ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा वर्ष 2019 का चयनित हिन्दी शब्द है … ‘संविधान’।

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ऑक्सफ़ोर्ड हिन्दी शब्द ‘संविधान’।
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ऑक्सफ़ोर्ड हिन्दी शब्द ‘संविधान’।

ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा वर्ष 2019 का चयनित हिन्दी शब्द है … ‘संविधान’।

ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा चयनित वर्ष का हिन्दी शब्द एक ऐसा शब्द या उक्ति है जो बीते हुए वर्ष की प्रकृति, मिजाज़, माहौल और मानसिकता को व्यक्त कर सकता है, और इसे इसके स्थायी सांस्कृतिक महत्त्व के कारण चुना गया है।

‘संविधान’ किसी राष्ट्र या संस्था द्वारा निर्धारित किए गए वह लिखित नियम होते हैं जिसके आधार पर उस राष्ट्र या संस्था का सुचारू रूप से संचालन किया जा सके।

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किसी भी देश का संविधान उस देश की राजनीतिक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, तथा उस देश के नागरिकों के हितों की रक्षा करने का एक मूल ढाँचा होता है। भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च विधान है, जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित किया गयातथा 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। भारत के संविधान में आज तक 104 संशोधन किए गए हैं।

वर्ष 2019 में भारत के संविधान ने भारत के आम आदमी के लिए नए सिरे से महत्व प्राप्त किया। 2019 से पहले, डॉ. भीम राव अंबेडकर द्वारा रचित इस दस्तावेज़ की उपयोगिता पेशा विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त वर्ग जैसे कि वकीलों, न्यायाधीशों, सांसदों इत्यादि तक ही सीमित थी ।
परंतु इस वर्ष संविधान के सिद्धांतों के प्रभाव को एक बड़े पैमाने पर महसूस किया गया।

सबसे पहले मई के महीने में संविधान के एक सिद्धांत – ‘लोकतंत्र’ का प्रदर्शन आम चुनावों के दौरान लोकतांत्रिक रूप से मतदान द्वारा सरकार के चुनाव में हुआ।
कुछ समय बाद, कर्नाटक में सांसदों की अयोग्यता के मुद्दे पर असंहिताबद्ध संवैधानिक परम्पराओं की चर्चा हुई।

महाराष्ट्र में संवैधानिक मूल्यों को बचाने के लिए एवं एक स्थिर सरकार सुनिश्चित करके लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने फ़्लोर टेस्ट का आदेश दिया।

अयोध्या मंदिर–बाबरी मस्जिद विवाद जैसे अंतर्निहित संवैधानिक आधार के मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से संविधान के प्रभाव को महसूस किया गया।
सबरीमाला मुद्दे में एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि प्रत्येक व्यक्ति को यह याद रखना चाहिए कि “पवित्र पुस्तक” कोई धार्मिक पुस्तक नहीं अपितु भारत का संविधान है।

कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सरकार का निर्णय एक और ऐसा मुद्दा था जिसके कारण संविधान चर्चा में रहा।

हाल ही में, सरकार द्वारा नागरिकता पर घोषित एक क़ानूनी संशोधन को लेकर लोगों के बीच व्यापक विरोध देखा गया। इस मुद्दे पर बहस के अपने-अपने पहलू हैं मगर यह ध्यान देने योग्य है कि प्रदर्शनकारियों ने (जिनमें से कई ऐसे प्रदर्शनकारी होंगे जिन्हें अन्यथा भारत के संविधान को पढ़ने का मौक़ा कभी नहीं मिला होगा) भी संविधान का अध्ययन किया और यहाँ तक ​​कि अपने विरोध के प्रदर्शन के रूप में संविधान के प्रस्तावना का वर्णन किया।

भारत के एक बड़े राज्य महाराष्ट्र ने एक परिपत्र जारी किया है जिसके अनुसार 26 जनवरी 2020 (70 साल पहले 26 जनवरी को भारत का संविधान पारित हुआ था और इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है) से राज्य के स्कूलों में संविधान के प्रस्तावना का पाठ होना आवश्यक है। परिपत्र के अनुसार प्रस्तावना पढ़ना “संविधान की संप्रभुता, सभी के कल्याण” अभियान के अंतर्गत किया गया है। यह निर्देश वास्तव में पिछली सरकार द्वारा पारित एक सरकारी प्रस्ताव था लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया था। इस निर्देश को लागू करने का उद्देश्य छात्रों में संविधान के महत्व और प्रासंगिकता को सुनिश्चित करना है।

संविधान के प्रस्तावना में कहा गया है, “हम भारत के लोग … इस संविधान को … आत्मसमर्पित करते हैं।”
वर्ष 2019 में भारत के लोगों ने सही मायने में संविधान को अपनाया।
लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता जैसे संवैधानिक मूल्यों को संविधान की कसौटी पर नापा गया और वर्ष 2019 इस बात का साक्षी है।

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