाहे वो केंद्र सरकार का हो अथवा राज्य सरकार का ), सरकारों के आरोप-प्रत्यारोप संबंधी राजनैतिक व्यस्तता, मद्रास हाईकोर्ट का चुनाव आयोग पर कोरोना को बढ़ावा देने संबंधी तल्ख़ टिप्पणी के बीज आपको बता दें कि अभी भी इस संकट को इस स्थिति तक ही सीमित रहने के पीछे इंसानियत और मानवता है।
जब अधिकांश सरकार और जनप्रतिनिधियों ने एक तरह से मुँह फेर लिया, ऐसे में सैकड़ों स्वयंसेवी संस्था, युवाओं के छोटे-छोटे समूह या फिर व्यक्तिगत रूप से किये जा रहे मदद के पहल से न जाने कितनों के जान बचाये जा चुके हैं। “कोशी की आस परिवार” उन तमाम मददगार साथियों के प्रति आभारी है और उनकर्मवीरों को सलाम करता है।
अब बात इस महामारी की!
कोरोना महामारी के आंकड़ों संबंधी विश्लेषण का अबतक के अध्ययन से यह जानकारी प्राप्त होती है कि इस महामारी से पीड़ित अधिकांश व्यक्ति (लगभग 95-98%) स्वस्थ हो जाते हैं, फिर इतना हाय-तौबा क्यों? उसके पीछे एक बड़ी वज़ह संक्रमण है। कोरोना के प्रारंभिक मामले में भारत सरकार के उस वक़्त उठाये गए संघीय कदम (एक देश – एक कदम) के बदौलत हम इस बीमारी के बारे में अनभिज्ञ रहने के बाद भी स्थिति को संभालने में सफल रहे थे लेकिन सरकार की लापरवाही, आमजनमानस का सावधानी न बरतना और कोरोना वायरस के स्वरूप में बदलाव (जिसमें संक्रमण की दर अत्यधिक है) वज़ह बना है इस ख़ौफ़नाक मंजर का।
स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति!
आज सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं फिर भी, अगर उन सरकारी आंकड़ों को ही सही मान लें तो 85-90% पीड़ित होम-आइसोलेशन में ठीक हो रहें हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब 10-15% मरीज़ को अस्पताल ले जाया जा रहा तब स्वास्थ्य व्यवस्था की यह स्थिति है तो इसे अगर जल्दी नहीं संभाला गया तो क्या होगा?
क्यों लग रहा नेतृत्वहीनता का आरोप?
जब समूचे विश्व में कोरोना जैसे नए महामारी जिसके बारे में चिकिस्तकों और वैज्ञानिकों को जानकारी नहीं थी और विश्व के संपन्न देशों में इसके खौफनाक मंजर को देख लगता था कि भारत में आने वाले समय में क्या होगा? लेकिन उस वक़्त भारत जैसी घनी आबादी वाले देश जिसकी स्वास्थ्य व्यवस्था भी अच्छी नहीं थी, जरूरत के हिसाब से PPE किट नहीं थे, मास्क नहीं थे, सेनिटाइजर नहीं था, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं था, वैसी परिस्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो एक केंद्रीकृत निर्णय लिया तथा सभी राज्य सरकारों ने उसका साथ दिया जिसके कारण हमने उसे संभाल लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस नेतृत्वक्षमता का न सिर्फ़ भारत बल्कि समूचे विश्व में सराहना किया गया था।
लेकिन पता नहीं क्यों जब आज की तारीख़ में कोरोना के बारे में कई सारी जानकारियां उपलब्ध है, कई वैक्सीन वैश्विक स्तर पर आ चुकी है, ऐसे में क्या मजबूरी हो गई कि एक कुशल निर्णय लेने के लिए जाने जानेवाले प्रधानमंत्री कोरोना के इस दूसरे लहर में कहाँ खोये हुए हैं। समूचा राष्ट्र कराह रहा है और उनका कोई कदम उस कराहते लोगों की पीड़ा कम नहीं कर पा रहा है।
भारत में कोरोना के प्रारंभिक पदार्पण पर जिस नेतृत्वक्षमता का परिचय प्रधानमंत्री ने दिया था, आज उसी की ज़रूरत एक बार फिर से है, राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाने की, यदि जान बचेगी तो अर्थव्यवस्था को हम जल्द दुरुस्त कर लेंगे क्योंकि हमने प्रगति देखी है। आज टुकड़ों में लगाये जा रहे लॉकडाउन से आमजन परेशान तो होता ही लेकिन उसके जो सकारात्मक परिणाम आने चाहिए वो नहीं मिलता।
साथ ही जैसा कि चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के कहर को रोकने के लिए वैक्सिनेशन बहुत आवश्यक है। ऐसे में राजनैतिक महत्वाकांक्षा, वैक्सिन में किये जा रहे सौदेबाजी आदि को किनारे कर प्रधानमंत्री को एक बार फिर से समग्र नेतृत्व संभालने की जरूरत है। साथ ही एक बार फिर से केंद्रीय नेतृत्व में राज्य सरकार को साथ रख राष्ट्रीय स्तर पर एक समय-सीमा तक लॉकडाउन लगा अधिकांश आबादी को वैक्सिनेशन करने की। अन्यथा हम ऐसे ही कुछ-कुछ क्षेत्रों में लॉकडाउन करते रहेंगे और आर्थिक नुकसान के बाबजूद कुछ हासिल नहीं होगा।
लॉकडाउन और वैक्सिनेशन!
लॉकडाउन बहुत मुश्किल पल है, भारत के करोड़ों परिवार के लिए लेकिन जान से ज्यादा मुश्किल तो नहीं। हाँ, अब जब वैक्सीन आ गया है तो सिर्फ लॉकडाउन नहीं, लॉकडाउन का फायदा तब ही हो पायेगा जब हम वैक्सिनेशन कर पाएं, ताज़ा उदाहरण हमारे पास ब्रिटेन का है, जहाँ सख़्त लॉकडाउन लगा एक बड़ी आबादी का वैक्सिनेशन कर अनलॉक किया गया है।
हमें भी केंद्रीयकृत लॉकडाउन लगा राष्ट्रीय आपदा के कारण राष्ट्रीय स्तर का केंद्र सरकार के नेतृत्व में वैक्सिनेशन कार्य पूर्ण करना पड़ेगा, जिसमें राज्य सरकार के साथ-साथ निजी अस्पताल और संस्थाएं सहयोगी की भूमिका में हों अन्यथा हमलोग इस लड़ाई में बस अपनों को खोते रहेंगे और शायद ही लोग केंद्रीय नेतृत्व को माफ़ करेंगे।
स्पेशल डेस्क
कोशी की आस@नई दिल्ली